शिमला. आखिरकार प्रदेश सरकार को 3102 टेन्योर शिक्षकों को तदर्थ अध्यापकों के समान वित्तीय लाभ देने के लिए बाध्य होना पड़ा है। इससे शिक्षकों को 50 हजार रुपए से एक लाख रुपए तक एरियर मिलेगा। इसमें टीजीटी, सीएंडवी, जेबीटी और लेक्चरर को लाभ होगा।
वित्तीय लाभ प्राप्त करने के लिए टेन्योर शिक्षकों को लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी, जिसमें हाईकोर्ट से शिक्षकों के पक्ष में निर्णय आया। इसे देखते हुए वित्त विभाग की तरफ से 15 दिसंबर, 2011 को आदेश जारी किए गए थे, जिसके आधार पर उच्च शिक्षा विभाग ने ताजा आदेश जारी किए हैं।
कौन है टेन्योर शिक्षक : प्रदेश में एलिमेंटरी और हायर एजुकेशन में वर्ष 1987 के बाद लगे कुछ शिक्षकों को 1-1-94 से नियमित कर दिया गया। यह शिक्षक समान सेवा शर्तो पर लगे थे, लेकिन नियमित करते समय कुछ शिक्षक छूट गए। छूटे शिक्षकों को टेन्योर श्रेणी में रखा गया, जिससे उनको वित्तीय लाभ से वंचित रहना पड़ा।
क्यों कोर्ट गया मामला
हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ ने 3102 टेन्योर शिक्षकों को सभी वित्तीय लाभ न दिए जाने पर आपत्ति जताई। जब मामला विभागीय स्तर
पर नहीं सुलझा तो उसे हाई कोर्ट ले जाया गया। सरकार ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचाया, लेकिन बाजी फिर भी शिक्षकों के हाथ लगी। इसके बाद संघ ने कोर्ट के आदेशों के आधार पर शिक्षकों का बकाया जल्द देने का आग्रह किया और उसके बाद उच्च शिक्षा विभाग की तरफ से सभी उप निदेशकों को लिखित आदेश जारी कर दिए गए हैं।
अध्यापक संघ का पक्ष
राजकीय अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष पीआर सांख्यान ने कहा, आदेशों पर अमल नहीं हो रहा था। उच्च शिक्षा निदेशक से बातचीत हुई और उसी आधार पर विभागीय स्तर पर आदेश जारी करने पड़े।
क्या कहते हैं शर्मा
उच्च शिक्षा निदेशक डॉ. ओपी शर्मा का कहना है कि टेन्योर शिक्षकों को 36 माह का बकाया एरियर जारी करने के आदेश जारी कर दिए गए हैं। वित्त विभाग के आदेश पर यह किया गया।
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नई दिल्ली/रांची/जयपुर लखनऊ/भोपाल.झारखंड, राजस्थान, उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में हुए आठ बड़े घोटालों में भ्रष्टाचारियों की 4000 करोड़ रुपए से अधिक बेनामी संपत्ति का पता चला। इन सब मामलों में आरोपी नेता, अफसर और बाबू को मामूली जेल या पूछताछ का सामना करना पड़ा। लेकिन उनकी काली कमाई सरकार वसूल नहीं पाई है।आखिर, ऐसा क्यों.. भास्कर ने की पड़ताल।
झारखंड में मधु कोड़ा सहित उनकी सरकार के आधा दर्जन मंत्री जेल में हैं। पूर्व सीएम कोड़ा पर 3300 करोड़ की अघोषित संपत्ति अर्जित करने की बात आयकर के असेसमेंट में उजागर हुई है। 31 अक्टूबर 2009 को आयकर की छापेमारी के वक्त जितने बैंक एकाउंट और संपत्ति जब्त किए गए थे, उतना ही जब्त है, बाकी का पता ही नहीं चला।
उन्हें 1300 करोड़ का टैक्स जमा कराने के लिए कहा गया है। यदि उन्होंने आयकर आयुक्त (अपील) के पास एक माह के भीतर अपील दायर नहीं की और टैक्स का भुगतान भी नहीं किया, तो विभाग उनकी जब्त संपत्ति को नीलाम कर सकता है। इससे प्राप्त राशि भारत सरकार के खाते में जमा करा दी जाएगी। लेकिन ऐसा होने की उम्मीद कम ही है। बताया रहा है कि कोड़ा अपील कर अपनी संपत्ति का आकलन गलत ढंग से करने और ज्यादा टैक्स लगाने की दलीलें दे सकते हैं।
राजस्थान में अगस्त 2010 को मारे गए छापे में अजमेर डेयरी के असिस्टेंट मैनेजर एसके शर्मा के पास 4.98 करोड़ रुपए नकद, 11 किलो सोना और करोड़ों रुपए की अचल संपत्ति मिली। मामला अभी कोर्ट में है। इस प्रकरण में उनकी पत्नी और बेटा-बेटी भी अभियुक्त हैं। पत्नी ओर बेटा-बेटी को अभियुक्त इसलिए बनाया गया है, क्योंकि उन्होंने रिश्वत की कमाई को सफेद करने में मदद की थी।
