लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के खिसके जनाधार को समेटने के लिए अंतत: मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने विधानसभा चुनाव से पूर्व अपनी अंतिम रैली में तुरुप का पत्ता फेंक ही दिया। भले ही देरी से सियासत की मजबूत बिसात बिछाते हुए घोषणाओं का इतना बड़ा पिटारा खोला गया जो अन्य दलों के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है। वृद्धावस्था पेंशन एक हजार से बढ़ा कर डेढ़ हजार करने की घोषणा का हर परिवार निश्चित तौर पर स्वागत करेगा। पंजाब के समान वेतनमान की वर्षो पुरानी मांग एकमुश्त पूरी करने के एलान से मुख्यमंत्री ने सभी कर्मचारियों को साधने की कोशिश की। कृषि प्रधान राज्य में किसानों के फसली कर्ज पर ब्याज माफी की घोषणा सभी को लुभाएगी। अनुसूचित व पिछड़ी जाति के लोगों के लिए सहकारी ऋण माफी की घोषणा बड़ी सौगात है। व्यापक संदर्भो में देखा जाए तो सरकार ने बड़ी चतुराई से बॉल वोटरों के पाले में डाल दी क्योंकि तमाम घोषणाएं एक नवंबर यानी हरियाणा के स्थापना दिवस से लागू करने की बात कही गई है और वर्तमान सरकार का कार्यकाल अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में समाप्त हो जाएगा। लिहाजा घोषणाएं नए नेतृत्व के सत्ता संभालने के बाद ही लागू होगी। हरियाणा में बुढ़ापा पेंशन, किसानों की बैंक कर्ज माफी और बिजली बिल माफी जैसे मुद्दे कई बार चुनावों में जीत का आधार बन चुके हैं। 1987 में कर्ज माफी के नारे के साथ देवीलाल ने विधानसभा में प्रचंड बहुमत हासिल किया था। 1 भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपने पहले कार्यकाल में वादे के अनुसार 1600 करोड़ के बिजली बिल माफ किए थे। भूपेंद्र हुड्डा ने अब फिर तमाम पुराने अनुभवों का इस्तेमाल करते हुए प्रदेश के ग्रामीण अंचल की नब्ज पकड़ने की कोशिश की है। इसमें कोई संदेह नहीं कि कांग्रेस इन घोषणाओं को आधार बना कर ही चुनावी मैदान में उतरेगी। पार्टी और मुख्यमंत्री से एक सवाल तत्काल पूछा जाएगा कि घोषणाओं में इतना विलंब क्यों किया गया? मूसलाधार वर्षा की तरह बरसे इन वादों को विपक्षी दल सीधे तौर पर चुनावी अवसरवादिता तो कहेंगे पर मुख्य बात यह है कि क्या वे इन घोषणाओं के आगे कोई बड़ी लकीर खींच पाने में कामयाब हो पाएंगे? सियासत में अव्वल वही रहता है जो मतदाता की नब्ज पकड़ने के साथ वक्त की नजाकत को भांप लेता है। लोक लुभावन घोषणाओं के मामले में भूपेंद्र हुड्डा ने बाजी मार ली, अब उनके इस पिटारे से अन्य दल कैसे निपटेंगे यह अभी भविष्य के गर्भ में है।
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