बच्चों के स्कूल छोड़ने के कारण.


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धुल नहीं पा रहा ड्रॉपआउट का दाग
बच्चों के स्कूल छोड़ने के कारण. : सिर्फ 52 प्रतिशत स्कूलों में ही स्वच्छ पीने का पानी उपलब्ध। बाकी स्कूलों के पानी में टीडीएस की मात्र बहुत अधिक। 1ंसभी प्राथमिक स्कूलों में छात्र-छात्रओं के लिए शौचालय की सुविधा नहीं।1ंमात्र 53 प्रतिशत प्राथमिक स्कूलों में हाथ धोने की सुविधा। 1ं35 प्रतिशत प्राइमरी स्कूलों में ही बिजली की सुचारू आपूर्ति।1ंसभी स्कूलों में विकलांग बच्चों के लिए रैंप सुविधा नहीं।1ं 65 प्रतिशत स्कूलों में ही खेल के मैदान। 1ं 6 प्रतिशत स्कूल ऐसे जहां बारिश में पहुंचना मुश्किल।
यशपाल शर्मा, चंडीगढ़1हरियाणा के सरकारी प्राथमिक स्कूलों में नौनिहाल अब भी पढ़ाई बीच में छोड़ रहे हैं। मुफ्त शिक्षा, मिड-डे मील और परीक्षा न होने के बावजूद पहली से पांचवीं कक्षा तक ड्रॉपआउट का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। पहली, तीसरी, चौथी और पांचवीं के छात्रों की संख्या इसमें सबसे अधिक है। दूसरी कक्षा में हालांकि इतनी बढ़ती संख्या में बच्चे स्कूल नहीं छोड़ रहे, लेकिन चार कक्षाओं का आंकड़ा कुल बच्चों की संख्या का एक से तीन प्रतिशत तक है। डाइज (डिस्टिक्ट इंफार्मेशन ऑफ स्कूल एजुकेशन) की वार्षिक रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। शिक्षा निदेशालय को भेजी गई रिपोर्ट के अनुसार पहली कक्षा में कुल संख्या का 1 प्रतिशत, दूसरी में 0.31 प्रतिशत, तीसरी में 1.03 प्रतिशत, चौथी में 1.98 प्रतिशत व पांचवीं में 2.86 प्रतिशत बच्चे स्कूल को अलविदा कह रहे हैं। पांचवीं कक्षा में स्कूल छोड़ने वाले छात्रों की संख्या प्रतिशत के लिहाज से सबसे ज्यादा है। बीते वर्ष के मुकाबले भी बच्चों के ड्रॉपआउट का प्रतिशत बढ़ा है। यही नहीं सरकारी स्कूलों में विकलांग बच्चे भी दाखिला लेने में रूचि नहीं दिखा रहे हैं। वर्ष 2011-12 में विकलांग बच्चों ने जहां 0.86 प्रतिशत प्राइमरी स्कूलों में दाखिला लिया था, वहीं 2013-14 में केवल 0.14 प्रतिशत बच्चों ने दाखिला लेने में रूचि दिखाई। दलित लड़कियों का भी पढ़ाई को लेकर मोहभंग हुआ है। अनुसूचित जाति की 47.78 प्रतिशत लड़कियों ने वर्ष 2012-13 में पहली से पांचवीं कक्षा तक दाखिला लिया, लेकिन वर्ष 2013-14 में यह संख्या घटकर 47.39 प्रतिशत ही रह गई।1578 स्कूल किए गए बंद : डाइज की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 2013-14 में प्रदेश में 434 नए प्राथमिक स्कूल खोले गए और लगभग 578 स्कूलों को कम छात्र संख्या का तर्क देकर बंद कर दिया गया। स्कूल शिक्षा विभाग 1200 स्कूलों को समायोजित करने पर विचार कर रहा है।
डाइज की रिपोर्ट का अध्ययन शुरू : मौलिक शिक्षा निदेशालय ने डाईज की रिपोर्ट की विवेचना शुरू कर दी है। जिन स्कूलों में बच्चे ज्यादा संख्या में पढ़ाई बीच में छोड़ रहे हैं, उन्हें चिह्न्ति कर कारणों का पता लगाया जा रहा है। मौलिक शिक्षा महानिदेशक सुभाष चंद्रा ने रिपोर्ट स्कूल शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव टीसी गुप्ता को भी प्रेषित की है।यशपाल शर्मा, चंडीगढ़1हरियाणा के सरकारी प्राथमिक स्कूलों में नौनिहाल अब भी पढ़ाई बीच में छोड़ रहे हैं। मुफ्त शिक्षा, मिड-डे मील और परीक्षा न होने के बावजूद पहली से पांचवीं कक्षा तक ड्रॉपआउट का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। पहली, तीसरी, चौथी और पांचवीं के छात्रों की संख्या इसमें सबसे अधिक है। दूसरी कक्षा में हालांकि इतनी बढ़ती संख्या में बच्चे स्कूल नहीं छोड़ रहे, लेकिन चार कक्षाओं का आंकड़ा कुल बच्चों की संख्या का एक से तीन प्रतिशत तक है।1 डाइज (डिस्टिक्ट इंफार्मेशन ऑफ स्कूल एजुकेशन) की वार्षिक रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। शिक्षा निदेशालय को भेजी गई रिपोर्ट के अनुसार पहली कक्षा में कुल संख्या का 1 प्रतिशत, दूसरी में 0.31 प्रतिशत, तीसरी में 1.03 प्रतिशत, चौथी में 1.98 प्रतिशत व पांचवीं में 2.86 प्रतिशत बच्चे स्कूल को अलविदा कह रहे हैं। पांचवीं कक्षा में स्कूल छोड़ने वाले छात्रों की संख्या प्रतिशत के लिहाज से सबसे ज्यादा है। बीते वर्ष के मुकाबले भी बच्चों के ड्रॉपआउट का प्रतिशत बढ़ा है। यही नहीं सरकारी स्कूलों में विकलांग बच्चे भी दाखिला लेने में रूचि नहीं दिखा रहे हैं। वर्ष 2011-12 में विकलांग बच्चों ने जहां 0.86 प्रतिशत प्राइमरी स्कूलों में दाखिला लिया था, वहीं 2013-14 में केवल 0.14 प्रतिशत बच्चों ने दाखिला लेने में रूचि दिखाई। दलित लड़कियों का भी पढ़ाई को लेकर मोहभंग हुआ है। अनुसूचित जाति की 47.78 प्रतिशत लड़कियों ने वर्ष 2012-13 में पहली से पांचवीं कक्षा तक दाखिला लिया, लेकिन वर्ष 2013-14 में यह संख्या घटकर 47.39 प्रतिशत ही रह गई।1578 स्कूल किए गए बंद : डाइज की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 2013-14 में प्रदेश में 434 नए प्राथमिक स्कूल खोले गए और लगभग 578 स्कूलों को कम छात्र संख्या का तर्क देकर बंद कर दिया गया। स्कूल शिक्षा विभाग 1200 स्कूलों को समायोजित करने पर विचार कर रहा है

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