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ये हैं हड़ताल पर जाने वालों की मुख्य मांगें
हुड्डा सरकार के दौरान ज्यादातर आंदोलनों में कर्मचारी ही जीते
बसें पुलिस लाइन ले जाने के विरोध में अड्डे पर ताला
बातचीत का दौर
लेट पहुंचे परिवहन मंत्री, स्वागत को तैयार मिले अफसर
बाहर खड़े साथियों का दबाव
...और उठकर चले गए कर्मचारी नेता
७ वें दौर में बिगड़ी बात
कर्मचारी सरकार की नीयत पहले ही समझौता तोडऩे की थी
सरकार कर्मचारी यूनियन के नेताओं ने हठधर्मिता दिखाई
छह दौर तक लगता रहा कि बात बन जाएगी। सातवें दौर में वार्ता विफल हो गई और रोडवेज यूनियनों के नेताओं ने बाहर आकर सोमवार से हड़ताल पर जाने का ऐलान कर दिया। यही नहीं यह चेतावनी भी दी कि सरकार ने रवैया नहीं बदला तो हड़ताल बेमियादी भी हो सकती है। कर्मचारी नेताओं का आरोप है कि सरकार की मंशा हड़ताल को टालने की नहीं थी। वहीं सरकार की तरफ से वार्ता की कमान संभाल रहे पीडब्ल्यूडी मंत्री रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि कर्मचारी नेताओं की हठधर्मिता बाधा बनी।
पहले दौर में कर्मचारियों नेताओं ने सुरजेवाला के समक्ष अपनी मांगें रखी। तब तक परिवहन मंत्री आफताब अहमद बैठक में शामिल नहीं हुए थे। सुरजेवाला ने उनकी मांगों की एक प्रति कर्मचारियों से ली और अधिकारियों को ये हिसाब लगाने के लिए कहा कि अगर कर्मचारियों की इन मांगों को मान लिया जाता है तो सरकार को प्रतिवर्ष कितनी रकम देनी पड़ेगी। पहले दौर में बातचीत में कच्चे कर्मचारियों को 2003 से नियमित माना जाए। उन कर्मचारियों को उसी दिन से रेगुलर पे स्केल, इंक्रीमेंट व एसीपी दी जाए और इसी के आधार पर उनकी वेतन का निर्धारण हो। सरकार इसमें कुछ कमी चाहती थी।
ये बात भी आई कि कर्मचारियों को 2003 की बजाए 2008 से नियमित किया जाए और उनका वेतन बढ़ा दिया जाए। लेकिन कर्मचारी नेता पूरा लाभ लिए बिना सहमत नहीं हुआ। पहले दौर की बातचीत में इसी मुद्दे पर चर्चा हुई। कर्मचारी नेता बार बार उठकर अलग कमरे में जाते और आपस में हर मुद्दे पर चर्चा कर वापस आकर जवाब देते।
बैठक में पहुंचे परिवहन मंत्री आफताब अहमद का स्वागत करते एडीसी अरविंद मल्हान।
: निजी बस ऑपरेटरों को दिए जाने वाले प्रदेशभर के 3519 रूटों के परमिट तुरंत रद्द हों।
: अनुबंधित कर्मचारियों को ज्वाइनिंग तारीख से पक्का किया जाए।
: सरकार आईटीआई स्केल का अध्यादेश वापस ले।
: रोडवेज में खाली पड़े पदों को तुरंत भरा जाए ताकि काम का बोझ कम हो।
: रोडवेज के बेड़े में 10 हजार नई बसें शामिल हों।
हैलो, हड़ताल तो हो गई...। पुलिस लाइन में रोडवेज बसों व चालक-परिचालकों को भेजने के विरोध में कर्मचारियों ने हड़ताल कर भिवानी बस स्टैंड के गेट पर ताला लगा दिया। चक्का जाम दोपहर २:45 से 3:45 बजे तक रहा। बस वापस वर्कशाप में आने के बाद ही वे ड्यूटी पर आए।
