हरियाणा में पुलिस भर्ती हो या शिक्षक भर्ती, इन पर हमेशा विवाद और राजनीति होती आई है। पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रक ाश चौटाला के कार्यकाल में हुई विभिन्न भर्तियां जहां विवादित रही हैं, वहीं कांग्रेस के शासनकाल में हुई भर्तियों पर भी विपक्ष ने अंगुली उठाई जाती रही है। इन विवादों से वास्तविक लोग भी प्रभावित हुए हैं। अक्टूबर 2004 में हुई एचसीएस नियुक्तियों को लेकर ताजा विवाद सामने आया है। करीब चार माह पहले सीबीआइ ने हरियाणा सिविल सर्विस (एचसीएस-एक्जीक्यूटिव) में अफसरों के मनोनयन में कुछ खास उम्मीदवारों की नियुक्ति के लिए नियमों से खिलवाड़ किए जाने के आरोपों को सच पाया था। जांच के बाद सुप्रीम कोर्ट को सौंपी रिपोर्ट में जांच एजेंसी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला, पूर्व परिवहन मंत्री अशोक अरोड़ा और तत्कालीन मुख्य सचिव समेत 11 लोगों पर मुकदमा चलाए जाने की सिफारिश की थी। साथ ही नियमों का उल्लंघन कर नियुक्त हुए अफसरों का एचसीएस (एक्जीक्यूटिव) में मनोनयन रद करने की सिफारिश भी की गई थी। रिपोर्ट में एचसीएस में रजिस्टर ए-2 से मनोनीत पांच और ए-1 रजिस्टर से लिए गए तीन एचसीएस का चयन रद करने की अनुशंसा की गई थी। हाइकोर्ट के आदेश पर हरियाणा सरकार को दर्जनों बर्खास्त पुलिसकर्मियों को ट्रेनिंग पर भेजना पड़ा था। हाईकोर्ट के आदेश पर नियुक्ति पाए व ट्रेनिंग कर रहे दर्जनों पुलिस सब इंस्पेक्टरों ने अपनी वरिष्ठता 2004 से लागू करने की मांग को लेकर सरकार के खिलाफ हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की थी। चौटाला सरकार ने विधानसभा में हरियाणा औद्योगिक सुरक्षा बल एक्ट 2003 पास किया था। इसे हुड्डा सरकार ने आते ही रद कर दिया था और तब ट्रेनिंग कर रहे 69 सब इंस्पेक्टरों को घर का रास्ता दिखा दिया था। हाईकोर्ट ने पिछले दिनों बर्खास्त 84 सिपाहियों के बहाली के आदेश जारी किए थे। चौटाला के शासन काल में 25 जुलाई 2004 को विज्ञापन जारी कर हरियाणा पुलिस की टेलिकम्यूनिकेशन विंग में 84 सिपाहियों (आपरेटर) के पद की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की थी। सत्ता परिवर्तन के बाद 29 जून 2005 को सरकार ने एक आदेश जारी कर इन्हें हटा दिया था
प्रदेश में भर्तियों पर पहले भी होते रहे हैं विवाद
हरियाणा में पुलिस भर्ती हो या शिक्षक भर्ती, इन पर हमेशा विवाद और राजनीति होती आई है। पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रक ाश चौटाला के कार्यकाल में हुई विभिन्न भर्तियां जहां विवादित रही हैं, वहीं कांग्रेस के शासनकाल में हुई भर्तियों पर भी विपक्ष ने अंगुली उठाई जाती रही है। इन विवादों से वास्तविक लोग भी प्रभावित हुए हैं। अक्टूबर 2004 में हुई एचसीएस नियुक्तियों को लेकर ताजा विवाद सामने आया है। करीब चार माह पहले सीबीआइ ने हरियाणा सिविल सर्विस (एचसीएस-एक्जीक्यूटिव) में अफसरों के मनोनयन में कुछ खास उम्मीदवारों की नियुक्ति के लिए नियमों से खिलवाड़ किए जाने के आरोपों को सच पाया था। जांच के बाद सुप्रीम कोर्ट को सौंपी रिपोर्ट में जांच एजेंसी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला, पूर्व परिवहन मंत्री अशोक अरोड़ा और तत्कालीन मुख्य सचिव समेत 11 लोगों पर मुकदमा चलाए जाने की सिफारिश की थी। साथ ही नियमों का उल्लंघन कर नियुक्त हुए अफसरों का एचसीएस (एक्जीक्यूटिव) में मनोनयन रद करने की सिफारिश भी की गई थी। रिपोर्ट में एचसीएस में रजिस्टर ए-2 से मनोनीत पांच और ए-1 रजिस्टर से लिए गए तीन एचसीएस का चयन रद करने की अनुशंसा की गई थी। हाइकोर्ट के आदेश पर हरियाणा सरकार को दर्जनों बर्खास्त पुलिसकर्मियों को ट्रेनिंग पर भेजना पड़ा था। हाईकोर्ट के आदेश पर नियुक्ति पाए व ट्रेनिंग कर रहे दर्जनों पुलिस सब इंस्पेक्टरों ने अपनी वरिष्ठता 2004 से लागू करने की मांग को लेकर सरकार के खिलाफ हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की थी। चौटाला सरकार ने विधानसभा में हरियाणा औद्योगिक सुरक्षा बल एक्ट 2003 पास किया था। इसे हुड्डा सरकार ने आते ही रद कर दिया था और तब ट्रेनिंग कर रहे 69 सब इंस्पेक्टरों को घर का रास्ता दिखा दिया था। हाईकोर्ट ने पिछले दिनों बर्खास्त 84 सिपाहियों के बहाली के आदेश जारी किए थे। चौटाला के शासन काल में 25 जुलाई 2004 को विज्ञापन जारी कर हरियाणा पुलिस की टेलिकम्यूनिकेशन विंग में 84 सिपाहियों (आपरेटर) के पद की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की थी। सत्ता परिवर्तन के बाद 29 जून 2005 को सरकार ने एक आदेश जारी कर इन्हें हटा दिया था
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