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आरक्षण
माला दीक्षित, नई दिल्ली जाट पिछड़े नहीं हैं। सरकार ने राजनीतिक लाभ लेने के लिए नौ राज्यों के जाटों को पिछड़े वर्ग (ओबीसी) की केंद्रीय सूची में शामिल किया है। ये दलीलें बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जाट आरक्षण का विरोध कर रहे वकीलों ने दीं। 1इस साल आम चुनाव से ठीक पहले चार मार्च को सरकार ने नौ राज्यों दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान के दो जिलों (भरतपुर और धौलपुर), दिल्ली, मध्य प्रदेश और बिहार के जाटों को केंद्र की ओबीसी सूची में शामिल किया था। जाट आरक्षण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दस याचिकाएं लंबित हैं, जिन पर बहस शुरू हुई। बुधवार को याचिकाकर्ता रामसिंह व अन्य की ओर से बहस करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता गुरु कृष्णमूर्ति ने कहा कि इन राज्यों के जाट पिछड़े नहीं हैं और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) ने इन्हें केंद्र की ओबीसी सूची में शामिल करने से मना कर दिया था। इसके बावजूद सरकार ने राजनीतिक लाभ पाने के उद्देश्य से इन नौ राज्यों के जाटों को ओबीसी सूची में शामिल करने की अधिसूचना जारी कर दी। एनसीबीसी ने कहा है कि इन राज्यों में जाट पिछड़े नहीं है और इसलिए इन्हें केंद्रीय सूची में शामिल नहीं किया जा सकता। एनसीबीसी ने इन राज्यों के जाटों को ओबीसी सूची में शामिल करने से मना किया था। हरियाणा, दिल्ली व अन्य जगह ज्यादातर जाट भूस्वामी हैं। वे अपनी जमीन पर खेती करते हैं। वे दूसरे की जमीनों पर मजदूरी नहीं करते। सरकारी नौकरियों में भी उनका अच्छा खासा प्रतिनिधित्व है। इन दलीलों पर सुनवाई कर रही पीठ ने कहा कि ऐसा लगता है कि हरियाणा में जाट सामाजिक रूप से पिछड़े नहीं हैं, शैक्षणिक रूप से पिछड़े हो सकते हैं।जाट आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट में वकीलों का तर्क16नौ राज्यों के जाट ओबीसी की केंद्रीय सूची में शामिल।
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