प्रदेश के कालेजों में फिजिकल एजुकेशन विषय को बंद कर दिया गया है। प्रदेश सरकार की ओर लिए गए इस फैसले पर जहां खेल गलियारे में भारी निराशा है तो वहीं राजकीय कालेजों के प्रिंसिपलों ने खुद से विषय बंद करने की वकालत की है। हाल ही में राजकीय कालेजों के प्रिंसिपल की बैठक में फिजिकल एजुकेशन विषय को लेकर विस्तारपूर्वक चर्चा की गई।
बैठक में राजकीय कालेजों के प्रतिनिधियों के साथ साथ फिजिकल एजुकेशन के प्रतिनिधियों ने भी विषय बंद अथवा जारी रखने पर अपनी अपनी बात रखी। जिसमें आखिर में बात विषय को बंद करने पर खत्म हुई। राजकीय कालेजों ने एक प्रस्ताव बनाकर सरकार एवं प्रदेश के सभी विश्वविद्यालय के पास भेज दिया। जिसे सरकार द्वारा मंजूरी मिल गई है।
राजकीय महिला महाविद्यालय, मुरथल के प्राचार्य डा. जेके अग्रवाल कहते हैं कि यह विषय रोजगार प्रेरक की भूमिका से हट रहा था। सरकार की कोशिश कॉमर्स एवं साइंस जैसे विषय को आगे लाने की है। तभी इस विषय को बंद किया है।
बंद करने के पीछे दिया गया तर्क
फिजिकल एजुकेशन के डीपीई पढ़ाई कराने के बजाए माहौल खराब करते हैं। विद्यार्थी भी कम पढ़ाई किए बिना ही अधिक नंबर लेने में कामयाब हो जाते हैं। यह एक आप्शनल सब्जेक्ट है, जिसका असर अन्य विषयों खासकर साइंस एवं कामर्स पर पड़ रहा है। इसके साथ ही राजकीय कालेजों के प्रतिनिधियों का यह भी मानना था कि यह सब्जेक्ट रोजगार प्रेरक की भूमिका में अन्य विषयों की तुलना में उतना सफल नहीं था।
डीपीई का यह होगा अब
डीपीई पहले जहां सिर्फ एक क्लास को खेल कराते थे, अब उनकी पूरे कालेज को खेल कराने की जिम्मेदारी भी सौंपी जाएगी। वे सुबह एवं शाम कालेज में खेल गतिविधियों को संचालित करेंगे। यही नहीं वे कालेजों में टीमें तैयार भी कराएंगे।
अनिवार्य की जाए फिजिकल एजुकेशन
यह मौजूदा समय की सबसे बड़ी जरूरत है। सरकार को चाहिए कि स्कूल एवं कालेज में फिजिकल एजुकेशन को अनिवार्य विषय के रूप में लागू करें। खेल प्रोत्साहन की दिशा में यह विषय जारी रखा जाना आवश्यक है।
डा. दिलेल सिंह, निदेशक,खेल विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र।
बेहद निराशाजनक फैसला है यह
यह निराशाजनक है कि सरकार फिजिकल एजुकेशन विषय को कालेजों में बंद कर रही है। इसका विरोध किया जाना चाहिए। क्योंकि एक ओर जहां सरकार खेलों को बढ़ावा दे रही है तो वहीं ऐसे विषय को बंद रखना सही नहीं है।
डा. भगत सिंह, एचओडी, फिजिकल एजुकेशन,एमडीयू।
बैठक में राजकीय कालेजों के प्रतिनिधियों के साथ साथ फिजिकल एजुकेशन के प्रतिनिधियों ने भी विषय बंद अथवा जारी रखने पर अपनी अपनी बात रखी। जिसमें आखिर में बात विषय को बंद करने पर खत्म हुई। राजकीय कालेजों ने एक प्रस्ताव बनाकर सरकार एवं प्रदेश के सभी विश्वविद्यालय के पास भेज दिया। जिसे सरकार द्वारा मंजूरी मिल गई है।
राजकीय महिला महाविद्यालय, मुरथल के प्राचार्य डा. जेके अग्रवाल कहते हैं कि यह विषय रोजगार प्रेरक की भूमिका से हट रहा था। सरकार की कोशिश कॉमर्स एवं साइंस जैसे विषय को आगे लाने की है। तभी इस विषय को बंद किया है।
बंद करने के पीछे दिया गया तर्क
फिजिकल एजुकेशन के डीपीई पढ़ाई कराने के बजाए माहौल खराब करते हैं। विद्यार्थी भी कम पढ़ाई किए बिना ही अधिक नंबर लेने में कामयाब हो जाते हैं। यह एक आप्शनल सब्जेक्ट है, जिसका असर अन्य विषयों खासकर साइंस एवं कामर्स पर पड़ रहा है। इसके साथ ही राजकीय कालेजों के प्रतिनिधियों का यह भी मानना था कि यह सब्जेक्ट रोजगार प्रेरक की भूमिका में अन्य विषयों की तुलना में उतना सफल नहीं था।
डीपीई का यह होगा अब
डीपीई पहले जहां सिर्फ एक क्लास को खेल कराते थे, अब उनकी पूरे कालेज को खेल कराने की जिम्मेदारी भी सौंपी जाएगी। वे सुबह एवं शाम कालेज में खेल गतिविधियों को संचालित करेंगे। यही नहीं वे कालेजों में टीमें तैयार भी कराएंगे।
अनिवार्य की जाए फिजिकल एजुकेशन
यह मौजूदा समय की सबसे बड़ी जरूरत है। सरकार को चाहिए कि स्कूल एवं कालेज में फिजिकल एजुकेशन को अनिवार्य विषय के रूप में लागू करें। खेल प्रोत्साहन की दिशा में यह विषय जारी रखा जाना आवश्यक है।
डा. दिलेल सिंह, निदेशक,खेल विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र।
बेहद निराशाजनक फैसला है यह
यह निराशाजनक है कि सरकार फिजिकल एजुकेशन विषय को कालेजों में बंद कर रही है। इसका विरोध किया जाना चाहिए। क्योंकि एक ओर जहां सरकार खेलों को बढ़ावा दे रही है तो वहीं ऐसे विषय को बंद रखना सही नहीं है।
डा. भगत सिंह, एचओडी, फिजिकल एजुकेशन,एमडीयू।
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