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दो साल की सेवा वाले कच्चे कर्मचारी पक्के हों
कर्मचारी तालमेल समिति ने शुक्रवार को मुख्य सचिव एससी चौधरी की अध्यक्षता में हुई बैठक में मांग की है कि दो साल की सेवा वाले कच्चे कर्मचारियों को पक्का किया जाए।
बैठक में अधिकतर समय सरकारी विभागों, बोर्डों, निगमों में कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने के लिए रेगुलराइजेशन पॉॅलिसी पर चर्चा में ही निकल गया।
कर्मचारी नेताओं सुभाष लांबा, जीवन सिंह, राज सिंह दहिया और अमर सिंह यादव ने बताया कि उनकी मांग थी कि मौजूदा रेगुलराइजेशन पॉलिसी में कुछ खामियां हैं।
रेगुलर करने के लिए आधार वर्ष अप्रैल, 1996 में दस वर्ष रखा है। जबकि, कुछ कर्मचारी ऐसे हैं जिनके दस साल पूरे नहीं होते। इसी तरह कुछ विभागों में कच्च्चे कर्मचारी रखने के लिए रोजगार विभाग से सूचना मांगने की जरूरत नहीं थी। लांबा ने बताया कि अफसरों के सामने हिमाचल प्रदेश की पॉलिसी भी रखी। कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने के लिए अवधि कम की जाए। फिलहाल यह अवधि दस वर्ष है। इसे घटाकर दो साल किया जाए।
तब बैठक में मौजूद बिजली निगमों के एमडी अनुराग अग्रवाल से पूछा कि क्या यह संभव है? अग्रवाल ने कहा कि इस पर विचार हो सकता है। तब रेगुलराइजेशन पॉलिसी के मसले पर कमेटी गठित की गई। अब कर्मचारी तालमेल समिति के सदस्य अपनी बातें इस कमेटी को बताएंगे।
कर्मचारी नेताओं ने अफसरों के सामने 35 सूत्रीय मांग पत्र रखा था। मगर, अधिकतर मांगें लंबित रह गईं। कर्मचारियों की मांग है कि उनके लिए पंजाब की तर्ज पर हरियाणा में राज्य स्तरीय वेतन आयोग गठित किया जाए। छठे वेतन आयोग के अभाव में सूबे के कर्मचारियों को केंद्र के समान वेतन, ग्रेड पे और भत्ते दिए जाएं।
हरियाणा मिनिस्ट्रीयल स्टाफ एसोसिएशन की मांग रखी कि प्रदेश के क्लर्कों को पंजाब के क्लर्कों के बराबर वेतन दिया जाए। हरियाणा के क्लर्कों को 13,640 रुपये प्रति मासिक कम वेतन मिल रहा है। इस बार हड़ताल में इस एसोसिएशन ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया था।
इनसेट
ईपीएफ, ईएसआई का पैसा जमा न कराने वालों पर हो कार्रवाई
सुभाष लांबा ने बताया कि यह मांग रखी थी कि सरकारी विभागों, बोर्डों, निगमों, नगर निगमों, विश्वविद्यालयों में ठेकेदारों ने ईपीएफ और ईएसआई के नाम पर कर्मचारियों और नियोक्ता से राशि की कटौती कर ली, मगर कर्मचारी भविष्य निधि कार्यालय या राज्य कर्मचारी बीमा निगम में जमा नहीं कराई। ऐसे ठेकेदारों और अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। इस मामले को श्रम कानून लागू करने वाली कमेटी परखेगी
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