सर्टिफिकेट लेने जाएंगे कुलपति
एमडीयू के लिए जीवन विज्ञान विभाग की उपलब्धियां बनी निर्णायक, अध्ययन-अध्यापन का स्तर बढ़ाना चुनौती
सुविधाएं मिलने का रास्ता साफ
ए ग्रेड का फायदा
श्याम नंदन कुमारत्न रोहतक
शोध कार्य और शिक्षा के वैज्ञानिकी करण में अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन ने एमडीयू को आखिरकार ए ग्रेड दिला ही दिया। जीवन विज्ञान विभाग की उपलब्धियों की इसमें निर्णायक भूमिका रही। विश्वविद्यालय को यह ग्रेड इंफ्रास्ट्रक्चर, शिक्षण-प्रशिक्षण, इनोवेशन और शोध में नए आयाम हासिल करने के लिए दिया गया है। इस नई उपलब्धि के साथ ही विश्वविद्यालय प्रशासन पर ग्रेड के मुताबिक अध्ययन-अध्यापन और कार्यशैली को सुधारने की चुनौती भी बढ़ गई है, क्योंकि उसे बेहद करीब मार्जिन 3.03 सीजीपीए से ही यह ग्रेड मिला है।
शोध में प्रगति ने आसान की राह : नैक के ग्रेडिंग में शोध कार्य एवं प्रकाशनों को लेकर एक हजार में से 250 अंक है। वर्ष 2010 में विश्वविद्यालय प्रशासन शोध में पिछडऩे के कारण ही ए ग्रेड से वंचित रह गया था। इसके देखते हुए पिछले तीन सालों में विश्वविद्यालय प्रशासन का शोधकार्यों पर खास जोर रहा। अप्रैल 2010 में जहां विश्वविद्यालय के पास महज 1.7 करोड़ के 22 बड़े-छोटे रिसर्च प्रोजेक्ट रहे, वहीं अक्टूबर 2012 में विश्वविद्यालय के पास इस तरह की 14 करोड़ से अधिक की 96 परियोजनाएं रहीं। यूजीसी के महज चार एसएपी प्रोजेक्ट थे, जो दो साल में ही बढ़कर 11 हो गईं। इसके अलावा दो साल पहले विश्वविद्यालय के खाते में इनोवेटिव, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट प्रोजेक्ट , बायो इंफारमेटिक्स, लाइफ साइंस और मेडिकल बायोटेक्नोलॉजी के प्रोजेक्ट जीरो थे, जो 2012 में दर्जनों हो गए।
चार नए विभाग खुले, 13 कोर्स : शिक्षण, प्रशिक्षण और मूल्यांकन को लेकर ग्रेडिंग सिस्टम के तहत 200 अंक निर्धारित हैं। पिछले तीन सालों मं 160 से ज्यादा नए शिक्षकों की नियुक्ति हुई। इसके अलावा मेडिकल बायोटेक्नोलॉजी, बायो-इंफारमेटिक्स, फूड टेक्नोलॉजी और पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान विभाग खोले गए। साथ ही लगभग 13 नए पीजी पाठ्यक्रम शुरू किए गए ताकि बच्चों को रोजगार परक एवं गुणवत्ता युक्त शिक्षक मुहैया कराया जा सके। मूलभूत सुविधाएं और अध्ययन के साधनों पर ग्रेडिंग सिस्टम के तहत 100 अंक निर्धारित हैं।
चुनौतियां
ग्रेड के अनुसार शिक्षण, शोध एवं कार्यप्रणाली को उत्कृष्ट बनाना। विद्यार्थियों की उम्मीदों पर खरा उतरना और उन्हें करियर निर्माण के अधिक से अधिक विकल्प मुहैया कराना।
दस साल के सतत संघर्ष के बाद नैक की ओर से ए ग्रेड मिलते ही एमडीयू यूजीसी की सेंटर फॉर एक्सीलेंस परियोजना के तहत आवेदन करने के भी योग्य हो गया है। इससे विवि में शोध कार्यों के लिए यूजीसी से कहीं ज्यादा अनुदान व सुविधाएं मिलने का रास्ता भी साफ हो गया है।
वैसे यूजीसी से मिलने वाली यह राशि आनुपातिक नहीं होगी। सिर्फ इस ग्रेड के भरोसे खुद व खुद परियोजनाएं नहीं आएंगी, इसके लिए विश्वविद्यालय के शिक्षकों को आवेदन करना होगा। यह ग्रेड यूजीसी के अधिकारियों की नजर में उनकी विश्वसनीयता बढ़ाएगा और अनुदान दिलाने में सहायक होगा।
नैक हर साल समारोह आयोजित कर विश्वविद्यालयों एवं कॉलेजों को ग्रेडिंग का सर्टिफिकेट देता है। विश्वविद्यालयों के कुलपति एवं प्रधानाचार्य सर्टिफिकेट हासिल करते हैं। इसके पहले यूजीसी औपबंधिक (प्रोविजनल) सर्टिफिकेट जारी करता है। इस सर्टिफिकेट के विवि पहुंचने का इंतजार है।
ञ्चविश्वविद्यालय को अधिक रिसर्च प्रोजेक्ट मिलेंगे।
ञ्चए ग्रेड उत्कृष्ट शिक्षकों और विद्यार्थियों को यहां आने के लिए आकर्षित करेगा।
ञ्चबाहर के विश्वविद्यालयों और प्राइवेट संस्थानों में जाने वाले विद्यार्थियों को फायदा मिलेगा।
ञ्चनए शिक्षकों का कद बढ़ेगा।
ञ्चकारपोरेट सेक्टर की नौकियों में भी प्रथम दृष्टया यहां की छवि प्रभावित करेगी।
जीवन विज्ञान ने फूंकी जान
विश्वविद्यालय को ए ग्रेड दिलाने का श्रेय काफी हद तक जीवन विज्ञान विभाग को जाता है। 2010 में जिस शोध में पिछडऩे के कारण विश्वविद्यालय को 2.95 सीजीपीए (क्राइटेरिया वाइस ग्रेड प्वांइट एवरेज) से ही संतोष करना पड़ा था, लेकिन लाइफ साइंस विभाग के शिक्षकों की मेहनत ने शोध में पिछडऩे के दाग को धो दिया। विश्वविद्यालय के नैक तैयारी समिति के संयोजक प्रो. एस के गक्खड़ के अनुसार विश्वविद्यालय के 96 शैक्षणिक एवं शोध परियोजनाओं में लगभग 70 इसी विभाग के खाते में रहे। इसके अलावा यूजीसी से मिले 14 करोड़ रुपए की ग्रांट में 70 फीसदी हिस्सेदारी भी इस विभाग की रही। विश्वविद्यालय के शोध कार्यों में उम्दा प्रदर्शन के कारण इस बार विवि को 3.03 सीजीपीए (क्राइटेरिया वाइस ग्रेड प्वांइट एवरेज) के साथ यह उपलब्धि मिल सकी है।
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