अनुराग अग्रवाल, चंडीगढ़ इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला और उनके पुत्र अजय चौटाला को हुई 10 साल की सजा के बाद हरियाणा की राजनीति एकाएक गरमा गई है। प्रदेशभर में जहां इनेलो ने अभय चौटाला को आगे कर अपनी राजनीतिक गतिविधियां बढ़ाने का संकेत दिया है, वहीं इनेलो के राजनीतिक अस्तित्व पर भी नई बहस छिड़ गई है। जातीय समीकरणों के आधार पर और प्रदेश के आगे के राजनीतिक भविष्य पर की जा रही इस बहस के बीच दूसरे दलों ने भी अपनी रणनीति बनानी तेज कर दी है। इनेलो द्वारा पूरे प्रदेश में 25 जनवरी से जिलास्तरीय बैठकों का दौर शुरू किए जाने को राजनीतिक दल भले ही अपने-अपने ढंग से देख रहे हैं, लेकिन इस पूरे बदले हुए माहौल का कांग्रेस के साथ-साथ हजकां भाजपा गठबंधन भी फायदा उठाने की जुगत में है। अहम मुद्दा यह उभर रहा है कि मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में जाट और गैर जाट की लड़ाई को कितना बल मिलेगा और आने वाले चुनावों में जाट मतदाताओं का क्या रुख रहेगा। इनेलो जहां सहानुभूति हासिल करने का कोई मौका नहीं गंवाना चाहेगा, वहीं कांग्रेसी किसी भी सूरत में उसे यह लाभ नहीं लेने देना चाहेगी। हजकां-भाजपा गठबंधन ने हालांकि अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं लेकिन बदली परिस्थितियों में ये दोनों दल अपना आधार बढ़ाने का कोई मौका नहीं चूकेंगे। कांग्रेस के लिए यह पूरा परिदृश्य कई मायनों में अहम हो गया है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा ने जहां 23 जनवरी को हरियाणा मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई है, वहीं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष फूलचंद मुलाना ने इसी दिन सभी जिलाध्यक्षों की बैठक बुलाकर नई राजनीतिक संभावनाओं को जन्म दे दिया है। बैठक में हालांकि मुख्यमंत्री मौजूद रहेंगे या नहीं, यह अभी स्पष्ट नहीं है। माना जा रहा है कि बैठक में फील्ड की रणनीति तय की जाएगी। मुलाना का
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