ञ्चसात सितंबर 2008 को गेस्ट टीचरों ने रोहतक में बड़ा आंदोलन खड़ा किया था। पुलिस की लाठीचार्ज और फायरिंग के दौरान गेस्ट टीचर राजरानी की मौत हो गई थी। इस आंदोलन के बाद गेस्ट अध्यापकों को हटाया नहीं गया है।
ञ्च वर्ष 2008 में ही प्रदेश सरकार ने प्राइवेट कंपनी की एक वोल्वो बस हिसार से चंड़ीगढ़ तक चलाने का प्रयास किया। इसका रोडवेज कर्मचारी यूनियनों ने कड़ा विरोध किया था। हिसार में हुए आंदोलन में लाठीचार्ज के दौरान 15 रोडवेज कर्मचारी घायल हो गए थे। प्रदेश सरकार ने वोल्वो बस को रोडवेज में ही मर्ज कर दिया था। चोटिल हुए कर्मचारियों को पांच-पांच हजार रुपए दिए गए।
ञ्च20 फरवरी 2013 में ी अम्बाला में रोडवेज की हड़ताल के दौरान चालक नरेंद्र सिंह उर्फ काका की मौत हो गई थी। इस आंदोलन में भी सरकार को झुकना पड़ा था। प्रदेश सरकार ने कर्मचारी के आश्रितों को 10 लाख रुपए का मुआवजा और पुत्र वधु को जूनियर लेक्चरर की नौकरी दी। रोडवेज यूनियन इंटक ने भी दस लाख रुपए का मुआवजा दिया। इस आंदोलन में भी सरकार को झुकना पड़ा। 3519 प्राइवेट परमिटों को लेकर वर्ष 2009,10 व 11 में भी रोडवेज कर्मचारियों ने बड़े आंदोलन किए। लेकिन सरकार ने आश्वासन देकर आंदोलनों को वापस करवा दिया।
ञ्चहरियाणा कर्मचारी सुरक्षा संघ के राज्य प्रधान भरत सिंह बैनीवाल ने बताया कि 30 जून 2002 को ओमप्रकाश चौटाला ने सीएम रहते हुए 22 हजार कर्मचारियों की छंटनी कर 12 विभागों की तालाबंदी कर दी थी। कर्मचारी वर्ग के लिए यह समय सबसे खराब रहा। कर्मचारियों का कोई भी आंदोलन सफल नहीं हुआ। लाठियों से सभी आंदोलनों को दबाया गया।
पहला राउंड 44 मिनट दूसरा राउंड 30 मिनट तीसरा राउंड 16 मिनट चौथा राउंड 41 मिनट पांचवां राउंड 9 मिनट छटा राउंड 33 मिनट सातवां राउंड 6 मिनट
कैथल लघु सचिवालय में हुई हरियाणा रोडवेज कर्मचारी तालमेल कमेटी की बातचीत विफल होने के बाद पत्रकारों से बातचीत करते उद्योग मंत्री रणदीप सिंह सुरजेवाला व परिवहन मंत्री अफताब अहमद। (दाएं) रणनीति बनाते रोडवेज कर्मचारी।
ये शामिल रहे बातचीत में
शाम पांच बजे डीसी कार्यालय में सरकार की ओर से उद्योग मंत्री रणदीप सिंह सुरजेवाला, परिवहन मंत्री आफताब अहमद, सीएम के अतिरिक्त प्रधान सचिव आरएस दून, रोडवेज के फाइनेंस कमिश्नर आरके जोहल, रोडवेज के महानिदेशक विनीत गर्ग शामिल हुए। जबकि हरियाणा रोडवेज तालमेल कमेटी के प्रदेशाध्यक्ष सरबत पूनिया, रोडवेज कर्मचारी यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष दलबीर नेहरा, हरियाणा रोडवेज क्लेरिकल के अध्यक्ष बलराज देसवाल, हरियाणा रोडवेज इंटक यूनियन प्रधान आजाद सिंह मलिक, ऑल हरियाणा रोडवेज ज्वाइंट यूनियन के प्रधान हरिनारायण शर्मा, कर्मचारी नेता दलबीर किरमारा, हरियाणा रोडवेज वर्कर यूनियन सेकेंड के प्रधान अनूप सिंह, धर्मबीर गोयत, जसबीर आटा, रमेश सैनी, जयभगवान, सतपाल रोहिला शामिल हुए।
