चंडीगढ़. शिक्षक भर्ती घोटाले में सीबीआई दिल्ली की जांच अब पूर्व होम सेक्रेटरी रामनिवास, पूर्व डीपीआई सम्वर्तक सिंह और पूर्व एडवाइजर प्रदीप मेहरा तक पहुंच सकती है। कारण है वह एसएमएस, जो इस घोटाले के आरोपी जॉली ने पूर्व डीपीआई सम्वर्तक सिंह को भेजे थे, जिनके मिलते ही सम्वर्तक सिंह की फोन की घंटी होम सेकेट्ररी के ऑफिस में बजती थी।
डीपीआई को भेजा था मैसेज- मनी अरेंज्ड
पुलिस ने इस घोटाले में पकड़े गए आरोपी हरदेव और जॉली के तीन मोबाइल फोन फोरेंसिक जांच के लिए भेजे थे। फोरेंसिक जांच में जॉली का एक एसएमएस सामने आया, जिसमें लिखा था, मनी अरेंज्ड। सम्वर्तक सिंह को गया यह मैसेज साबित कर रहा था कि रिश्वत की रकम में अफसरों का भी हिस्सा
था, लेकिन इस मैसेज की सच्चाई अफसरी दबाव में दब गई।
जॉली सब जानता है
शर्मनाक है कि इस मामले में लंबी जांच-पड़ताल के बाद पुलिस और सीबीआई यह तक पता नहीं लगा पाई कि आखिर आरोपियों को सीकेट्र जानकारियां कौन उपलब्ध करवाता था? जबकि सूत्रों के अनुसार जॉली पुलिस इंटेरोगेशन में बता चुका है कि पैसा किसके नाम पर मांगा गया था और कैसे बांटा जाना था। बावजूद इसके सीबीआई और पुलिस रिकॉर्ड कहता है कि जॉली से कुछ पता नहीं चला।
पुलिस ने बदल दी थी कहानी
तत्कालीन क्राइम ब्रांच इंचार्ज चरणजीत सिंह ने कोर्ट में दी चार्जशीट में बताया था कि 5 सितंबर 2009 को वह सेक्टर 29-30 के चौक पर खड़े थे। इसी दौरान कमलप्रीत ने उन्हें शिकायत कि कोई भर्ती के नाम पर उनसे रिश्वत मांग रहा है। इस पर उन्होंने अकेले ही कार्रवाई की और दो आरोपियों को दबोच लिया। दूसरी ओर प्रशासन ने प्रेस विज्ञप्ति में बताया था कि शिकायतकर्ता कमलप्रीत एडीसी को लेकर होम सेक्रेटरी के पास आई थी। होम सेक्रेटरी के कहने पर आरोपियों के फोन सर्विलांस पर लगाए गए और सबूत मिलने पर गिरफ्तारी हुई। सवाल उठे कि रामनिवास सच बोल रहे हैं, या कोर्ट में दी गई इंस्पेक्टर चरणजीत की चार्जशीट?
ढाई साल में नतीजा जीरो
भर्ती के लिए रिश्वत मांगने में शिक्षा विभाग के किसी अधिकारी की भूमिका है या नहीं, यह पता लगाने में ढाई साल लग चुके हैं। न पुलिस और न सीबीआई चंडीगढ़ यह पता लगा सकी है कि आखिर इसमें किसकी मिलीभगत थी। अब तक सब कुछ छिपाया गया है।
ऐसे खुला था घोटाला
अगस्त 2007: शिक्षा विभाग ने निकाले टीचर्स के लिए 536 पद।
19 जुलाई 2009: खरड़ की कमलप्रीत ने भी परीक्षा दी।
दलाल हरदेव का कमलप्रीत को फोन आया, कहा टीचर बनना है, तो मुझसे मिलो। पेपर से लेकर इंटरव्यू में पास करवा दूंगा। 4.25 लाख रुपये लगेंगे, कहा इसमें हिस्सा अफसरों का भी है।
2 सितंबर 2009: होम सेक्रेटरी रामनिवास को कमलप्रीत ने एडीसी पीएस शेरगिल के जरिये इस रिश्वतखोरी की जानकारी दी।
3 सितंबर: होम सेकेट्ररी के आदेश पर आरोपी जॉली और हरदेव के फोन नंबर सर्विलांस पर लगाए गए।
5 सितंबर: जॉली और हरदेव गिरफ्तार
7 सितंबर: जॉली से शिक्षक भर्ती के आवेदकों की लिस्ट मिली। जॉली ने उगला डीपीआई सम्वर्तक का नाम।
23 अक्टूबर: घोटाले की रिपोर्ट सौंपी गई होम सेकेट्ररी को, यहीं दफन हो गया घोटाला।
12 सितंबर: पुलिस ने डीपीआई सम्वर्तक सिंह को सवालों की फेहरिस्त दी और 24 घंटे में जवाब मांगा।
- 17 सितंबर: डीपीआई ने दिया पुलिस को जवाब।
- 21 सितंबर: पुलिस ने जॉली और हरदेव के तीन मोबाइल फोन सीएफएसएल में जांच के लिए भेजे।
- 5 अक्टूबर: सीएफएसएल ने भेजी मोबाइल की जांच रिपोर्ट।
- 12 अक्टूबर: पुलिस ने दोबारा की डीपीआई सम्वर्तक सिंह से पूछताछ।
-14 अक्टूबर: पुलिस ने जॉली के खिलाफ किया एक नया केस दर्ज, दोबारा रिमांड पर लिया।
