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शब्दों के जादूगर की विदाई
आप खुशवंत सिंह से सैकड़ों बार मिलें, पर वे मुलाकातें गिनती की होती थीं जब वे गंभीर-गमगीन होते थे। निराशा या नैराश्य उनके शब्दकोश में नहीं था। गंभीर विषयों पर बातचीत के दौरान वह सहज रहते थे। वह किस्सागो थे। उनके पास खजाना था किस्सों और फसानों का। अपने पिता सोभा सिंह का नाम भगत सिंह के खिलाफ दी गई गवाही को लेकर उठे विवाद पर बात करते हुए वह कुछ गंभीर हो जाते थे। सोभा सिंह पर आरोप था कि उनकी गवाही के आधार पर भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी हुई। खुशवंत सिंह ने एक बार मुझसे कहा था कि मेरे पिता असेंबली की दर्शकदीर्घा में उस वक्त मौजूद थे और उन्होंने दो लोगों को बम फेंकते हुए देखा था, जिन्हें वह उस समय तक नहीं पहचानते थे पर बाद में देखने पर पहचान लिया।1उनके निधन से उनके लाखों चाहने वाले गमगीन हैं और उनका सुजान सिंह पार्क यतीम हो गया। अब इधर दोस्तों की बैठकें नहीं होंगी। समय के बेहद पाबंद खुशवंत सिंह यारबाज थे, पर एक हद तक। शाम को आठ बजे के बाद वह सबको विदा कर देते थे। ड्राइंग रूम में आराम कुर्सी पर बैठकर वह दोस्तों से गप मारते थे। हंसी-ठिठोली के बीच भी उनके हाथ में कोई किताब रहती थी। दो दिन में एक किताब साफ। वह इधर साठ के दशक में आ गए थे। सुजान सिंह पार्क को उनके पिता सरदार सोभा सिंह ने अपने पिता के नाम से बनाया था। इंडिया गेट से बेहद करीब। इसे आप चाहें तो एक सोसायटी भी कह सकते हैं। इसका बाहरी रंग ईंट वाला है। दो मंजिला इमारत है सुजान सिंह पार्क। इसका निर्माण वर्ष 1946 में हुआ। 1खुशवंत सिंह मूलत: अंग्रेजी के लेखक रहे, पर उनके चाहने वालों का संसार तमाम भारतीय भाषाओं में बसता है। उनके कॉलम का सालों अनुवाद करने का मौका मिला। कई बार बात हुई। साक्षात और फोन पर। वह बातचीत के दौरान अपने पिता सरदार सोभा सिंह का जिक्र कर दिया करते थे। उन्होंने ही कनाट प्लेस और नई दिल्ली की कई महत्वपूर्ण इमारतों का निर्माण कराया था। इनमें मॉडर्न स्कूल, बड़ोदा हाउस, राष्ट्रपति भवन वगैरह शामिल हैं। वह बताते थे कि उन्हें सुजान सिंह पार्क में रहना इसलिए पसंद है, क्योंकि इधर सोभा सिंह का सारा कुनबा रहता रहा। खुशवंत सिंह ग्राउंड फ्लोर के फ्लैट में रहते थे। कुछ बरस पहले पत्नी की मौत के बाद वह अपने फ्लैट में एकाकी जीवन गुजार रहे थे। जिस इंसान के देश-विदेश में करोड़ों चाहने वाले हों, वह एकदम अकेला हो, यकीन नहीं होता। उनके फ्लैट में प्रवेश करते ही आपको समझ आ जाता है कि ये आशियाना किसी शब्दों के शैदाई का होगा। चारों तरफ करीने से किताबें बुक शेल्फ में रखी हैं। पंजाब, पंजाबियत, उर्दू शायरी, राजनीति, समाज वगैरह विषयों पर सैकड़ों किताबें पढ़ी हैं। खुशवंत सिंह ने एक बार मुझसे कहा था कि वह इस बात की इजाजत नहीं देते कि कोई उनके घर से किताब लेकर जाए, पर वापस नहीं करें। सुजान सिंह पार्क का डिजाइन अंग्रेज आर्किटेक्ट वाल्टर जार्ज ने तैयार किया था। वह नई दिल्ली के चीफ आर्किटेक्ट एडवर्ड लुटियंस की टीम में थे।