राकेश कुमार शर्मा, हिसार संस्कृत के शिक्षक यदि रसायन या भौतिक विज्ञान की गुत्थी सुलझाते हुए नजर आएं तो अजब ही लगेगा। हालांकि प्रदेश के शिक्षा विभाग को इससे कोई परेशानी नहीं हो रही। प्रदेश में 500 से भी अधिक अतिथि अध्यापक अन्य विषय की पढ़ाई करा रहे हैं। यह खुलासा दलीप सिंह द्वारा सूचना का अधिकार कानून के तहत मांगी गई जानकारी से हुआ है। उन्हें बताया गया कि जीएसएसए पी बरोदा में लगी विज्ञान की अतिथि अध्यापक सरोज शास्त्री बीएड हैं। जीएसएसएस चिंदर (3271) में लगे सोसल साइंस के अतिथि अध्यापक एमएससी बीएड हैं। जीएचएस नथुवाला(3412) में लगी सोसल साइंस की अतिथि अध्यापक रमनजीत कौर बीएससी बीएड हैं। जीएचएस दौलत पुर में लगी विज्ञान की अतिथि अध्यापक लवलीन एमए बीएड हैं। जीएचएसए पी बरोदा में अंगे्रजी की अतिथि अध्यापक मोनिका बीएससी हैं। मामले के प्रकाश में आने के बाद प्रदेश स्तर पर सात उप निदेशकों की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गई थी जिसने पूरे प्रदेश के गेस्ट शिक्षकों की फाइल देखी। इस जांच के दौरान 500 से अधिक ऐसे अतिथि अध्यापकों के संबंध में पता चला जो अन्य विषय की योग्यता होने के बावजूद दूसरे विषय की पढ़ाई करा रहे हैं। इस संबंध में उप निदेशक
व उस समय हिसार सहित अन्य जिलों में अतिथि अध्यापकों की जांच कर रहे जिले सिंह ने बताया कि जांच के दौरान कुछ मामले सामने आए थे। उनकी फाइल बनाकर विभाग को सौंप दी गई थी। आगे विभाग ने क्या किया उसके बारे में वह कुछ नहीं जानते।
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व उस समय हिसार सहित अन्य जिलों में अतिथि अध्यापकों की जांच कर रहे जिले सिंह ने बताया कि जांच के दौरान कुछ मामले सामने आए थे। उनकी फाइल बनाकर विभाग को सौंप दी गई थी। आगे विभाग ने क्या किया उसके बारे में वह कुछ नहीं जानते।
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भारत की लड़खड़ाती शिक्षा व्यवस्था व निदान
।। नृपेंद्र प्रताप राणा ।।
- सर्वश्रेष्ठ 300 विश्वविद्यालयों में एक भी भारतीय संस्थान शामिल नहीं -
प्राचीन काल से भारत उच्च शिक्षा का अग्रणी केंद्र रहा है. जहां नालंदा, तक्षशिला, उज्जैन एवं विक्रमशिला जैसे उच्च शिक्षा के वैभवशाली केंद्र दुनिया को अपनी समृद्धि द्वारा सीखने की राह दिखाते थे. गणित, विज्ञान, कृषि, खनन एवं चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में भारत ने दुनिया को उत्कृष्ट खोजों द्वारा जीने की नयी विधा दी.
हालांकि, आज भी भारतीय वैज्ञानिक, इंजीनियर, चिकित्सक एवं प्रबंधक दुनिया भर में भारत के नाम को आगे रखने में काफ़ी हद तक सफ़ल साबित हुए हैं. लेकिन उनकी ये काबिलियत भारतीय शिक्षा या यूं कहें कि उच्च एवं शोधपरक शिक्षा को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक लाने में अक्षम साबित होता नजर आता है. भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी इस गरिमा को लगभग खोता हुआ नजर आ रहा है. जहां अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड एवं अन्य यूरोपीय देशों के उच्च शिक्षा के अनगिनत केंद्र विश्व स्तर पर अपनी वरीयता कायम किये हुए हैं, भारत इस मामले में नीचे के पायदान पर खड़ा दिखता है. अभी हाल में किये गये एक विश्वव्यापी सर्वे में यह बात सामने आयी है कि दुनिया के सर्वश्रेष्ठ 300 विश्वविद्यालयों में एक भी भारतीय संस्थान शामिल नहीं है.
जबकि इसमें चीन सहित दुनिया के कई विकासशील देशों के प्रमुख विश्वविद्यालय अपनी जगह बना चुके हैं. हालांकि जहां तक भारतीय विश्वविद्यालयों से प्रति वर्ष पास करने वाले छात्रों की संख्या का सवाल है. यह प्रति वर्ष लगभग 30 लाख की संख्या के करीब है, जो कि 350 से ज्यादा विश्वविद्यालयों द्वारा अपनी डिग्री हासिल करते हैं.यह संख्या दुनिया में अमेरिका एवं चीन के बाद सबसे ज्यादा है.
