सरकारी नौकरियों में प्रोन्नति में भी अनुसूचित जाति (एससी) व अनुसूचित जनजाति (एसटी) के आरक्षण पर चुप्पी साधे रही सरकार 22 अगस्त को संसद में उसके लिए विधेयक लाएगी। दोनों सदनों में बसपा सांसदों हंगामे से घबराई सरकार को यह भरोसा देना पड़ा कि वह इसके लिए 21 अगस्त को सर्वदलीय बैठक बुलाएगी और अगले दिन संविधान संशोधन विधेयक लाएगी। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय के बाद हुआ है जिसमें उसने यूपी सरकार के सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण के फैसले को रद कर दिया था। इसके बाद ही बसपा ने इसके लिए संवैधानिक संशोधन की मांग की थी। राज्यसभा में गुरुवार को सदन की कार्यवाही शुरू होते ही बसपा सुप्रीमो मायावती ने यह मामला उठाया। उन्होंने कहा कि एससी/एसटी को प्रोन्नति में भी आरक्षण की बाबत सरकार ने संसद के पिछले सत्र में ही सर्वदलीय बैठक बुलाने का आश्वासन दिया था, लेकिन अब तक किया कुछ नहीं। लिहाजा उसे अब सीधे विधेयक लाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से जब तक इसका आश्वासन नहीं मिलता, बसपा सदन की कार्यवाही नहीं चलने देगी। माहौल नहीं सुधरा तो सदन की कार्यवाही 12:00 बजे तक स्थगित कर दी गई। कार्यवाही फिर शुरू हुई तो मायावती ने न मुद्दा बदलने का मौका दिया और न अपने तेवर बदले। मायावती और सतीश चंद्र मिश्र को छोड़ बसपा सदस्य सभापति के आसन तक चले गए। दूसरी तरफ से रामविलास पासवान भी पहुंचे। तभी सपा के नरेश अग्रवाल समेत दूसरे सदस्य भी उसका विरोध करते हुए आ गए। नरेश अग्रवाल ने कहा, दलितों में पासी, बाल्मीकि और कठेरिया को आरक्षण का अब तक पूरा लाभ नहीं मिला है, इसलिए उन्हें अलग से आरक्षण दिया जाना चाहिए। हंगामे के चलते सदन को पुन: स्थगित करना पड़ा। उस दौरान पीएमओ में राज्यमंत्री वी नारायणसामी और संसदीय कार्य राज्यमंत्री राजीव शुक्ला मायावती को समझाने उनकी सीट पर पहुंचे। कभी सतीश चंद्र मिश्र तो कभी मायावती से मिलने के बाद दोनों पीएम से सलाह मशविरा करने लगे। थोड़ी देर में मायावती और मिश्र प्रधानमंत्री की सीट के पास पहुंचे। कुछ गुफ्तगू हुई। इसके बाद पीछे की सीट पर बैठे नारायणसामी के पास मायावती पहुंचीं। यहां तक कि सरकार का जवाब भी बसपा प्रमुख की सलाह से ही तय हुआ
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गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों पर जवाब तलब
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जसबीर ¨सह एवं जस्टिस आरके जैन
की खंडपीठ ने हरियाणा सरकार को नोटिस जारी कर प्रदेश में चल रहे गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों के संबंध में जवाब तलब किया है। साथ ही, 30 अगस्त तक स्टेटस रिपोर्ट देने का आदेश दिया है। एक याचिका पर सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने सरकार से पूछा है कि राज्य में कितने स्कूल गैर-मान्यता प्राप्त हैं? क्या इनके खिलाफ शिकायतें आई और क्या कार्रवाई की गई? याचिकाकर्ता के एडवोकेट सज्जन ¨सह मलिक ने सुनवाई के दौरान बताया कि हरियाणा के शिक्षा विभाग द्वारा कराए गए सर्वे में यह सामने आया है कि राज्य में बड़े पैमाने पर गैर-मान्यता प्राप्त स्कूल चल रहे हैं। इनमें से 550 स्कूल महज फरीदाबाद जिले में हैं। याचिकाकर्ता की ओर से फरीदाबाद के कुछ गैर-मान्यता प्राप्त स्कूलों की जानकारी दी गई थी
