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बीएड कॉलेजों में पढ़ाने के लिए अब नेट जरूरी नहीं
अगलेसत्र से बीएड और एमएड दो वर्षीय पाठयक्रम होने जा रहा है। नेशनल काउंसिलिंग ऑफ टीचिंग एजुकेशन (एनसीटीई) ने अपने आदेशों में बीएड पढ़ाने के लिए नेट और पीएचडी की अनिवार्यता भी खत्म कर दी है।
यानि की अब केवल एमए और मास्टर ऑफ एजुकेशन डिग्रीधारक भी बीएड कॉलेजों में पढ़ा सकेंगे। इससे पहले नेट या पीएचडी धारक ही बीएड कॉलेजों में पढ़ाने के योग्य थे। यह निर्णय उन छात्रों के लिए किसी खुशखबरी से कम नहीं है, जिनके पास मास्टर आफ एजुकेशन की डिग्री तो है, लेकिन नेट क्वालीफाई होने के कारण प्रोफेसर नहीं बन पाए थे। बता दें कि जस्टिस वर्मा कमीशन की समीक्षा रिपोर्ट के बाद एनसीटीई ने देश के सभी विश्वविद्यालयों में बीएड और एमएड के एक वर्षीय कोर्स को दो वर्षीय करने के आदेश दिए हैं। साथ ही विश्वविद्यालय और कॉलेजों में बीएड की सीटें 100 से घटाकर 50 और एमएड में 35 सीटों की संख्या बढ़ाकर 50 कर दी गई। यह आदेश अगले सत्र से लागू करने के लिए कहा गया।
आवेदकों की संख्या में होगी वृद्धि
नेटकी अनिवार्यता खत्म होने से आवेदकों की संख्या में वृद्धि हो जाएगी। ऐसे में प्राइवेट इंस्टीट्यूट में पहले से पढ़ा रहे नेट क्वालीफाई टीचर को वेतन के रूप में नुकसान उठाना पड़ सकता है। क्योंकि नेट के बिना सैकड़ों आवेदक पोस्ट के लिए आवेदन करेंगे।
जयप्रकाश, प्रिंसिपल,जेसीडी कॉलेज आफ एजुकेशन
एनसीटीई ने सीटों में भी कटौती की है। हरियाणा के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में करीब 60 हजार सीटें हैं। जो अमूमन तीसरी और चौथी काउंसिलिंग के बाद ही भरी जाती हैं। इनमें 85 प्रतिशत सीटें स्थानीय छात्रों और 15 प्रतिशत सीटें आल इंडिया छात्रों के लिए रिजर्व होती हैं। स्थानीय छात्रों से 30 से 35 हजार सीटें ही भरती थीं। स्थानीय कोटे की रिक्त सीटों को आल इंडिया कोटे से भरा जाता था। मगर सीटों की संख्या में कटौती हो जाने के बाद स्थानीय छात्रों में भी एडमिशन के लिए प्रतिस्पर्धा होगी। सीटों की संख्या कम होने से विश्वविद्यालयों को भी प्रति छात्र से मिलने वाले डेवल्पमेंट चार्ज, वेल्फेयर चार्ज, एल्युमिनी चार्ज से आने वाले रेवन्यू में भी कटौती होगी। सीडीएलयू के डीन ऑफ कॉलेजिज प्रो. एसके गहलावत का भी मानना है कि काउंसिलिंग में काफी सीटें खाली रह जाती थीं, जिस पर दूसरे प्रदेशों के छात्र एडमिशन लेते थे।
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