भारत से प्रति वर्ष लगभग चार लाख छात्र इंजीनियिरग की डिग्री हासिल करते हैं, जो कि अमेरिका के मुकाबले लगभग दो-गुनी है. किंतु, जहां तक उच्च शिक्षा केंद्रों का सवाल है, केवल आइआइटी, आइआइएम और कुछ कानून संबंधी विश्वविद्यालय जैसे उच्च स्तरीय संस्थान ही भारतीय शिक्षा उत्पादों को दुनिया भर में प्रतिष्ठा दिला रहे हैं.बाकी संस्थानों की गुणवत्ता के ऊपर ही कई सवालिया निशान हैं और उन्हें अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खड़ा उतरने के लिए काफ़ी बिंदुओं पर बहुत बारे बदलाव की जरूरत है.
लेकिन जहां तक आइआइटी और आइआइएम जैसे संस्थानों का सवाल है, ये भी शैक्षिक, अभियंत्रण एवं विज्ञान संबंधी शोध के मामले में प्रमुख अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों की अपेक्षा काफ़ी निचले पायदान पर नजर आते हैं. ये बातें हाल ही में कई शिक्षाविदों, राजनेताओं, एवं कॉरपोरेट जगत के प्रमुखों द्वारा भी स्वीकारा जा चुका है. भारतीय मध्यम वर्ग के शिक्षा के प्रति तेजी से बढ़ते रुझानों के मद्देनजर भारतीय नॉलेज कमीशन ने यह अनुमान लगाया है कि भारत की वर्तमान शिक्षा व्यवस्था को सुचारु रूप से चलने हेतु 1500 विश्वविद्यालयों की जरूरत है.
इन परिस्थितियों को देखते हुए सरकार ने ना केवल आइआइटी और आइआइएम, बल्कि सैकड़ों मान्य विश्वविद्यालय खोलने के निर्देश राज्य सरकारों को निर्गत किये हैं. इसके अलावा यूजीसी के मानकों के आधार पर निजी विश्वविद्यालय भी रोज-रोज खुल रहे हैं. सरकार शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए विदेशी विश्वविद्यालयों को भी पूंजी निवेश के लिए प्रोत्साहित कर रही है. लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता की ओर सरकार ने अभी तक चुप्पी ही साध रखी है.
भारतीय विश्वविद्यालयों में योग्य शिक्षकों की भारी कमी है. इसके कारण शिक्षा एवं शोध का स्तर दिनों-दिन गिरता जा रहा है. कुछ गुनी शिक्षक ही घूम-घूम कर बड़े-बड़े संस्थानों के शिक्षा की आवश्यकताओं को पूरा कर रहे हैं. अगर भारत को विश्व के मानचित्र पर शीर्ष गौरव हासिल करना है और शिक्षा के क्षेत्र में अपनी खोई हुई गरिमा पानी है, तो विदेशों में उच्च शिक्षा एवं शोध के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को भारत की ओर आकर्षित करना होगा और सरकार को ऐसे ही कई और प्रयास करने होंगे.
भारतीय विश्वविद्यालयों में हो रहे शोधों की गुणवत्ता को भी काफ़ी सुधारने की जरूरत है, जिससे भविष्य में योग्य शिक्षाविदों के लिए भारत को विदेशों से किये हुए शोधकर्ताओं की जरूरत न हो. आने वाले वर्षो में भारत सरकार तीन करोड़ युवकों के यूनिवर्सिटी एजुकेशन की योजना बना रही है.
अत: सरकार के लिए यह बेहद जरूरी है कि इस योजना के पूर्ण संपादन से पहले उपरोक्त निर्देशित बिंदुओं पर त्वरित कार्रवाई कर भारतीय शिक्षा के ढांचे को सुदृढ़ता प्रदान करे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारी उपस्थिति दर्ज कराये, जिसके हम हकदार हैं.
(लेखक बिहार के वैशाली जिले के शुभईगढ़ के निवासी हैं. अभी वह ब्रिटेन के स्वानसी यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रहे हैं.)
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- सर्वश्रेष्ठ 300 विश्वविद्यालयों में एक भी भारतीय संस्थान शामिल नहीं -
प्राचीन काल से भारत उच्च शिक्षा का अग्रणी केंद्र रहा है. जहां नालंदा, तक्षशिला, उज्जैन एवं विक्रमशिला जैसे उच्च शिक्षा के वैभवशाली केंद्र दुनिया को अपनी समृद्धि द्वारा सीखने की राह दिखाते थे. गणित, विज्ञान, कृषि, खनन एवं चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में भारत ने दुनिया को उत्कृष्ट खोजों द्वारा जीने की नयी विधा दी.
हालांकि, आज भी भारतीय वैज्ञानिक, इंजीनियर, चिकित्सक एवं प्रबंधक दुनिया भर में भारत के नाम को आगे रखने में काफ़ी हद तक सफ़ल साबित हुए हैं. लेकिन उनकी ये काबिलियत भारतीय शिक्षा या यूं कहें कि उच्च एवं शोधपरक शिक्षा को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक लाने में अक्षम साबित होता नजर आता है. भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी इस गरिमा को लगभग खोता हुआ नजर आ रहा है. जहां अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड एवं अन्य यूरोपीय देशों के उच्च शिक्षा के अनगिनत केंद्र विश्व स्तर पर अपनी वरीयता कायम किये हुए हैं, भारत इस मामले में नीचे के पायदान पर खड़ा दिखता है. अभी हाल में किये गये एक विश्वव्यापी सर्वे में यह बात सामने आयी है कि दुनिया के सर्वश्रेष्ठ 300 विश्वविद्यालयों में एक भी भारतीय संस्थान शामिल नहीं है.