पति के रिश्वत के पैसे को पत्नी की कमाई बताकर रिटर्न भरी गई। कुछ पैसा बेटी के खाते में भी गया। बेटा उस पैसे से जमीनें खरीद रहा था। अब तक सिर्फ रिश्वतखोर का ही चालान होता था, लेकिन यह संभवत: पहला मामला है जिसमें परिवार के बाकी लोगों का भी चालान किया गया है।
शर्मा खुद शुरू से ही जेल में हैं। पत्नी अरुणा शर्मा और बेटे गौरव शर्मा ने दो दिन पहले ही समर्पण किया है। बेटी गरिमा शर्मा की गिरतारी 21 नवंबर 2011 को हुई। ये सभी जेल में हंै। इन्होंने हाईकोर्ट से भी पहले अग्रिम और अब जमानत की कोशिश की है, लेकिन ये कोशिशें विफल रहीं।
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव 1967 बैच के आईएएस एपी सिंह के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति जुटाने का मामला मार्च 2005 में दर्ज किया गया था। सीबीआई जांच में अखंड प्रताप सिंह के पास 84 अचल संपत्तियों का खुलासा हुआ था जिनकी कीमत 200 करोड़ रुपये से अधिक आंकी गई थी।
यह मामला आज भी कोर्ट में विचाराधीन है। उप्र के आईएएस अधिकारियों के एक्शन ग्रुप ने ही सिंह को महाभ्रष्ट अफसर करार दिया था। सिंह के खिलाफ जनहित याचिका दायर करने वाले पत्रकार शरत प्रधान कहते हैं कि सिंह के विदेशों के खातों की जांच ही नही की गई। वरना संपत्ति का आंकड़ा कहीं ज्यादा होता।
भोपाल में फरवरी 2010 में आयकर छापे में तीन करोड़ से अधिक नकद राशि मिलने के बाद मप्र के आईएएस दंपती अरविंद-टीनू जोशी की संपत्ति को एक तरफ आयकर विभाग ने और दूसरी तरफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने अटैच कर रखा है। बाद में हुई जांच में उनकी संपत्ति का आंकड़ा 450 करोड़ रुपए तक पहुंच गया। आयकर विभाग ने हाल ही में नोटिस देकर उन्हें 135 करोड़ रुपए आयकर जमा करने का नोटिस दिया है।
जोशी के पास अभी अपील करने से लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जान के रास्ते खुले हैं। लोकायुक्त और ईडी में उनके मामले लंबित हैं। छापे के बाद से ही अरविंद-टीनू जोशी निलंबित हैं। राज्य सरकार ने दोनों दागी अफसरों की जांच के लिए पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच की एकल सदस्यीय समिति का गठन किया। लेकिन इसकी रिपोर्ट अब तक नहीं आ पाई है। लेकिन छापे के बाद से वे सामाजिक बहिष्कार झेल रहे हैं।
राजधानी के प्रतिष्ठित भोजपुर क्लब से उनकी सदस्यता समाप्त कर दी गई है। ऐसा ही मामला पूर्व स्वास्थ्य संचालक डॉ. योगीराज शर्मा का है। चार साल पहले उनके पास मिली बेनामी संपत्ति के एवज में उनसे 12.5 करोड़ रुपए का आयकर जमा करने को कहा गया। लेकिन मामला कोर्ट में चला गया।
निलंबन के बाद शर्मा वर्ल्ड बैंक और अन्य संस्थाओं के लिए कंसल्टेंट का काम कर रहे हैं। इन मामलों के अलावा हाल ही में इंदौर के आरटीओ ऑफिस में पदस्थ क्लर्क से 40 करोड़ रुपए और उज्जैन नगर निगम में चपरासी के पास से 10 करोड़ रुपए की संपत्ति के प्रमाण मिले। इन केस की जांच शुरू हो गई है। नतीजा कब आएगा, जांच करने वाले भी नहीं जानते।
केस चलता रहा, अफसर अमेरिका में नौकरी कर आया
राजस्थान के आईएएस अधिकारी संजय पुरोहित के खिलाफ 1992 में आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया गया था। उनसे 40 लाख रुपए की राशि नकद बरामद हुई थी, लेकिन यह प्रकरण अभी तक अदालत में है। सरकारी सेवा से बर्खास्त पुरोहित इस दौरान अमेरिका में हाईप्रोफाइल नौकरी कर चुके हैं। एसीबी सूत्रों के अनुसार राशि अभी तक न्यायालय की निगरानी में बैंक में जमा है। इस प्रकरण को अदालती दांवपेंच में उलझा दिया गया है।
जब्त संपत्ति का क्या होता है?