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गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों पर जवाब तलब
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जसबीर ¨सह एवं जस्टिस आरके जैन
की खंडपीठ ने हरियाणा सरकार को नोटिस जारी कर प्रदेश में चल रहे गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों के संबंध में जवाब तलब किया है। साथ ही, 30 अगस्त तक स्टेटस रिपोर्ट देने का आदेश दिया है। एक याचिका पर सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने सरकार से पूछा है कि राज्य में कितने स्कूल गैर-मान्यता प्राप्त हैं? क्या इनके खिलाफ शिकायतें आई और क्या कार्रवाई की गई? याचिकाकर्ता के एडवोकेट सज्जन ¨सह मलिक ने सुनवाई के दौरान बताया कि हरियाणा के शिक्षा विभाग द्वारा कराए गए सर्वे में यह सामने आया है कि राज्य में बड़े पैमाने पर गैर-मान्यता प्राप्त स्कूल चल रहे हैं। इनमें से 550 स्कूल महज फरीदाबाद जिले में हैं। याचिकाकर्ता की ओर से फरीदाबाद के कुछ गैर-मान्यता प्राप्त स्कूलों की जानकारी दी गई थी
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हर स्कूल में डॉक्टर-नर्स तैनात करो: हाई कोर्ट
हाई कोर्ट।। दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार से कहा है कि वह हर स्कूल में स्टूडेंट को मेडिकल सुविधा देने के लिए एक-एक डॉक्टर की व्यवस्था करे साथ ही एक पैरा मेडिकल स्टाफ की भी ड्यूटी लगाई जाए। अदालत ने कहा कि आठ हफ्ते में स्कूलों में पार्ट टाइम अथवा फुलटाइम डॉक्टर की नियुक्ति की जाए।
यमुना पार के एक सरकारी स्कूल में एक स्टूडेंट की आंख में पत्थर लगने से आंख खराब हो गई थी। इस मामले में हाई कोर्ट को लेटर लिखा गया था। हाई कोर्ट ने इसे याचिका में तब्दील करते हुए सरकार से जवाब देने को कहा था। मामले की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने यह आदेश दिया।
मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार ने कहा कि हर स्कूल में डॉक्टर और नर्स की जरूरत है लेकिन उसके पास अभी आर्थिक दिक्कत है लिहाजा मौजूदा व्यवस्था में हर स्कूल को अस्पताल और डिस्पेंसरी से लिंक किया जा सकता है और इस तरह बच्चों को मेडिकल सुविधाएं मिल जाएंगी। सरकार की ओर से दलील दी गई कि सरकारी अस्पतालों और डिस्पेंसरी से स्कूलों के जुड़ने से बच्चों को फौरन मेडिकल सुविधा मिल सकेंगी।
इस मामले में एमिकस क्यूरी नियुक्त किए गए वकील अशोक अग्रवाल ने बताया कि सरकार के इस सलाह से कोर्ट संतुष्ट नहीं हुआ और कहा कि सरकार आर्थिक बहाना नहीं बना सकती। अदालत ने सरकार से कहा कि दिल्ली स्कूल एजुकेशन रूल्स 1973 के तहत हर स्कूल में एक डॉक्टर की व्यवस्था की बात कही गई है। ऐसे में सरकार की यह ड्यूटी है कि वह इसे पूरा करे।