1खैर, खुशवंत सिंह के फ्लैट में प्रवेश करते ही आपको उनके सेवक उनके स्टडी कक्ष में ले जाते हैं। वहां पर खुशवंत सिंह आराम कुर्सी में बैठकर कोई पुस्तक पढ़ रहे होते हैं। गर्मजोशी से स्वागत करते हैं आपका। घर के कमरों की सीलिंग खासी ऊंची है। आपको तुरंत समझ आ जाता है कि सुजान सिंह पार्क का निर्माण 50 साल से पहले हुआ होगा। आजकल इतनी ऊंची सीलिंग के घर या फ्लैट नहीं बनते। आपको चार बेडरूम के इस फ्लैट के हर कमरे के बाहर झांकने पर गुलों से गुलजार मनमोहक बगीचा दिखता है। हर कमरा बाहर की रोशनी से नहा रहा है। बेजोड़ है इधर के फ्लैटों का आर्किटेक्चर। खुशवंत सिह यहां पर आने से पहले अपने पिता के जनपथ स्थित बंगले में रहते थे। अब भी उसके एक हिस्से पर उनके परिवार का कब्जा है, जहां से सोभा सिंह फाउंडेशन काम करता है। एक बार खुशवंत सिंह ने बताया था कि उसी घर में 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान एक बार उनके पास महान स्वाधीनता सेनानी अरुणा आसफ अली आईं। वक्त रात का रहा होगा। मुङो बताया गया कि वह बाहर मेरा इंतजार कर रही हैं। पुलिस उन्हें पकड़ने की चेष्टा कर रही थी। अरुणाजी ने मुझसे एक रात वहां पर रहने की इजाजत मांगी। जिसे मैंने यह कहते हुए मना कर दिया कि चूंकि ये मेरे पिता का घर है, इसलिए किसी को रात गुजारने की इजाजत नहीं दे सकता। इतनी ईमानदार साफगोई खुशवंत सिंह सरीखा इंसान ही कर सकता है।1खुशवंत सिंह ने कुछ रोज पहले ही अपने बेहद सक्रिय जीवन के 100वें वर्ष में प्रवेश किया था। कई चाहने वाले पहुंचे। देश-विदेश से लेखक, पत्रकार, कवि और उनके प्रशंसक मिलने के लिए आते रहते थे। वह शाम को अवश्य मिलते थे, जबकि दिन में विश्रम करते। वह ऊपर से देखने पर बहुत स्वच्छंद प्रवृत्ति के लगते थे, परंतु उनका जीवन अत्यंत अनुशासित था। लंबे अर्से तक वह दिल्ली के जिमखाना क्लब में टेनिस खेलते रहे। सिंगल माल्ट उनकी प्रिय व्हिस्की थी। खाना जल्दी खा लेते थे। घर में हों या किसी पार्टी में, पार्टी चाहे प्रधानमंत्री के घर पर क्यों न हो, उन्हें समय पर भोजन मिलना चाहिए। उन्हें सुबह जल्दी उठना होता है, क्योंकि उनके लिखने का समय वही है। खुशवंत सिंह के पुत्र राहुल सिंह मुंबई में रहते हैं। बीच-बीच में पिता के पास वक्त गुजारने के लिए आते रहते हैं। सुजान सिंह पार्क के ठीक आगे खान मार्केट हैं। यहां के दुकानदारों से खुशवंत सिंह का खासा लगाव है, पर उन्हें अफसोस भी था कि वह अब मार्केट में नहीं आते। खुशवंत सिंह एक दौर में हर रोज अपनी पत्नी और अपने या किसी संबंधी के बच्चों के साथ रात के वक्त मार्केट में आइसक्रीम खाने के लिए आते थे। उनकी कलम के शैदाइयों से लेकर खान मार्केट के दुकानदारों को उनकी बहुत याद आएगी। और चलते चलते एक बात और। खुशवंत सिंह अपने चाहने वालों को बताते थे कि उनकी शादी में मोहम्मद अली जिन्ना भी शामिल हुए थे।1(लेखक खुशवंत सिंह के स्तंभ ना काहू से दोस्ती न काहू से बैर के अनुवादक रहे हैं)
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