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टीईटी होगी अर्हताकारी परीक्षा !
लखनऊ, जागरण ब्यूरो : अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी) को राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) की मंशा के अनुरूप शिक्षकों की नियुक्ति के लिए अर्हताकारी परीक्षा का दर्जा दिलाने पर सहमति बनी है। शिक्षकों की नियुक्ति टीईटी की मेरिट के आधार पर न करके पूर्व में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार अभ्यर्थियों के हाईस्कूल, इंटरमीडिएट और स्नातक स्तर पर प्राप्त किए गए अंकों के प्रतिशत के आधार पर की जाएगी। इसके लिए उप्र बेसिक शिक्षा (अध्यापक) सेवा नियमावली, 1981 में संशोधन किया जाएगा। विवादों में घिरे टीईटी के पहलुओं पर विचार करने के बाद मुख्य सचिव जावेद उस्मानी की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति की बुधवार को हुई बैठक में इस पर सहमति बनी है। समिति रिपोर्ट मुख्यमंत्री को भेजेगी। इन परिस्थितियों में टीईटी को निरस्त करने की संभावना भी है। हालांकि, समिति की रिपोर्ट पर अंतिम फैसला मुख्यमंत्री को करना है। उच्च स्तरीय समिति की बैठक में शिक्षा के अधिकार कानून के तहत अनिवार्य किए गए टीईटी को लेकर एनसीटीई के 11 फरवरी 2011 को जारी निर्देशों पर चर्चा हुई, जिसमें टीईटी को सिर्फ अर्हताकारी परीक्षा घोषित किया गया है। समिति ने इस तथ्य का भी संज्ञान लिया कि एनसीटीई के दिशानिर्देशों पर अमल करते हुए अन्य राज्यों ने भी टीईटी को शिक्षकों की नियुक्ति के लिए सिर्फ अर्हताकारी परीक्षा का ही दर्जा दिया है। टीईटी की मेरिट के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति का फैसला करने वाला उप्र एकमात्र राज्य है। समिति ने इस तथ्य पर भी गौर किया कि बीती 13 नवंबर को हुए टीईटी के परिणाम में जिस तरह से धांधली उजागर हुई है, उससे अदालत या किसी अन्य के लिए यह निष्कर्ष निकालना स्वाभाविक है कि इस अनियमितता को अंजाम देने के लिए ही टीईटी की मेरिट को शिक्षकों की नियुक्ति का आधार बनाने का फैसला किया गया, यानी यह गोरखधंधा पूर्व नियोजित था। लिहाजा समिति इस बात पर सहमत हुई कि टीईटी को सिर्फ अर्हताकारी परीक्षा होना चाहिए। बैठक के सिलसिले में बेसिक शिक्षा विभाग ने माध्यमिक शिक्षा विभाग से टीईटी के आयोजन से संबंधित कई बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी। माध्यमिक शिक्षा विभाग द्वारा उपलब्ध करायी गई जानकारियों को भी समिति के समक्ष प्रस्तुत किया गया। गौरतलब है परिषदीय स्कूलों में 72,825 शिक्षकों की नियुक्ति के लिए बेसिक शिक्षा विभाग की विज्ञप्ति को उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा चुकी है। याचिका की सुनवाई करते हुए अदालत ने शिक्षकों की नियुक्ति पर रोक लगा दी है। बेसिक शिक्षा विभाग में यह भी माना जा रहा है कि शिक्षकों की भर्ती की विज्ञप्ति का अदालत में तकनीकी तौर पर बचाव कर पाना भी बेहद मुश्किल होगा।
टीईटी होगी अर्हताकारी परीक्षा !
लखनऊ, जागरण ब्यूरो : अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी) को राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) की मंशा के अनुरूप शिक्षकों की नियुक्ति के लिए अर्हताकारी परीक्षा का दर्जा दिलाने पर सहमति बनी है। शिक्षकों की नियुक्ति टीईटी की मेरिट के आधार पर न करके पूर्व में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार अभ्यर्थियों के हाईस्कूल, इंटरमीडिएट और स्नातक स्तर पर प्राप्त किए गए अंकों के प्रतिशत के आधार पर की जाएगी। इसके लिए उप्र बेसिक शिक्षा (अध्यापक) सेवा नियमावली, 1981 में संशोधन किया जाएगा। विवादों में घिरे टीईटी के पहलुओं पर विचार करने के बाद मुख्य सचिव जावेद उस्मानी की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति की बुधवार को हुई बैठक में इस पर सहमति बनी है। समिति रिपोर्ट मुख्यमंत्री को भेजेगी। इन परिस्थितियों में टीईटी को निरस्त करने की संभावना भी है। हालांकि, समिति की रिपोर्ट पर अंतिम फैसला मुख्यमंत्री को करना है। उच्च स्तरीय समिति की बैठक में शिक्षा के अधिकार कानून के तहत अनिवार्य किए गए टीईटी को लेकर एनसीटीई के 11 फरवरी 2011 को जारी निर्देशों पर चर्चा हुई, जिसमें टीईटी को सिर्फ अर्हताकारी परीक्षा घोषित किया गया है। समिति ने इस तथ्य का भी संज्ञान लिया कि एनसीटीई के दिशानिर्देशों पर अमल करते हुए अन्य राज्यों ने भी टीईटी को शिक्षकों की नियुक्ति के लिए सिर्फ अर्हताकारी परीक्षा का ही दर्जा दिया है। टीईटी की मेरिट के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति का फैसला करने वाला उप्र एकमात्र राज्य है। समिति ने इस तथ्य पर भी गौर किया कि बीती 13 नवंबर को हुए टीईटी के परिणाम में जिस तरह से धांधली उजागर हुई है, उससे अदालत या किसी अन्य के लिए यह निष्कर्ष निकालना स्वाभाविक है कि इस अनियमितता को अंजाम देने के लिए ही टीईटी की मेरिट को शिक्षकों की नियुक्ति का आधार बनाने का फैसला किया गया, यानी यह गोरखधंधा पूर्व नियोजित था। लिहाजा समिति इस बात पर सहमत हुई कि टीईटी को सिर्फ अर्हताकारी परीक्षा होना चाहिए। बैठक के सिलसिले में बेसिक शिक्षा विभाग ने माध्यमिक शिक्षा विभाग से टीईटी के आयोजन से संबंधित कई बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी। माध्यमिक शिक्षा विभाग द्वारा उपलब्ध करायी गई जानकारियों को भी समिति के समक्ष प्रस्तुत किया गया। गौरतलब है परिषदीय स्कूलों में 72,825 शिक्षकों की नियुक्ति के लिए बेसिक शिक्षा विभाग की विज्ञप्ति को उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा चुकी है। याचिका की सुनवाई करते हुए अदालत ने शिक्षकों की नियुक्ति पर रोक लगा दी है। बेसिक शिक्षा विभाग में यह भी माना जा रहा है कि शिक्षकों की भर्ती की विज्ञप्ति का अदालत में तकनीकी तौर पर बचाव कर पाना भी बेहद मुश्किल होगा।
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