अशोक अग्रवाल ने बताया कि 29 अगस्त, 2011 को 7 वीं क्लास में पढ़ने वाला लड़का स्कूल गया था। नई सीमापुरी इलाके में स्थित गवर्नमेंट बॉयज सीनियर सेकेंडरी स्कूल में यह लड़का पढ़ता था। घटना वाले दिन लंच के बाद संस्कृत का पीरियड चल रहा था। क्लास जमीन पर ही लगाई गई थी। यह स्टूडेंट भी नीचे बैठकर पढ़ाई कर रहा था तभी बाहर से कोई पत्थर उड़कर आया और स्टूडेंट की आंख में लग गया। उसे दो लोगों ने जीटीबी अस्पताल पहुंचाया। इस दौरान लड़के के पैरंट्स को भी सूचित किया गया। जब पैरंट्स जीटीबी पहुंचे तो उनका लड़का इमरजेंसी के बाहर बैठा हुआ था और उसका कोई इलाज नहीं हो रहा था। साथ ही उसके साथ कोई नहीं था। इसके बाद लड़के को गुरुनानक अस्पताल ले जाया गया, वहां से लड़के को एम्स ले जाने के लिए कहा गया। रात 12 बजे एम्स में इलाज के दौरान लड़के के पैरंट्स को बताया गया कि बच्चे की बाई आंख की रोशनी चली गई और अब इसका ऑपरेशन कर उसमें कृत्रिम आंख लगानी होगी। इसके बाद एक एनजीओ ने हाई कोर्ट को लेटर लिखकर इस मामले को उठाया।
यमुना पार के एक सरकारी स्कूल में एक स्टूडेंट की आंख में पत्थर लगने से आंख खराब हो गई थी। इस मामले में हाई कोर्ट को लेटर लिखा गया था। हाई कोर्ट ने इसे याचिका में तब्दील करते हुए सरकार से जवाब देने को कहा था। मामले की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने यह आदेश दिया।
मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार ने कहा कि हर स्कूल में डॉक्टर और नर्स की जरूरत है लेकिन उसके पास अभी आर्थिक दिक्कत है लिहाजा मौजूदा व्यवस्था में हर स्कूल को अस्पताल और डिस्पेंसरी से लिंक किया जा सकता है और इस तरह बच्चों को मेडिकल सुविधाएं मिल जाएंगी। सरकार की ओर से दलील दी गई कि सरकारी अस्पतालों और डिस्पेंसरी से स्कूलों के जुड़ने से बच्चों को फौरन मेडिकल सुविधा मिल सकेंगी।
इस मामले में एमिकस क्यूरी नियुक्त किए गए वकील अशोक अग्रवाल ने बताया कि सरकार के इस सलाह से कोर्ट संतुष्ट नहीं हुआ और कहा कि सरकार आर्थिक बहाना नहीं बना सकती। अदालत ने सरकार से कहा कि दिल्ली स्कूल एजुकेशन रूल्स 1973 के तहत हर स्कूल में एक डॉक्टर की व्यवस्था की बात कही गई है। ऐसे में सरकार की यह ड्यूटी है कि वह इसे पूरा करे।
अशोक अग्रवाल ने बताया कि 29 अगस्त, 2011 को 7 वीं क्लास में पढ़ने वाला लड़का स्कूल गया था। नई सीमापुरी इलाके में स्थित गवर्नमेंट बॉयज सीनियर सेकेंडरी स्कूल में यह लड़का पढ़ता था। घटना वाले दिन लंच के बाद संस्कृत का पीरियड चल रहा था। क्लास जमीन पर ही लगाई गई थी। यह स्टूडेंट भी नीचे बैठकर पढ़ाई कर रहा था तभी बाहर से कोई पत्थर उड़कर आया और स्टूडेंट की आंख में लग गया। उसे दो लोगों ने जीटीबी अस्पताल पहुंचाया। इस दौरान लड़के के पैरंट्स को भी सूचित किया गया। जब पैरंट्स जीटीबी पहुंचे तो उनका लड़का इमरजेंसी के बाहर बैठा हुआ था और उसका कोई इलाज नहीं हो रहा था। साथ ही उसके साथ कोई नहीं था। इसके बाद लड़के को गुरुनानक अस्पताल ले जाया गया, वहां से लड़के को एम्स ले जाने के लिए कहा गया। रात 12 बजे एम्स में इलाज के दौरान लड़के के पैरंट्स को बताया गया कि बच्चे की बाई आंख की रोशनी चली गई और अब इसका ऑपरेशन कर उसमें कृत्रिम आंख लगानी होगी। इसके बाद एक एनजीओ ने हाई कोर्ट को लेटर लिखकर इस मामले को उठाया।
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