एमफिल धारकों को बंधी आस

चंडीगढ़, जागरण ब्यूरो : उच्च न्यायालय के फैसले के बाद असम सरकार द्वारा महाविद्यालयों में प्राध्यापक पद के लिए एमफिल की डिग्री को मान्य करने से हरियाणा में भी सैकड़ों बेरोजगार युवाओं में आशा की किरण जगी है। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में भी एमफिल को प्राध्यापक पद के लिए पात्र मानने के लिए मामला विचाराधीन है। विश्र्वविद्यालयों व महाविद्यालयों में प्राध्यापक पद के लिए यूजीसी मापदंड निर्धारित करती है। इसी के आधार पर देशभर में प्राध्यापकों के पद भरे जाते हैं। वर्ष 2006 से पूर्व का प्राध्यापक के लिए नेट या पीएचडी की डिग्री अनिवार्य थी। यूजीसी ने द्वितीय संशोधन 2006 के तहत Fातक कक्षाओं को पढ़ाने के लिए एमफिल तथा Fातकोत्तर कक्षाओं को पढ़ाने के लिए नेट या पीएचडी की डिग्री की योग्यता निर्धारित की थी। यूजीसी के इस फैसले से हरियाणा समेत पूरे देश में हजारों एमफिल धारकों को स्थायी नौकरी मिल चुकी है। यूजीसी ने पत्र संख्या 28 11 जुलाई 2009 को तृतीय संशोधन के तहत कॉलेज प्राध्यापक पद के लिए नेट या पीएचडी की योग्यता निर्धारित कर दी तथा Fातक कक्षाओं तक एमफिल डिग्री की छूट खत्म कर दी। यूजीसी के इस फैसले के खिलाफ देशभर के उच्च न्यायालयों में याचिका दायर कर एमफिल डिग्री को नेट या पीएचडी से छूट देने तथा एमफिल को कोई कट आफ डेट देने की गुहार की गई है। इसी संदर्भ में असम के उच्च न्यायालय ने एमफिल डिग्री धारकों के हक में फैसला देते हुए जुलाई 2009 से पहले की एमफिल की डिग्री को कालेज प्राध्यापक के लिए नेट या पीएचडी से छूट दी है। इसके बाद असम सरकार ने गजट नोटिफिकेशन जारी कर एमफिल की डिग्री धारकों को Fातक कक्षाओं तक प्राध्यापक पद के लिए नेट व पीएचडी से छूट देने का पत्र जारी किया है। राजकीय महाविद्यालय अतिथि प्राध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष कुलदीप सिंह ने बताया कि प्रदेशभर के सरकारी कॉलेजों में वर्ष 2007-08 में यूजीसी व उच्चतर शिक्षा विभाग के नियमानुसार एम फिल धारकों को अतिथि प्राध्यापक लगाए गए थे। अधिकतर ने स्क्रीनिंग टेस्ट पास कर लिया लेकिन अब उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया जो सरासर गलत है।

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