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नियुक्ति में अंधेरगर्दी
आंखों देखे मक्खी नहीं निगली जा सकती लेकिन कुछ ऐसे उदाहरण सामने आ जाते हैं जब लगता है इससे भी आगे जाकर कॉकरोच निगले जा रहे हैं। कोलकाता के इंस्टीट्यूट की एएमआइई डिग्री को अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद ने मान्यता नहीं दी , सरकार को इसकी जानकारी पहले ही दी जा चुकी, इसके बावजूद तकनीकी विभागों में इस डिग्री के आधार पर न केवल नौकरी बल्कि पदोन्नति भी दी जा रही है। तकनीकी शिक्षा परिषद ने हरियाणा तकनीकी बोर्ड को भी इस बारे में पूर्व सूचना दी थी और बोर्ड पिछले वर्ष ही डिग्री को न मानने का फैसला कर चुका। सवाल यह है कि सरकार अपने तकनीकी विभागों को आखिर कौन सी रीति-नीति से चला रही है? गैर मान्यता प्राप्त डिग्री के आधार पर नौकरी देने का सीधा अर्थ है कि नियमों को नजरअंदाज किया गया है। पदोन्नति के मानकों की अवहेलना हुई। विडंबना है कि सिंचाई और जनस्वास्थ्य विभाग समेत कई सरकारी महकमों ने इस डिग्री को माना। क्या यह माना जाए कि समान नियुक्ति नीति बनी ही नहीं। समय और अवसर के अनुसार नियमों में फेरबदल कर मनमाने तरीके से प्रक्रिया को चलाया जा रहा है। सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि ऐसा क्यों हुआ और यदि मानक नियमों को आधार बना कर नियुक्ति, पदोन्नति को चुनौती दी गई तो बचने के लिए उसके पास कौन से तर्क व कारण हैं? राज्य तकनीकी शिक्षा बोर्ड की हिदायतों को क्यों नहीं माना गया? तकनीकी विभागों में विशेष सतर्कता बरते जाने की आवश्यकता है। 1 इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता कि राज्य में तकनीकी शिक्षा का ढांचा बेतरतीब है। उसका असर तकनीकी सेवाओं पर तो कतई नहीं पड़ना चाहिए। सरकार को मान्यता के मामले में बेहद सख्त होना होगा क्योंकि पिछले दिनों चिकित्सा क्षेत्र में मान्यता के मुद्दे पर सरकार की फजीहत होने के साथ हजारों बीएएमएस डॉक्टरों का भविष्य अधर में लटक गया है। सरकार की ओर से सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ऐसी असहज, असुखद स्थिति तकनीकी क्षेत्र में न आए। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यदि विभागों में तकनीकी पदों पर नियम विरुद्ध नियुक्तियां हुईं तो उसका प्रतिकूल असर अन्य जगहों पर भी दिखाई दे सकता है। मान्यता का मुद्दा मजाक में न लिया जाए, इसकी गरिमा को महत्व दिया जाना चाहिए। नियमों, निर्देशों का पालन होने से सरकार की साख में वृद्धि होगी। हाल के मामले की गहनता से जांच करके जवाबदेही को और स्पष्ट बनाया जाए।
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