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उप्र में 42 हजार स्कूल एक शिक्षक के हवाले
विडंबना :
क्या कहता है आरटीई1शिक्षा के अधिकार (आरटीई) अधिनियम के मुताबिक कक्षा एक से पांच तक में दाखिल 60 बच्चों पर दो, 61 से 90 बच्चों पर तीन, 91 से 120 बच्चों पर चार, 121 से 200 बच्चों पर पांच शिक्षक होने चाहिए। जिन स्कूलों में डेढ़ सौ से अधिक बच्चे हैं वहां पांच शिक्षकों के अलावा एक हेड टीचर भी होना चाहिए। 1 13
राजीव दीक्षित, लखनऊ 1एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट 2013 के मुताबिक यदि उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पांचवीं में पढ़ने वाले 25 प्रतिशत बच्चे ही दूसरी कक्षा की किताब पढ़ने के काबिल हैं और महज 11 फीसद ही गणित में भाग के सवाल हल कर पाते हैं तो यह अकारण नहीं है। बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित स्कूलों में नौनिहालों को पढ़ाने के लिए गुरुजनों का अकाल है। स्थिति कितनी विस्फोटक है, इसका अंदाजा सिर्फ इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि सूबे के 42 हजार से ज्यादा परिषदीय स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई का जिम्मा सिर्फ एक शिक्षक के हवाले है। 1सूबे के 32 हजार से ज्यादा परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा का बोझ यदि एक शिक्षक के कंधों पर है तो लगभग दस हजार उच्च प्राथमिक विद्यालय ऐसे हैं जिनमें अकेला अध्यापक शिक्षा की गाड़ी खींचने को मजबूर है। इससे भी हैरतअंगेज तो यह है कि सूबे के 6828 परिषदीय स्कूल ऐसे भी हैं जिनमें एक भी शिक्षक नहीं तैनात है। इनमें 5374 प्राथमिक स्कूल हैं तो 1454 उच्च प्राथमिक विद्यालय। इन स्कूलों में शिक्षा की गाड़ी जुगाड़ तकनीक से खींची जा रही है। 1दूसरे स्कूलों के शिक्षकों और शिक्षामित्रों को संबद्ध करके यहां पढ़ाई की औपचारिकता निभाई जा रही है। प्रदेश में 62 हजार से अधिक स्कूल ऐसे भी हैं जिनमें महज दो शिक्षक तैनात हैं। परिषदीय स्कूल शिक्षकों की कमी की समस्या से तो जूझ ही रहे थे लेकिन पिछले कई वर्षो से भर्तियों में आया ठहराव और हर साल 12 से 14 हजार शिक्षकों के रिटायरमेंट ने कोढ़ में खाज वाले हालात पैदा कर दिए हैं। 1उल्लेखनीय है कि प्रदेश में प्राथमिक स्कूल की संख्या 1,13,197 और उच्च प्राथमिक विद्यालयों की संख्या 46,133 है। 1राजीव दीक्षित, लखनऊ 1एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट 2013 के मुताबिक यदि उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पांचवीं में पढ़ने वाले 25 प्रतिशत बच्चे ही दूसरी कक्षा की किताब पढ़ने के काबिल हैं और महज 11 फीसद ही गणित में भाग के सवाल हल कर पाते हैं तो यह अकारण नहीं है। बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित स्कूलों में नौनिहालों को पढ़ाने के लिए गुरुजनों का अकाल है। स्थिति कितनी विस्फोटक है, इसका अंदाजा सिर्फ इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि सूबे के 42 हजार से ज्यादा परिषदीय स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई का जिम्मा सिर्फ एक शिक्षक के हवाले है। 1सूबे के 32 हजार से ज्यादा परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा का बोझ यदि एक शिक्षक के कंधों पर है तो लगभग दस हजार उच्च प्राथमिक विद्यालय ऐसे हैं जिनमें अकेला अध्यापक शिक्षा की गाड़ी खींचने को मजबूर है। इससे भी हैरतअंगेज तो यह है कि सूबे के 6828 परिषदीय स्कूल ऐसे भी हैं जिनमें एक भी शिक्षक नहीं तैनात है। इनमें 5374 प्राथमिक स्कूल हैं तो 1454 उच्च प्राथमिक विद्यालय। इन स्कूलों में शिक्षा की गाड़ी जुगाड़ तकनीक से खींची जा रही है। 1दूसरे स्कूलों के शिक्षकों और शिक्षामित्रों को संबद्ध करके यहां पढ़ाई की औपचारिकता निभाई जा रही है। प्रदेश में 62 हजार से अधिक स्कूल ऐसे भी हैं जिनमें महज दो शिक्षक तैनात हैं। परिषदीय स्कूल शिक्षकों की कमी की समस्या से तो जूझ ही रहे थे लेकिन पिछले कई वर्षो से भर्तियों में आया ठहराव और हर साल 12 से 14 हजार शिक्षकों के रिटायरमेंट ने कोढ़ में खाज वाले हालात पैदा कर दिए हैं। 1उल्लेखनीय है कि प्रदेश में प्राथमिक स्कूल की संख्या 1,13,197 और उच्च प्राथमिक विद्यालयों की संख्या 46,133 है
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