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Dalip Bishnoi
पूरी कहानी, तथ्यों की जुबानी----
पात्र अध्यापक बनाम अतिथि अध्यापक।
न्याय बनाम अन्याय।
कानून बनाम धक्काशाही।
-------पढ़े और अपने विवेक से निर्णय लें-----
गैस्ट टीचर्स नियुक्ति/मामले की पृष्ठभूमि=
1. गेस्ट टीचर्स की नियुक्ति से पहले सरकार ने अनुबन्ध पर शिक्षक रखने का फैसला लिया था और पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ के CIIPP विंग को आवेदन लेने और मेरिट बना कर देने का कॉन्ट्रेक्ट दिया था। CIIPP विंग ने आवेदन लिए, 158,822 आवेदन मिले जिनसे 1 करोड़ 1 लाख 56 हजार 3 सौ 7 रुपए आवेदन फीस के रूप में मिले और CIIPP ने मेरिट लिस्ट बना कर शिक्षा विभाग को भेज दी जिसके एवज में कुल 6352880 रूपयों में से 33 लाख रूपये का भुगतान भी प्राप्त किया गया गया। लेकिन उस मेरिट लिस्ट से नियुक्ति करने की बजाय फिर नई नीति बनाई कि अब विद्यालय स्तर पर ही गैस्ट टीचर लगा लिए जाएं और नीतिगत पत्र दिनांक 29-11-2005 द्वारा सिर्फ 3 महीने के लिए यानि 31-03-2006 तक के लिए गैस्ट टीचर्स की नियुक्ति हुई थी I
2. गेस्ट टीचर्स की नियुक्ति के लिए कोई विज्ञापन नहीं दिया गया, स्कूल के गेट पर ही वेकेंसी नोटिस लगाने, सबंधित गांव के आवेदक को ही प्राथमिकता देने, बिना आरक्षण प्रावधान नियुक्तियां करने आदि ढंग से नियुक्तियों करना कानून सम्मत नहीं था और भारत के संविधान में वर्णित समानता के मौलिक अधिकार का हनन था यानि गेस्ट टीचर्स की नियुक्ति की बुनियाद ही असंवैधानिक है और भारत के संविधान की अवहेलना करके व उमा देवी बनाम कर्नाटक सरकार मामले में दिए गए 5 जजों की सवैंधानिक खण्डपीठ द्वारा दिए ऐतिहासिक फैसले के मद्देनजर कोई भी राज्य सरकार गेस्ट टीचर्स को नियमित नहीँ कर सकती। तत्कालीन हरियाणा सरकार ने भी ये बात पात्र अध्यापकों की और से अशोक कुमार द्वारा 2009 में दायर याचिका (CWP No. 13045/2009) में हाईकोर्ट में दिए अपने लिखित जवाब में मानी हुई है कि गैस्ट टीचर्स ने राज्य सरकार से उन्हें रेगुलर करने की मांग की थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा उमा देवी मामले में दिए फैसले के बाद गैस्ट टीचर्स को रेगुलर करना सम्भव ही नहीँ है। (नोट- सरकार के एफिडेविट/लिखित जवाब ऑन रिकार्ड है, कोई भी पढ़ कर पुष्टि कर सकता है।)
गैस्ट टीचर्स मामले के क़ानूनी पक्ष व लम्बे क़ानूनी संघर्ष और हाईकोर्ट/सुप्रीमकोर्ट के फ़ैसलों की कहानी -
1. गेस्ट टीचर्स मामले में सबसे पहली याचिका खुद गैस्ट टीचरों ने हाईकोर्ट में डाली थी "बलराज व अन्य बनाम हरियाणा सरकार (CWP No. 4367/2006)"। उस याचिका में मांग की गई थी कि उन्हें 31-03-2006 को हटाया न जाए और रेगुलर भर्ती होने तक सेवारत रखा जाए तथा रेगुलर के समान मिनिमम वेतन दिया जाए अर्थात रेगुलर वाला वेतन दिया जाए। तत्कालीन हरियाणा सरकार ने याचिका का पुरजोर विरोध किया और कोर्ट में लिखित जवाब में गैस्ट टीचर्स की भर्ती में रही तमाम कमिया/खामियाँ हाईकोर्ट को बता डाली और कहा कि 31-03-2006 के बाद इन्हें सेवा में रखना कानूनन सही नहीँ होगा। हाईकोर्ट ने 20-03-2006 को दिए अपने फैसले में रेगुलर टीचर्स के समान वेतन की मांग ख़ारिज करते हुए गैस्ट टीचर्स को सिर्फ इतनी राहत दी कि रेगुलर भर्ती की प्रक्रिया शुरू हो गई है इसलिए गेस्ट को रेगुलर भर्ती तक तो सेवारत रखा जाए ताकि बच्चों की पढ़ाई पर विपरीत असर न पड़े। तत्कालीन हरियाणा सरकार को पता था कि उसका पक्ष क़ानूनी रूप से बहुत ज्यादा मजबूत है इसलिए सरकार हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई थी और गैस्ट टीचर्स भर्ती की तमाम खामियाँ गिनवाते हुए स्पेशल अपील दायर कर दी थी जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपील दायर करने में