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विभाग पुनर्विचार करे
इंटर्नशिप का विरोध करने वाले जेबीटी छात्रों की बात सुनने में सरकार को अधिक समय नहीं लगाना चाहिए। किसी निर्णय में व्यावहारिकता नजर न आए तो उस पर पुनर्विचार करने में किसी संस्था, निकाय व सरकार को संकोच नहीं करना चाहिए। छात्र कई माह से मांग कर रहे हैं पर सरकार व शिक्षा विभाग अमल तो दूर उनकी व्यथा तक सुनने को तैयार नहीं। रोहतक में प्रदेश भर के जेबीटी छात्र एकत्र हुए, सम्मेलन के बाद उन्हें मुख्यमंत्री से मिलने की कोशिश में पुलिस से झड़प करनी पड़ी और बाद में गिरफ्तारी हो गई। बड़ी मुश्किल से प्रशासन की ओर से मुख्यमंत्री से चंडीगढ़ में मुलाकात करने का आश्वासन मिला। जेबीटी स्टूडेंट फोरम के तर्को पर सरकार को विचार करना चाहिए। फोरम का आरोप है कि उन पर बेवजह इंटर्नशिप थोंपी जा रही है, देश में कहीं यह नीति लागू नहीं फिर हरियाणा में लाद कर सरकार आखिर साबित क्या करना चाहती है? जेबीटी छात्रों को मानसिक और आर्थिक दबाव का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि इंटर्नशिप के बदले उन्हें शिक्षा विभाग की ओर से एक पाई का भी भुगतान नहीं किया जा रहा। छात्रों का यह आरोप भी गंभीर है कि अपने निर्णय को सही साबित करने के लिए सरकार इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाए हुए है जबकि इसकी कोई तार्किक, प्रासंगिक उपयोगिता साबित करने की स्थिति में वह नहीं दिखाई देती। राज्य में अतार्किक प्रयोगवाद में बिजली निगमों के साथ शिक्षा विभाग भी अव्वल रहा है। योजनाएं लाद दी जाती हैं फिर कुछ अर्से के बाद या तो उसे बिना कारण बताए रोक दिया जाता है या ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। इससे समय और संसाधन, दोनों का अपव्यय होता है। एजुसेट से लेकर कंप्यूटर शिक्षा का ज्ञान देने की अनेक योजनाओं का हवाला देकर शिक्षा विभाग की कार्यशैली की विसंगतियों को सामने लाया जा सकता है। विभाग का तर्क था कि इंटर्नशिप से छात्रों को भविष्य के लिए व्यावहारिक लाभ होगा लेकिन साथ ही इतने लंबे इंटर्नशिप का औचित्य भी समझाया जाना चाहिए था। इस कार्य के लिए छात्रों को उनके घर से बीस से तीस किलोमीटर तक दूर स्थित स्कूल अलॉट किए गए। सारा दिन आने जाने व अध्यापन में लग जाता है, बस, जीप आदि के किराए पर सैकड़ों रुपये हर माह खर्च करने पड़ते हैं। छात्रों की पढ़ाई के लिए भी समय नहीं मिल पाता। तमाम व्यावहारिक दिक्कतों को समझते हुए सरकार को अपने निर्णय पर तत्काल पुनर्विचार करना चाहिए।
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