"मौजूदा कानून के अनुसार जब मुकदमे का निबटारा होता है तो जब्त राशि का भी फैसला होता है। अगर अपराध साबित हो जाए और सजा हो तो राशि राजकीय कोष में जमा हो जाती है, और अगर अभियुक्तबरी हो जाए तो यह राशि ब्याज सहित वापस संबंधित व्यक्ति को मिल जाती है।"
-अजीतसिंह, राजस्थान एंटी करप्शन ब्यूरो के एडीजी
गुजारा कैसे होता है भ्रष्टों का
आयकर विभाग के अधिकारियों का कहना है कि भ्रष्टाचारी अफसर भ्रष्टाचार की काली कमाई को अपने नाम से कभी नहीं रखते। वे कृषि भूमि से अपनी आय दिखा देते हैं या फिर अर्जित परिसंपत्तियों को किसी ऐसे रिश्तेदार के नाम कर देते हैं, जिससे संपत्ति की पहचान मुश्किल होती है। यही संपत्ति बाद में उनके गुजारे ही नहीं, मौज के काम आती है।
शर्म कैसी? हर तरफ है सेटिंग
पिछले दिनों जब पीडब्लूडी के एक अफसर को रंगे हाथों पकड़ा गया तो वह रिश्वत वसूली की एक सूची निगल गया। एसीबी के अधिकारी उसकी सोनोग्राफी करवाने ले गए तो अफसर के पहचान वाले डॉक्टर ने जानबूझकर विलंब किया। इतना ही नहीं अफसर की एक संपत्ति को अपना बताने के लिए एक सीए भी उपस्थित हो गया।
यह रिपोर्ट आपको कैसी लगी? कोई कमी या विचार हो तो सीधे एसएमएस करें - 09223177890 पर।
वित्तीय लाभ प्राप्त करने के लिए टेन्योर शिक्षकों को लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी, जिसमें हाईकोर्ट से शिक्षकों के पक्ष में निर्णय आया। इसे देखते हुए वित्त विभाग की तरफ से 15 दिसंबर, 2011 को आदेश जारी किए गए थे, जिसके आधार पर उच्च शिक्षा विभाग ने ताजा आदेश जारी किए हैं।
कौन है टेन्योर शिक्षक : प्रदेश में एलिमेंटरी और हायर एजुकेशन में वर्ष 1987 के बाद लगे कुछ शिक्षकों को 1-1-94 से नियमित कर दिया गया। यह शिक्षक समान सेवा शर्तो पर लगे थे, लेकिन नियमित करते समय कुछ शिक्षक छूट गए। छूटे शिक्षकों को टेन्योर श्रेणी में रखा गया, जिससे उनको वित्तीय लाभ से वंचित रहना पड़ा।
क्यों कोर्ट गया मामला
हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ ने 3102 टेन्योर शिक्षकों को सभी वित्तीय लाभ न दिए जाने पर आपत्ति जताई। जब मामला विभागीय स्तर
पर नहीं सुलझा तो उसे हाई कोर्ट ले जाया गया। सरकार ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचाया, लेकिन बाजी फिर भी शिक्षकों के हाथ लगी। इसके बाद संघ ने कोर्ट के आदेशों के आधार पर शिक्षकों का बकाया जल्द देने का आग्रह किया और उसके बाद उच्च शिक्षा विभाग की तरफ से सभी उप निदेशकों को लिखित आदेश जारी कर दिए गए हैं।
अध्यापक संघ का पक्ष
राजकीय अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष पीआर सांख्यान ने कहा, आदेशों पर अमल नहीं हो रहा था। उच्च शिक्षा निदेशक से बातचीत हुई और उसी आधार पर विभागीय स्तर पर आदेश जारी करने पड़े।
क्या कहते हैं शर्मा
उच्च शिक्षा निदेशक डॉ. ओपी शर्मा का कहना है कि टेन्योर शिक्षकों को 36 माह का बकाया एरियर जारी करने के आदेश जारी कर दिए गए हैं। वित्त विभाग के आदेश पर यह किया गया।
