सरकारी नौकरियों में एससी (अनुसूचित जाति), एसटी (अनुसूचित जनजाति) को प्रोन्नति में आरक्षण देने वाले संविधान संशोधन विधेयक को आखिरकार


सरकारी नौकरियों में एससी (अनुसूचित जाति), एसटी (अनुसूचित जनजाति) को प्रोन्नति में आरक्षण देने वाले संविधान संशोधन विधेयक को आखिरकार सोमवार को राज्यसभा की हरी झंडी मिल गई। समाजवादी पार्टी के सदस्यों ने जहां इसके विरोध में वोट डाला, वहीं शिवसेना इसके खिलाफ मतदान से गैरहाजिर रही। अब इस विधेयक को संसद के दूसरे सदन लोकसभा में पेश किया जाएगा। उधर, इसी मामले पर सपा के विरोध की वजह से लोकसभा की कार्यवाही पूरे दिन बाधित रही। 117वें संविधान संशोधन विधेयक पर मतदान के दौरान राज्यसभा में कुल 245 में 216 सदस्य मौजूद थे। विधेयक के समर्थन में 206 वोट पड़े। जबकि विरोध में कुल दस सदस्यों ने वोट डाले। विरोध में मतदान करने वालों में सपा के नौ सदस्य और एक निर्दलीय मोहम्मद अदीब शामिल हैं। सरकार की ओर से कार्मिक विभाग के राज्य मंत्री वी नारायणसामी ने यह भरोसा भी दिलाया है कि इस बिल का वर्ष 1995 से पहले के सरकारी कर्मचारियों को मिली प्रोन्नति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। उन्होंने यह बात विपक्ष के नेता अरुण जेटली की ओर से आशंका जताए जाने के बाद कही। जेटली ने सरकार से कहा था कि वह यह सुनिश्चित करे कि यह कानून उस तारीख से पहले लोगों को मिले पदोन्नति के लाभ को वापस न ले। नारायणसामी ने आंकड़ों के जरिये बताया कि केंद्र सरकार में सचिव स्तर के 102 अफसरों में कोई भी एससी नहीं है। इसी तरह अतिरिक्त सचिव स्तर के 113 अफसरों में केवल पांच एससी और एक एसटी वर्ग का है। ओबीसी का कोई नहीं है। उनके अनुसार, सरकारी नौकरियों की ए, बी और सी श्रेणी में एससी कर्मचारियों का प्रतिशत क्रमश:11.5, 14.9 और 17.5 है। यही स्थिति राज्यों में भी है। राज्यसभा से पारित होने के बाद अब इस बिल को लोकसभा की मंजूरी लेनी होगी। सरकार को लोकसभा में विधेयक पारित कराने में मुश्किल आ सकती है। वहां सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव अपने 21 सदस्यों के साथ इसका जोरदार विरोध करने के लिए मौजूद रहेंगे

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