डिग्री फर्जी, नौकरी असली का खेल अब और नहीं

शिक्षा विभाग में फर्जी डिग्री लेकर नौकरी एवं उसके बाद पदोन्नति हासिल करने का खेल अब और नहीं चलेगा। शिक्षा निदेशालय ने करीब एक साल में विभाग में हुई शिक्षकों एवं विभागीय लिपिकों की नियुक्ति के दौरान दी गई डिग्री की अब जांच करने का फैसला किया है। 


इस विभागीय कार्रवाई की पुष्टि मौलिक शिक्षा विभाग के सहायक निदेशक अश्वनी कुमार ने की है। उनके अनुसार लगातार मिल रही शिकायतों के बाद विभाग गंभीर है। जिस पर विभिन्न स्तरों पर जांच प्रक्रिया शुरू की गई है। 


कुछ मामलों में विजिलेंस क्राइम ब्रांच को भी मामला सौंपा गया है। जो दोषी होगा, उसके खिलाफ
विभागीय कार्रवाई होगी। मामले में डीईओ सुमनलता अरोड़ा एवं बीईओ कुलदीप दहिया ने अपनी व्यस्तता बताते हुए जानकारी देने में असमर्थता जाहिर की। 


विभागीय सूत्रों के अनुसार विभाग में बीते माह एक शिकायत पहुंची, जिसमें फर्जी डिग्री के आधार पर नियुक्ति पाने वाले शिक्षकों एवं विभागीय कर्मचारियों की जानकारी दी गई। शिकायत में यह भी बताया गया कि नौकरी कर रहे शिक्षकों की डिग्री अवैध है। 


विभाग ने पहली नजर में ही शिकायत पर जांच शुरू कर दी। शिकायत में दम नजर आने के बाद अब विभाग ने सभी शिक्षा अधिकारियों से कहा है कि वे हाल ही में लगे शिक्षकों की डिग्री की जांच करें। जांच के दौरान सभी शिक्षकों से मूल प्रमाण पत्र लिए जाएं तथा प्रमाण पत्रों को संबंधित विवि में भी भेजा जाए। 


कैसे होता है फर्जीवाड़ा 


निजी डिग्री कालेजों के विभिन्न विवि से होने वाले व्यापारिक समझौते के तहत फर्जी डिग्री मिलती हैं, जिसमें विद्यार्थियों को न तो कोई क्लास अटैंड करनी होती है और न ही परीक्षा देनी होती है। अब तय दाम नकद दिए जाते हैं और व्यक्ति बन जाता है बीए, एमए पास। जानकार बताते हैं कि 20 हजार से 50 हजार रुपए तक में यह डिग्री दी जाती है। बाद में इनमें से कुछ लोग जोड़-तोड़ कर नौकरी भी पा जाते हैं।

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