नो डिटेंशन पॉलिसी पर संकट के बादल राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़ : हरियाणा के साथ ही देश में पहली से आठवीं कक्षा तक के बच्चों को फेल न करने के लिए लागू नो डिटेंशन पालिसी पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। इस पॉलिसी की समीक्षा के लिए गठित केंद्रीय सलाहकार बोर्ड की उप समिति की अध्यक्ष एवं हरियाणा की शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल ने योजना को छात्रहित के विपरीत करार दिया है। साथ ही इसके परिणामों पर चिंता जताई है। 1भुक्कल का मानना है कि योजना लागू होने के बाद से बच्चों के अध्ययन स्तर में गिरावट आई है। इसलिए अध्ययन स्तरीय परिणामों में सुधार के लिए परीक्षा तथा मूल्यांकन प्रणाली को अपनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अध्ययन में कमजोर बच्चों को फिर से पुरानी प्रणाली के अंतर्गत लाया जाना चाहिए। भुक्कल बुधवार को नई दिल्ली में नो डिटेंशन के प्रावधानों की समीक्षा के लिए गठित केंद्रीय सलाहकार बोर्ड उप समिति की बैठक की अध्यक्षता कर रहीं थी। उन्होंने कहा कि नो डिटेंशन पालिसी के क्रियान्वयन और लोगों के अनुभवों से पता चला है कि यह नीति विद्यार्थियों की सफलता के स्तर में मददगार नहीं है। इससे वर्ष 2010-11 से 2013-14 के शैक्षणिक सत्र के दौरान अध्ययन स्तरीय परिणामों में तेजी से गिरावट आई है। इससे प्रतीत होता है कि नीति और प्रणाली में कुछ खामियां है, जिसमें सुधार की आवश्यकता है। राष्ट्रीय सर्वेक्षण रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों के रूझानों से पता चलता है कि सरकारी स्कूलों में अध्ययन स्तर में तेजी से गिरावट आई है जबकि निजी स्कूलों में भी परिणाम ज्यादा संतोषजनक नहीं है। इसका एक बड़ा कारण नो डिटेंशन पॉलिसी तथा च्च्च्चों के अध्ययन स्तर के मूल्यांकन की व्यवस्था का अभाव है। भुक्कल के अनुसार केंद्रीय सलाहकार बोर्ड की उप समिति ने पाया है कि नो डिटेंशन पालिसी के कारण संबंधित कक्षाओं के निर्धारित पाठ्यक्रम को ठीक से न तो ठीक से कवर किया जा रहा है, न ही पाठ्यक्रम का दोबारा अभ्यास हो रहा। बच्चे भी अध्ययन कार्यों को लेकर गंभीर नहीं है।1भुक्कल ने कहा कि सेवारत शिक्षकों के प्रशिक्षण को भी उतना ही जरूरी बताया है, जितना अध्यापकों का सेवा से पूर्व प्रशिक्षण। उन्होंने कहा कि प्रतिवर्ष सभी बच्चों का उनकी क्षमताओं के अनुरूप आकलन करें तथा ग्रेड दें।
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