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नई दिल्ली/रांची/जयपुर लखनऊ/भोपाल.झारखंड, राजस्थान, उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में हुए आठ बड़े घोटालों में भ्रष्टाचारियों की 4000 करोड़ रुपए से अधिक बेनामी संपत्ति का पता चला। इन सब मामलों में आरोपी नेता, अफसर और बाबू को मामूली जेल या पूछताछ का सामना करना पड़ा। लेकिन उनकी काली कमाई सरकार वसूल नहीं पाई है।आखिर, ऐसा क्यों.. भास्कर ने की पड़ताल।
झारखंड में मधु कोड़ा सहित उनकी सरकार के आधा दर्जन मंत्री जेल में हैं। पूर्व सीएम कोड़ा पर 3300 करोड़ की अघोषित संपत्ति अर्जित करने की बात आयकर के असेसमेंट में उजागर हुई है। 31 अक्टूबर 2009 को आयकर की छापेमारी के वक्त जितने बैंक एकाउंट और संपत्ति जब्त किए गए थे, उतना ही जब्त है, बाकी का पता ही नहीं चला।
उन्हें 1300 करोड़ का टैक्स जमा कराने के लिए कहा गया है। यदि उन्होंने आयकर आयुक्त (अपील) के पास एक माह के भीतर अपील दायर नहीं की और टैक्स का भुगतान भी नहीं किया, तो विभाग उनकी जब्त संपत्ति को नीलाम कर सकता है। इससे प्राप्त राशि भारत सरकार के खाते में जमा करा दी जाएगी। लेकिन ऐसा होने की उम्मीद कम ही है। बताया रहा है कि कोड़ा अपील कर अपनी संपत्ति का आकलन गलत ढंग से करने और ज्यादा टैक्स लगाने की दलीलें दे सकते हैं।
राजस्थान में अगस्त 2010 को मारे गए छापे में अजमेर डेयरी के असिस्टेंट मैनेजर एसके शर्मा के पास 4.98 करोड़ रुपए नकद, 11 किलो सोना और करोड़ों रुपए की अचल संपत्ति मिली। मामला अभी कोर्ट में है। इस प्रकरण में उनकी पत्नी और बेटा-बेटी भी अभियुक्त हैं। पत्नी ओर बेटा-बेटी को अभियुक्त इसलिए बनाया गया है, क्योंकि उन्होंने रिश्वत की कमाई को सफेद करने में मदद की थी।
पति के रिश्वत के पैसे को पत्नी की कमाई बताकर रिटर्न भरी गई। कुछ पैसा बेटी के खाते में भी गया। बेटा उस पैसे से जमीनें खरीद रहा था। अब तक सिर्फ रिश्वतखोर का ही चालान होता था, लेकिन यह संभवत: पहला मामला है जिसमें परिवार के बाकी लोगों का भी चालान किया गया है।
शर्मा खुद शुरू से ही जेल में हैं। पत्नी अरुणा शर्मा और बेटे गौरव शर्मा ने दो दिन पहले ही समर्पण किया है। बेटी गरिमा शर्मा की गिरतारी 21 नवंबर 2011 को हुई। ये सभी जेल में हंै। इन्होंने हाईकोर्ट से भी पहले अग्रिम और अब जमानत की कोशिश की है, लेकिन ये कोशिशें विफल रहीं।
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव 1967 बैच के आईएएस एपी सिंह के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति जुटाने का मामला मार्च 2005 में दर्ज किया गया था। सीबीआई जांच में अखंड प्रताप सिंह के पास 84 अचल संपत्तियों का खुलासा हुआ था जिनकी कीमत 200 करोड़ रुपये से अधिक आंकी गई थी।
यह मामला आज भी कोर्ट में विचाराधीन है। उप्र के आईएएस अधिकारियों के एक्शन ग्रुप ने ही सिंह को महाभ्रष्ट अफसर करार दिया था। सिंह के खिलाफ जनहित याचिका दायर करने वाले पत्रकार शरत प्रधान कहते हैं कि सिंह के विदेशों के खातों की जांच ही नही की गई। वरना संपत्ति का आंकड़ा कहीं ज्यादा होता।
भोपाल में फरवरी 2010 में आयकर छापे में तीन करोड़ से अधिक नकद राशि मिलने के बाद मप्र के आईएएस दंपती अरविंद-टीनू जोशी की संपत्ति को एक तरफ आयकर विभाग ने और दूसरी तरफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने अटैच कर रखा है। बाद में हुई जांच में उनकी संपत्ति का आंकड़ा 450 करोड़ रुपए तक पहुंच गया। आयकर विभाग ने हाल ही में नोटिस देकर उन्हें 135 करोड़ रुपए आयकर जमा करने का नोटिस दिया है।
