डाइट से जेबीटी पर पहले मिलेगी नौकरी

शिमला. प्रदेश सरकार की तरफ से चलाए जा रहे जिला प्रशिक्षण एवं अध्ययन संस्थानों (डाइट) से ट्रेनिंग करने वाले उम्मीदवारों को नौकरी में प्राथमिकता दी जाएगी।

इसके बाद पद खाली होने पर ही प्राइवेट कॉलेजों से ट्रेनिंग प्राप्त करने वाले उम्मीदवारों को मौका दिया जाएगा। ऐसे में सरकार की तरफ से निकाले गए जेबीटी के 1293 पदों को डाइट से प्रशिक्षित उम्मीदवारों से भरा जाएगा।

अभी डाइट से करीब 1461 और प्राइवेट कॉलेजों से 800 उम्मीदवारों ने वर्ष 2008-10 की अवधि में ट्रेनिंग ली है। डाइट और प्राइवेट कॉलेजों में ट्रेनिंग करने वाले उम्मीदवार एक साथ टेस्ट में बैठे थे, लेकिन नौकरी के मामले में सीधे सरकारी संस्थानों से ट्रेनिंग करने वालों को नौकरी मिलेगी। इसके लिए सरकार अलग से मंजूरी देगी। हालांकि सरकार के इस निर्णय से प्राइवेट प्रशिक्षुओं में रोष है।

साझा वरीयता सूची नहीं

डाइट और प्राइवेट कॉलेजों में एक साथ ट्रेनिंग करने वाले उम्मीदवारों की वरीयता साझा वरीयता सूची नहीं बनेगी। इससे प्राइवेट कॉलेजों से ट्रेनिंग प्राप्त करने वालों को बाद में ही नौकरी मिल पाएगी। हालांकि सरकार ने स्पष्ट किया है कि जेबीटी के पद खाली होते ही प्राइवेट कॉलेज के प्रशिक्षुओं को नौकरी दी जाएगी, मगर प्राथमिकता डाइट से ट्रेनिंग करने वालों को ही मिलेगी।

सबको मिलेगी नौकरी

एलीमेंटरी एजूकेशन के डायरेक्टर राजीव शर्मा ने स्पष्ट किया कि सभी प्रशिक्षणार्थियों को चरणबद्ध तरीके से नौकरी दी जाएगी। उन्होंने कहा कि डाइट से ट्रेनिंग प्राप्त प्रशिक्षुओं को नौकरी मिलने के तुरंत बाद प्राइवेट कॉलेज वालों को भी जेबीटी शिक्षक रखा जाएगा।

कोर्ट जाने की तैयारी

स्टेट प्राइवेट जेबीटी ट्रेनी टीचर्स एसोसिएशन ने डाइट और प्राइवेट कॉलेजों से ट्रेनिंग करने वालों की साझा वरीयता सूची न बनाए जाने पर आपत्ति जताई है।

एसोसिएशन के प्रधान मकालू वर्मा सहित अन्य पदाधिकारियों का आरोप है कि ऐसा करना नियमों के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि आवश्यकता पड़ने पर एसोसिएशन कोर्ट की शरण में भी जा सकती है। उन्होंने उम्मीद जताई कि सरकार अपने निर्णय पर फिर से विचार करेगी। उन्होंने कहा कि जब डाइट और प्राइवेट कॉलेजों के लिए एक साथ टेस्ट हुआ था तो वरीयता सूची को भी साझा बनाया जाना चाहिए। इससे उनके हितों को नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि प्रशिक्षुओं ने कभी भी सरकार का विरोध नहीं किया है, लेकिन जब उनके हितों की अनदेखी की जा रही है तो मजबूरन उनको आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ेगा।

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