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हरियाणा में आर्ट एवं क्राफ्ट के 816 शिक्षकों की भर्ती रद कर दी गई है। हालांकि पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के इस फैसले को अंतिम नहीं माना जा सकता और इससे प्रभावित पक्ष उच्च अदालतों का दरवाजा खटखटा सकते हैं, लेकिन फैसला सुनाते वक्त माननीय जजों की टिप्पणी बताती है कि सरकार की कार्यप्रणाली किस तरह दोषपूर्ण रही है। आखिर ऐसा क्यों हुआ कि भर्ती के लिए अधिसूचना जारी करते समय निर्धारित की गई जरूरी योग्यता ही बदल दी गई। यह सबकुछ एक मनमाने तरीके से किया गया। सुविधा को ध्यान में रखकर नियम बनाए गए। चहेते लोगों की भर्ती के लिए साक्षात्कार के अंक बढ़ा दिए गए। परिणाम घोषित होने के बाद जो खुलासे हुए वे तो और भी चौंकाने वाले थे। कई ऐसे लोगों को नियुक्तकिया गया जिनके पास आवेदन के समय तय योग्यता ही नहीं थी। कुछ ने आवेदन अंतिम तिथि के बाद किया था और कई के अंक कम थे। ऐसे भी आवेदन मिले जिनमें दूसरे के हस्ताक्षर थे। इस तरह न जाने कितने स्तर पर गड़बड़ी की गई। इससे भी गंभीर यह कि जरूरी औपचारिकताओं का पालन नहीं हुआ। हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग के तत्कालीन चेयरमैन ने महत्वपूर्ण फैसलों में भी अन्य सदस्यों को शामिल करना जरूरी नहीं समझा। सम्मानित जज मानते हैं कि चेयरमैन आयोग को एक निजी जागीर के रूप में संचालित करते रहे, मनमाने फैसले लेते रहे। यह कहना गलत नहीं होगा कि पूरा व्यवहार ही आपत्तिजनक था। हरियाणा में भर्ती प्रक्रिया को अदालत द्वारा रद किए जाने का यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि एक के बाद एक फैसले गलत साबित होने के बावजूद सरकार और उसके अधिकारी चेतने को तैयार नहीं हैं। आखिर कोई भर्ती एक दिन में संपादित नहीं हो जाती। इस मामले में ही 20 जुलाई 2006 को विज्ञापन जारी किया गया और 25 मार्च 2010 को नतीजे घोषित हुए। कहना यह कि इस पर बहुत समय और संसाधन खर्च होता है। इससे भी अहम सवाल साख और भविष्य का है। सरकार की विश्वसनीयता को तो चोट पहुंचती ही है, हजारों लोग भी प्रभावित होते हैं। सर्वाधिक नुकसान तो उनका होता है, जिनकी भर्ती रद होती है। इस अपराध में भले ही उनकी भागीदारी रही हो, लेकिन मिलने वाली सजा दूरगामी प्रभाव डालती है। उनका तो पूरा करियर ही खराब हो जाता है। इस पर आत्ममंथन होना चाहिए कि आखिर बार-बार ऐसा क्यों हो रहा है?
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