जोशी के पास अभी अपील करने से लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जान के रास्ते खुले हैं। लोकायुक्त और ईडी में उनके मामले लंबित हैं। छापे के बाद से ही अरविंद-टीनू जोशी निलंबित हैं। राज्य सरकार ने दोनों दागी अफसरों की जांच के लिए पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच की एकल सदस्यीय समिति का गठन किया। लेकिन इसकी रिपोर्ट अब तक नहीं आ पाई है। लेकिन छापे के बाद से वे सामाजिक बहिष्कार झेल रहे हैं।
राजधानी के प्रतिष्ठित भोजपुर क्लब से उनकी सदस्यता समाप्त कर दी गई है। ऐसा ही मामला पूर्व स्वास्थ्य संचालक डॉ. योगीराज शर्मा का है। चार साल पहले उनके पास मिली बेनामी संपत्ति के एवज में उनसे 12.5 करोड़ रुपए का आयकर जमा करने को कहा गया। लेकिन मामला कोर्ट में चला गया।
निलंबन के बाद शर्मा वर्ल्ड बैंक और अन्य संस्थाओं के लिए कंसल्टेंट का काम कर रहे हैं। इन मामलों के अलावा हाल ही में इंदौर के आरटीओ ऑफिस में पदस्थ क्लर्क से 40 करोड़ रुपए और उज्जैन नगर निगम में चपरासी के पास से 10 करोड़ रुपए की संपत्ति के प्रमाण मिले। इन केस की जांच शुरू हो गई है। नतीजा कब आएगा, जांच करने वाले भी नहीं जानते।
केस चलता रहा, अफसर अमेरिका में नौकरी कर आया
राजस्थान के आईएएस अधिकारी संजय पुरोहित के खिलाफ 1992 में आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया गया था। उनसे 40 लाख रुपए की राशि नकद बरामद हुई थी, लेकिन यह प्रकरण अभी तक अदालत में है। सरकारी सेवा से बर्खास्त पुरोहित इस दौरान अमेरिका में हाईप्रोफाइल नौकरी कर चुके हैं। एसीबी सूत्रों के अनुसार राशि अभी तक न्यायालय की निगरानी में बैंक में जमा है। इस प्रकरण को अदालती दांवपेंच में उलझा दिया गया है।
जब्त संपत्ति का क्या होता है?
"मौजूदा कानून के अनुसार जब मुकदमे का निबटारा होता है तो जब्त राशि का भी फैसला होता है। अगर अपराध साबित हो जाए और सजा हो तो राशि राजकीय कोष में जमा हो जाती है, और अगर अभियुक्तबरी हो जाए तो यह राशि ब्याज सहित वापस संबंधित व्यक्ति को मिल जाती है।"
-अजीतसिंह, राजस्थान एंटी करप्शन ब्यूरो के एडीजी
गुजारा कैसे होता है भ्रष्टों का
आयकर विभाग के अधिकारियों का कहना है कि भ्रष्टाचारी अफसर भ्रष्टाचार की काली कमाई को अपने नाम से कभी नहीं रखते। वे कृषि भूमि से अपनी आय दिखा देते हैं या फिर अर्जित परिसंपत्तियों को किसी ऐसे रिश्तेदार के नाम कर देते हैं, जिससे संपत्ति की पहचान मुश्किल होती है। यही संपत्ति बाद में उनके गुजारे ही नहीं, मौज के काम आती है।
शर्म कैसी? हर तरफ है सेटिंग
पिछले दिनों जब पीडब्लूडी के एक अफसर को रंगे हाथों पकड़ा गया तो वह रिश्वत वसूली की एक सूची निगल गया। एसीबी के अधिकारी उसकी सोनोग्राफी करवाने ले गए तो अफसर के पहचान वाले डॉक्टर ने जानबूझकर विलंब किया। इतना ही नहीं अफसर की एक संपत्ति को अपना बताने के लिए एक सीए भी उपस्थित हो गया।
यह रिपोर्ट आपको कैसी लगी? कोई कमी या विचार हो तो सीधे एसएमएस करें - 09223177890 पर।
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