करनाल. शिक्षा विभाग में नई पालिसी जेबीटी शिक्षकों को बेचैन करने वाली है। नए नियमों पर अमल होता है तो जेबीटी टीचर नियुक्ति होने से लेकर रिटायरमेंट तक जेबीटी ही बना रहेगा। 10 साल में उसे हेड टीचर के तौर पर एक पदोन्नति मिलती है, फिर वह भी नहीं मिल पाएगी।
राइट टू एजुकेशन एक्ट के तहत जिन विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या 150 तक रहेगी, उन विद्यालयों में हेड टीचर की पोस्ट नहीं रहेगी। विद्यार्थियों की संख्या 150 से अधिक रहने पर ही स्कूलों में हेड टीचर पद सृजित होंगे। प्रदेश में लगभग 13,900 विद्यालय हैं और वर्तमान में तकरीबन 6275 हेड टीचर स्कूलों में कार्यरत हैं। अगर नई पालिसी पर अमल होता है तो प्रदेश में मुश्किल से तीन हजार जेबीटी टीचर्स को ही हेड टीचर का पद प्राप्त हो सकेगा।
शेष विद्यालय हेड टीचर विहीन हो जाएंगे। जबकि स्कूलों में मिड डे मील, खातों को मेनटेन रखना, एसएसए की योजनाओं का क्रियान्वयन, सरकारी डाक आदि कार्य हेड टीचर को करने होते हैं। ऐसे में जिन स्कूलों में हेड टीचर नहीं रहेंगे। उन स्कूलों में सरकारी योजनाओं के समय पर क्रियान्वयन और स्कूल के अन्य विशेष कार्यो पर प्रश्न चिन्ह लग जाएगा, क्योंकि बिना जिम्मेदारी तय हुए कोई भी कार्य नियमित रूप से होना कठिन होता है। इन स्थितियों में स्कूलों में न केवल शैक्षणिक गतिविधियां प्रभावित हो सकती हैं, बल्कि विद्यार्थियों के सर्वागीण विकास से जुड़ी अन्य गतिविधियां भी लापरवाही का शिकार हो सकती हैं।
राइट टू एजुकेशन एक्ट के तहत जिन विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या 150 तक रहेगी, उन विद्यालयों में हेड टीचर की पोस्ट नहीं रहेगी। विद्यार्थियों की संख्या 150 से अधिक रहने पर ही स्कूलों में हेड टीचर पद सृजित होंगे। प्रदेश में लगभग 13,900 विद्यालय हैं और वर्तमान में तकरीबन 6275 हेड टीचर स्कूलों में कार्यरत हैं। अगर नई पालिसी पर अमल होता है तो प्रदेश में मुश्किल से तीन हजार जेबीटी टीचर्स को ही हेड टीचर का पद प्राप्त हो सकेगा।
शेष विद्यालय हेड टीचर विहीन हो जाएंगे। जबकि स्कूलों में मिड डे मील, खातों को मेनटेन रखना, एसएसए की योजनाओं का क्रियान्वयन, सरकारी डाक आदि कार्य हेड टीचर को करने होते हैं। ऐसे में जिन स्कूलों में हेड टीचर नहीं रहेंगे। उन स्कूलों में सरकारी योजनाओं के समय पर क्रियान्वयन और स्कूल के अन्य विशेष कार्यो पर प्रश्न चिन्ह लग जाएगा, क्योंकि बिना जिम्मेदारी तय हुए कोई भी कार्य नियमित रूप से होना कठिन होता है। इन स्थितियों में स्कूलों में न केवल शैक्षणिक गतिविधियां प्रभावित हो सकती हैं, बल्कि विद्यार्थियों के सर्वागीण विकास से जुड़ी अन्य गतिविधियां भी लापरवाही का शिकार हो सकती हैं।
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