नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों,राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानों समेत दूसरे केंद्रीय इंजीनियरिंग कालेजों में राष्ट्रीयस्तर पर प्रस्तावित एकल प्रवेश परीक्षा पर सरकार और देरी के मूड में नहीं है। लिहाजा, उसने हाई प्रोफाइल प्रौद्योगिकी एवं इंजीनियरिंग संस्थानों के बीच सहमति बनाने की कोशिशें तेज कर दी हैं। सूत्रों के मुताबिक वैसे तो राष्ट्रीय स्तर पर एकल प्रवेश परीक्षा को लेकर ज्यादा दिक्कतें नहीं हैं, लेकिन कुछ पुराने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आइआइटी) के किंतु-परंतु जरूर हैं। चूंकि पुराने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की विभिन्न क्षेत्रों में अलग पहचान है, इसलिए दाखिले के मामले में भी वह उसे बरकरार रखना चाहते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर एक समान प्रवेश परीक्षा को लेकर उपजे मतभेदों को दूर करने के लिए ही मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल और सातों पुराने आइआइटी के चेयरमैन एवं निदेशकों की आगामी 11 अप्रैल को अलग से बैठक होने जा रही है
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बिन सिलेबस नर्सरी की पढ़ाई |
नहीं मिलती सुविधाएं |
25 फीसदी बच्चे नर्सरी में |
नौ सालों से प्रदेशभर के स्कूलों में चल रही है नर्सरी क्लास, विद्यार्थियों को सुविधाएं ना के बराबर
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विकास बत्तान त्न कुरुक्षेत्र
प्रदेशभर के राजकीय स्कूलों में नौ साल पहले प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर नर्सरी कक्षा तो शुरू कर दी गई लेकिन उसके लिए अब तक सिलेबस तैयार नहीं हो पाया। बच्चे राजकीय स्कूलों की नर्सरी कक्षा में आते हैं, शोर मचाते हैं और वापस घर चले जाते हैं। नर्सरी कक्षा के बच्चों को क्या पढ़ाएं यह खुद शिक्षकों को भी नहीं पता।
इतना ही नहीं नर्सरी क्लास में पढऩे वाले विद्यार्थियों को सुविधाओं के नाम पर भी कुछ नहीं मिलता। जिससे साफ है कि राजकीय स्कूलों में कहने भर के लिए नर्सरी क्लास को शामिल किया गया है। जबकि हकीकत में नर्सरी क्लास स्कूलों के लिए मुसीबत बन गई है। इसमें आने वाले बच्चों को संभालने में शिक्षकों को सबसे ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है और उनकी संख्या ही शिक्षक-बच्चों के अनुपात में नहीं जुड़ती। ऐसे में नर्सरी को शुरू करने का उद्देश्य ही पूरा नहीं हो पा रहा। सिलेबस न होने के कारण शिक्षक बच्चों को बैठाकर वापस घर भेज देते हैं।
नर्सरी से भेदभाव गलत : शिक्षक मुकेश चौहान, संजय, धर्मबीर, सूबे सिंह सुजान, प्रवीण और पवन मित्तल का कहना है कि नर्सरी कक्षा से भेदभाव पूरी तरह गलत है। जब सरकार ने प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर नर्सरी कक्षा को सरकारी स्कूलों में शुरू कर दिया था तो उसके बाद इसके लिए सुविधाएं भी जुटानी चाहिए।
नर्सरी को शुरू हुए नौ साल बीत गए हैं लेकिन अभी तक सिलेबस भी लागू नहीं हो पाया। यह विभाग व सरकार की लापरवाही है। शिक्षकों ने कहा भूख व कपड़ों की जरूरत तो सभी बच्चों को बराबर होती है ऐसे में मिड-डे मील व वर्दी की सुविधा से नर्सरी को महरूम करना भी पूरी तरह गलत है।
नर्सरी नहीं आती गिनती में : सुमन आर्य
जिला प्राथमिक शिक्षा अधिकारी सुमन आर्य ने बताया कि नर्सरी कक्षा के बच्चे गिनती में नहीं आते। पहली से पांचवीं कक्षा तक के बच्चों को ही सरकार की ओर से प्रत्येक सुविधा देने का प्रावधान है। हालांकि मिड-डे मील भी नर्सरी के लिए नहीं आता लेकिन इन बच्चों को भी खाना शिक्षक अपने स्तर पर खिलाते हैं। यह प्रदेश सरकार और विभाग की पॉलिसी है जिसमें वे कुछ नहीं कर सकती। सरकारी आदेशों के बाद ही नर्सरी को राजकीय स्कूलों में शुरू किया गया था और बाकी की सुविधाएं भी सरकार के नियमों के अनुसार ही दी जाती हैं।
राजकीय स्कूलों में पहली से पांचवीं कक्षा के बच्चों को सरकार की ओर से निशुल्क वर्दी, मिड-डे मील और फंड मिलता है। इन सभी सुविधाओं से नर्सरी क्लास के बच्चों को वंचित रखा जाता है। नर्सरी क्लास के लिए नर्सरी टीचर्स ट्रेनिंग का कोर्स भी होता है। इस कोर्स को विशेष रूप से नर्सरी क्लास को पढ़ाने वाले शिक्षकों के लिए तैयार किया गया है। लेकिन प्रदेशभर के किसी भी स्कूल में एनटीटी शिक्षक की ही भर्ती नहीं है। ऐसे में जेबीटी शिक्षकों पर ही नर्सरी कक्षा को संभालने का जिम्मा है।
प्राथमिक शिक्षक संघ के जिला प्रधान विनोद चौहान ने बताया कि राजकीय स्कूलों में पढऩे वाले कुल बच्चों की संख्या के 25 फीसदी बच्चे नर्सरी कक्षा में हैं। ऐसे में सरकारी स्कूलों में इन बच्चों की महत्वपूर्ण भूमिका है। जिन्हें प्रदेश सरकार ने प्रत्येक सुविधा से दूर किया हुआ है। विनोद चौहान ने कहा शिक्षकों को सबसे ज्यादा दिक्कत नर्सरी कक्षा के बच्चों को संभालने में आती है लेकिन इन्हीं बच्चों की संख्या का अनुपात शिक्षकों के साथ नहीं जोड़ा जाता। उन्होंने सवाल उठाया कि जब सभी बच्चों को फंड, वर्दी व मिड-डे मील का लाभ दिया जाता है तो नर्सरी कक्षा को ही क्यों छोड़ा जाता है? इससे प्रदेश सरकार की आधारभूत शिक्षा में दोहरी नीति का पता चलता है। विनोद चौहान ने कहा कि यदि जेबीटी शिक्षकों के अनुपात में नर्सरी के बच्चों को नहीं गिना जाता तो एनटीटी शिक्षकों की भर्ती की जाए। ताकि जेबीटी शिक्षक अपना ध्यान पूी तरह पहली से पांचवीं कक्षा के बच्चों पर केंद्रित कर सकें।
कुरुक्षेत्र त्न नर्सरी की पढ़ाई कागजों में नहीं आई, स्कूल में बैठे नर्सरी के बच्चे। |
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