लघु सचिवालय में पांच बजकर 20 मिनट पर कर्मचारी नेताओं और लोक निर्माण मंत्री रणदीप सिंह सुरजेवाला के बीच बातचीत शुरू हुई। सभी परिवहन मंत्री का इंतजार करते रहे। पहले चर्चा थी कि परिवहन मंत्री नहीं आएंगे। लेकिन 7 बजकर 50 मिनट पर परिवहन मंत्री मीटिंग में पहुंचे। ये कयास लगाए जा रहे थे कि आफताब अहमद को समझौता वार्ता से दूर रखा जा रहा है। पहले उनकी लोकेशन पटौदी बताई गई और फिर करौंथा। काफी देर तक यही खबर दी जाती रही कि परिवहन मंत्री जींद से निकले हैं। बाहर बैठे कर्मचारी नेता ये चर्चा कर रहे थे कि जो करना है वो सुरजेवाला ने करना है। परिवहन मंत्री को तो उस समय बुलाया जाएगा, जब वार्ता सिरे चढऩे के नजदीक होगी या असफल होने वाली होगी। आफताब अहमद आए भी ठीक उसी समय जब बात समाप्ति की ओर बढ़ रही थी।
पांच बजे के बाद हर आधे घंटे बाद कर्मचारी लीडर उठकर बाहर आते और अलग कमरे में बैठकर आपस में विचार विमर्श करते। जैसे ही वे कमरे से बाहर आते तो उन्हें बाहर खड़े कर्मचारी घेर लेते। अलग अलग यूनियन के नेताओं को बाहर खड़े कर्मचारी उन्हें एक ही बात कहते कि अगर बस परमिट पर समझौता किया तो बाहर मत आना। कर्मचारियों के तेवर देखकर कर्मचारी नेता आपस में यही चर्चा करते कि इस मुद्दे पर सहमति करने के लिए रोडवेज का कोई कर्मचारी तैयार नहीं। एक वक्त ऐसा भी आया जब वे इस बात पर सहमत होते नजर आए। कर्मचारी नेताओं का यही सोचना था कि किसी एक मुद्दे के लिए दूसरे लाभ क्यों छोड़े जाएं। जब वे चर्चा करने के लिए बाहर आए तो बाहर खड़े यूनियन के दूसरे दर्जे के नेताओं ने उन्हें कर्मचारियों के तेवर समझा दिए। कर्मचारियों ने इस वक्त तक पूरे प्रदेश के लीडरों से फोन पर संपर्क साध रखा था। सभी ये जानकारी दे रहे थे कि यूनियन लीडर क्या कर रहे हैं। अगर कर्मचारी इस मुद्दे पर समझौता कर लेते तो दूसरे दर्जे के कर्मचारी नेता हड़ताल की कमान संभालने के लिए तैयार थे। यूनियन को खतरे में देख और कर्मचारियों के तेवर भांप यूनियन लीडर परमिट देने की बात पर सहमत नहीं हुए। एक वक्त तो ऐसा भी आया जब कर्मचारी नेताओं ने कहा कि कर्मचारियों को एरियर मत दो
बातचीत के हर दौर में रणदीप सुरजेवाला ने कर्मचारियों की एक एक कर सभी मांगों पर हामी कर दी। उन्होंने सरकार की तरफ से इस बात पर सहमति जताई कि 8500 कर्मचारियों को 2003 से ही नियमित कर दिया जाएगा। इसके लिए सरकार को 12 वर्ष पहले कानून में बदलाव कर उन्हें पक्का किया जाएगा। उनको पे स्केल, एसीपी व वेतन वृद्धि दे दी जाएगी। वहां बैठे अधिकारियों ने कर्मचारी नेताओ
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