- 23 अक्टूबर: इस घोटाले की रिपोर्ट सौंपी गई होम सेक्रेटरी को और बस यहीं दफन हो गया घोटाला।
- 10 नवंबर: डीपीआई सम्वर्तक को हटाया गया, वापस भेज दिया गया हरियाणा।
डीपीआई को भेजा था मैसेज- मनी अरेंज्ड
पुलिस ने इस घोटाले में पकड़े गए आरोपी हरदेव और जॉली के तीन मोबाइल फोन फोरेंसिक जांच के लिए भेजे थे। फोरेंसिक जांच में जॉली का एक एसएमएस सामने आया, जिसमें लिखा था, मनी अरेंज्ड। सम्वर्तक सिंह को गया यह मैसेज साबित कर रहा था कि रिश्वत की रकम में अफसरों का भी हिस्सा
था, लेकिन इस मैसेज की सच्चाई अफसरी दबाव में दब गई।
जॉली सब जानता है
शर्मनाक है कि इस मामले में लंबी जांच-पड़ताल के बाद पुलिस और सीबीआई यह तक पता नहीं लगा पाई कि आखिर आरोपियों को सीकेट्र जानकारियां कौन उपलब्ध करवाता था? जबकि सूत्रों के अनुसार जॉली पुलिस इंटेरोगेशन में बता चुका है कि पैसा किसके नाम पर मांगा गया था और कैसे बांटा जाना था। बावजूद इसके सीबीआई और पुलिस रिकॉर्ड कहता है कि जॉली से कुछ पता नहीं चला।
पुलिस ने बदल दी थी कहानी
तत्कालीन क्राइम ब्रांच इंचार्ज चरणजीत सिंह ने कोर्ट में दी चार्जशीट में बताया था कि 5 सितंबर 2009 को वह सेक्टर 29-30 के चौक पर खड़े थे। इसी दौरान कमलप्रीत ने उन्हें शिकायत कि कोई भर्ती के नाम पर उनसे रिश्वत मांग रहा है। इस पर उन्होंने अकेले ही कार्रवाई की और दो आरोपियों को दबोच लिया। दूसरी ओर प्रशासन ने प्रेस विज्ञप्ति में बताया था कि शिकायतकर्ता कमलप्रीत एडीसी को लेकर होम सेक्रेटरी के पास आई थी। होम सेक्रेटरी के कहने पर आरोपियों के फोन सर्विलांस पर लगाए गए और सबूत मिलने पर गिरफ्तारी हुई। सवाल उठे कि रामनिवास सच बोल रहे हैं, या कोर्ट में दी गई इंस्पेक्टर चरणजीत की चार्जशीट?
ढाई साल में नतीजा जीरो
भर्ती के लिए रिश्वत मांगने में शिक्षा विभाग के किसी अधिकारी की भूमिका है या नहीं, यह पता लगाने में ढाई साल लग चुके हैं। न पुलिस और न सीबीआई चंडीगढ़ यह पता लगा सकी है कि आखिर इसमें किसकी मिलीभगत थी। अब तक सब कुछ छिपाया गया है।
ऐसे खुला था घोटाला
अगस्त 2007: शिक्षा विभाग ने निकाले टीचर्स के लिए 536 पद।
19 जुलाई 2009: खरड़ की कमलप्रीत ने भी परीक्षा दी।
दलाल हरदेव का कमलप्रीत को फोन आया, कहा टीचर बनना है, तो मुझसे मिलो। पेपर से लेकर इंटरव्यू में पास करवा दूंगा। 4.25 लाख रुपये लगेंगे, कहा इसमें हिस्सा अफसरों का भी है।
2 सितंबर 2009: होम सेक्रेटरी रामनिवास को कमलप्रीत ने एडीसी पीएस शेरगिल के जरिये इस रिश्वतखोरी की जानकारी दी।
3 सितंबर: होम सेकेट्ररी के आदेश पर आरोपी जॉली और हरदेव के फोन नंबर सर्विलांस पर लगाए गए।
5 सितंबर: जॉली और हरदेव गिरफ्तार
7 सितंबर: जॉली से शिक्षक भर्ती के आवेदकों की लिस्ट मिली। जॉली ने उगला डीपीआई सम्वर्तक का नाम।
23 अक्टूबर: घोटाले की रिपोर्ट सौंपी गई होम सेकेट्ररी को, यहीं दफन हो गया घोटाला।
12 सितंबर: पुलिस ने डीपीआई सम्वर्तक सिंह को सवालों की फेहरिस्त दी और 24 घंटे में जवाब मांगा।
- 17 सितंबर: डीपीआई ने दिया पुलिस को जवाब।
- 21 सितंबर: पुलिस ने जॉली और हरदेव के तीन मोबाइल फोन सीएफएसएल में जांच के लिए भेजे।
- 5 अक्टूबर: सीएफएसएल ने भेजी मोबाइल की जांच रिपोर्ट।
- 12 अक्टूबर: पुलिस ने दोबारा की डीपीआई सम्वर्तक सिंह से पूछताछ।
-14 अक्टूबर: पुलिस ने जॉली के खिलाफ किया एक नया केस दर्ज, दोबारा रिमांड पर लिया।
- 23 अक्टूबर: इस घोटाले की रिपोर्ट सौंपी गई होम सेक्रेटरी को और बस यहीं दफन हो गया घोटाला।
- 10 नवंबर: डीपीआई सम्वर्तक को हटाया गया, वापस भेज दिया गया हरियाणा।
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