" एक और अग्निपरीक्षा "-शिक्षा विभाग



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" एक और अग्निपरीक्षा "

शिक्षा विभाग की नीतियों की खामी और प्रक्रिया पूरी करने में सरकार की शिथिलता का सिलसिला टूटता दिखाई नहीं दे रहा। पीड़ा उन लोगों को ङोलनी पड़ रही है जो सरकारी तंत्र में विश्वास करके चक्रव्यूह सरीखी बन चुकी इस प्रक्रिया में फंसते हैं। पिछली सरकार के अंतिम दिनों में भर्ती 9870 जेबीटी शिक्षकों पर नौकरी ज्वाइन करने के लिए एक और चक्र को बेंधने की जिम्मेदारी आन पड़ी है। मौलिक शिक्षा विभाग निदेशालय द्वारा गठित दो टीमें 29 दिसंबर से अभ्यर्थियों के अंगूठों की जांच करेंगी, फिर इनका एचटेट और ओएमआर शीट से मिलान किया जाएगा। हरियाणा शिक्षा बोर्ड कैंपस में हर दिन दो सौ शिक्षकों के अंगूठों के निशान लिये जाएंगे। निदेशालय का बाकायदा शेड्यूल भी जारी हो चुका। एचटेट और स्टेट का रिकॉर्ड भी मंगवा लिया गया। गंभीर पहलू यह भी है कि जांच प्रक्रिया में शामिल न होने वाले अध्यापकों का चयन रद कर दिया जाएगा। तमाम परिस्थितियां किसी सूरत में सकारात्मक तो नहीं कही जा सकती। यह व्यवस्था का विरोधाभास है, प्रक्रिया की खामी और परीक्षा तंत्र की विफलता का ही प्रमाण ही है कि नियुक्ति के इतने अर्से बाद भी अध्यापकों पर अनिश्चितता की तलवार लटक रही है। बात इस या उस सरकार की नहीं, अहम पहलू यह है कि अलग राज्य बनने के 48 वर्ष बाद भी शिक्षा नीति में निरंतरता, सहजता और विश्वसनीयता नहीं आ पा रही। 1 जरा उन अध्यापकों की मन:स्थिति का आकलन करने की कोशिश की जाए जिन्होंने कड़ी मेहनत करके पात्रता परीक्षा पास की, साक्षात्कार में प्रतिभा और ज्ञान से अपने को योग्य साबित किया लेकिन चंद अपात्रों के क्रिया कलापों की सजा भुगतने को विवश होना पड़ रहा है। यह ठीक है कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर सकती है पर उस गंदी मछली के तालाब में रहने के लिए जिम्मेदार कौन है, उसे दंडित, प्रताड़ित करने के लिए तत्परता, प्रतिबद्धता क्यों नहीं दिखाई गई? नई सरकार को आदर्श मापदंडों को आधार मानते हुए जेबीटी अध्यापकों के भविष्य का फैसला करना चाहिए, न कि इस आधार पर कि यह नियुक्ति तो पिछली सरकार ने की थी। ऐसा करने पर ही उसकी साख और विश्वसनीयता को मान्यता मिलेगी। व्यवस्था की खामियां तलाश करके निराकरण करना उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। कार्य इतना सहज नहीं, क्योंकि इस सरकार में हर मोर्चे पर जूझने के लिए असला और अमला तो वही है जो पिछली सरकार में था। सुधार के लिए आधारभूत स्तर पर बदलाव की आवश्यकता है।

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