जबकि इसमें चीन सहित दुनिया के कई विकासशील देशों के प्रमुख विश्वविद्यालय अपनी जगह बना चुके हैं. हालांकि जहां तक भारतीय विश्वविद्यालयों से प्रति वर्ष पास करने वाले छात्रों की संख्या का सवाल है. यह प्रति वर्ष लगभग 30 लाख की संख्या के करीब है, जो कि 350 से ज्यादा विश्वविद्यालयों द्वारा अपनी डिग्री हासिल करते हैं.यह संख्या दुनिया में अमेरिका एवं चीन के बाद सबसे ज्यादा है.
भारत से प्रति वर्ष लगभग चार लाख छात्र इंजीनियिरग की डिग्री हासिल करते हैं, जो कि अमेरिका के मुकाबले लगभग दो-गुनी है. किंतु, जहां तक उच्च शिक्षा केंद्रों का सवाल है, केवल आइआइटी, आइआइएम और कुछ कानून संबंधी विश्वविद्यालय जैसे उच्च स्तरीय संस्थान ही भारतीय शिक्षा उत्पादों को दुनिया भर में प्रतिष्ठा दिला रहे हैं.बाकी संस्थानों की गुणवत्ता के ऊपर ही कई सवालिया निशान हैं और उन्हें अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खड़ा उतरने के लिए काफ़ी बिंदुओं पर बहुत बारे बदलाव की जरूरत है.
लेकिन जहां तक आइआइटी और आइआइएम जैसे संस्थानों का सवाल है, ये भी शैक्षिक, अभियंत्रण एवं विज्ञान संबंधी शोध के मामले में प्रमुख अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों की अपेक्षा काफ़ी निचले पायदान पर नजर आते हैं. ये बातें हाल ही में कई शिक्षाविदों, राजनेताओं, एवं कॉरपोरेट जगत के प्रमुखों द्वारा भी स्वीकारा जा चुका है. भारतीय मध्यम वर्ग के शिक्षा के प्रति तेजी से बढ़ते रुझानों के मद्देनजर भारतीय नॉलेज कमीशन ने यह अनुमान लगाया है कि भारत की वर्तमान शिक्षा व्यवस्था को सुचारु रूप से चलने हेतु 1500 विश्वविद्यालयों की जरूरत है.
इन परिस्थितियों को देखते हुए सरकार ने ना केवल आइआइटी और आइआइएम, बल्कि सैकड़ों मान्य विश्वविद्यालय खोलने के निर्देश राज्य सरकारों को निर्गत किये हैं. इसके अलावा यूजीसी के मानकों के आधार पर निजी विश्वविद्यालय भी रोज-रोज खुल रहे हैं. सरकार शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए विदेशी विश्वविद्यालयों को भी पूंजी निवेश के लिए प्रोत्साहित कर रही है. लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता की ओर सरकार ने अभी तक चुप्पी ही साध रखी है.
भारतीय विश्वविद्यालयों में योग्य शिक्षकों की भारी कमी है. इसके कारण शिक्षा एवं शोध का स्तर दिनों-दिन गिरता जा रहा है. कुछ गुनी शिक्षक ही घूम-घूम कर बड़े-बड़े संस्थानों के शिक्षा की आवश्यकताओं को पूरा कर रहे हैं. अगर भारत को विश्व के मानचित्र पर शीर्ष गौरव हासिल करना है और शिक्षा के क्षेत्र में अपनी खोई हुई गरिमा पानी है, तो विदेशों में उच्च शिक्षा एवं शोध के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को भारत की ओर आकर्षित करना होगा और सरकार को ऐसे ही कई और प्रयास करने होंगे.
भारतीय विश्वविद्यालयों में हो रहे शोधों की गुणवत्ता को भी काफ़ी सुधारने की जरूरत है, जिससे भविष्य में योग्य शिक्षाविदों के लिए भारत को विदेशों से किये हुए शोधकर्ताओं की जरूरत न हो. आने वाले वर्षो में भारत सरकार तीन करोड़ युवकों के यूनिवर्सिटी एजुकेशन की योजना बना रही है.
अत: सरकार के लिए यह बेहद जरूरी है कि इस योजना के पूर्ण संपादन से पहले उपरोक्त निर्देशित बिंदुओं पर त्वरित कार्रवाई कर भारतीय शिक्षा के ढांचे को सुदृढ़ता प्रदान करे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारी उपस्थिति दर्ज कराये, जिसके हम हकदार हैं.
(लेखक बिहार के वैशाली जिले के शुभईगढ़ के निवासी हैं. अभी वह ब्रिटेन के स्वानसी यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रहे हैं.)
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