हुई देरी को माफ़ करते हुए हाईकोर्ट के फैसले पर 04-09-2006 को रोक लगा दी थी। ये मामला सुप्रीम कोर्ट में करीबन 6 साल तक लंबित रहा और इस दौरान हुड्डा सरकार का हृदय परिवर्तन हो गया और सरकार की रूचि इस केस/मामले में खत्म हो गयी थी क्योकि सरकार को पता था कि अगर वो ये केस लड़ेगी तो जीतेगी और जीत का मतलब था गैस्ट टीचर्स को हटाना। बाद में इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की बार-बार लताड़ के चलते व गैस्ट के प्रति हुए हृदय परिवर्तन के कारण हैरानीजनक ढंग से सरकारी वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि सरकार इस केस को अब आगे नहीँ लड़ना चाहती है जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने 10-02-2012 को ये लिख कर सरकार की वो याचिका ख़ारिज कर दी थी कि याचिकर्ता द्वारा केस आगे प्रेस न करने के कारण ये याचिका ख़ारिज की जाती है।
2. 2007 में फिर कई याचिका डालते हुए गैस्ट टीचर्स ने हाईकोर्ट में मांग की थी कि नियमित शिक्षक भर्ती होने तक उन्हें सेवा में बनाए रखा जाये और उन्हें छुट्टियों का भी मानदेय दिया जाए। जिसका तत्कालीन हरियाणा सरकार ने डटकर कर विरोध किया और गैस्ट टीचर्स की नियुक्तियों में तमाम खामियां अपने लिखित जवाब में गिनाई। इस पर हाईकोर्ट ने सभी याचिकाओं का सामूहिक निपटारा करते हुए "बलदेव सिंह व अन्य बनाम हरियाणा सरकार (CWP No. 387/2007)" में 30-8-2007 को फैसला दिया था और हाईकोर्ट ने अपने सख्त फैसले में गैस्ट टीचर्स की न केवल सारी मांगे ठुकराई बल्कि ये फैसला दे दिया कि गैस्ट टीचर्स को तो नियमित शिक्षक भर्ती होने तक भी सेवा में बने रहने का अधिकार नहीँ है। रेगुलर भर्ती तक गैस्ट को सेवारत रखना तो इन्हें सरकार पर थोपने जैसा होगा। सरकार जब चाहे उनकी सेवा समाप्त कर सकती है और गैस्ट टीचर्स की सभी याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया था। गेस्ट टीचर्स ने हाईकोर्ट के इस फैंसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी क्योँकि उन्हें पता था कि क़ानूनी रूप से उनका पक्ष जीरो है और अगर सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनोती दी गई तो सम्भावना उल्टा ये है कि सुप्रीम कोर्ट इससे भी ज्यादा ऑब्जर्वेशन/रिमार्क्स/कड़ी टिप्पणी के साथ उनकी याचिका ख़ारिज करेगा और ये आत्मघाती कदम होगा। गैस्ट टीचर्स ने दूसरा विकल्प चुना और सरकार पर आंदोलन से दबाव बढ़ाया और वो सेवा में बने रहने में कामयाब रहे।
कहानी में ट्विस्ट--
अब तक तो सरकार के खिलाफ केस खुद गैस्ट टीचर्स डालते रहे थे और हारने के बावजूद हर बार दबाव/ आंदोलन से कार्यकाल बढ़ता रहता था। वहीँ इसी दौर में सरकार ने अप्रैल 2008 में रेगुलर शिक्षक भर्ती के लिए "अध्यापक पात्रता परीक्षा" का प्रावधान किया जिसको गैस्ट टीचर्स ने हाईकोर्ट में चुनोती दी जिस पर सरकार ने पहले केस में तो अपना स्टेट का प्रॉस्पेक्ट्स वापिस ले लिया लेकिन फिर से नियमो में उचित सुधार कर स्टेट लागु कर दिया। जिसकों फिर गैस्ट टीचर्स ने हाईकोर्ट में चुनोती दी थी और इस पर रोक लगाने की मांग की जो हाईकोर्ट ने ठुकरा दी। पहली बार 2008 में स्टेट परीक्षा आयोजित हुई और पहली बार पात्र अध्यापको के रूप में एक नई शक्ति का उदय हुआ। अचानक गैस्ट के बढ़ते दबाव से इस दौर में हुड्डा सरकार का हृदय परिवर्तन हो गया। फिर शुरू हुआ गैस्ट टीचर्स को नित नई सौगात बाँटने का सिलसिला। सरकार ने गैस्ट टीचर्स को 1 अप्रैल 2009 से फिक्स मानदेय पर 1 साल के अनुबन्ध पर रखने की घोषणा की। लेकिन तब तक पात्र अध्यापक संघ नामक नई शक्ति का उदय हो चूका था और पात्रता परीक्षा पास ये युवा समझ गए थे कि सरकार व अतिथि अध्यापक अब हाथ मिला चुके है और पात्र अध्यापको को अपने अधिकारो की लड़ाई खुद अपने बुते ही लड़नी होगी। पात्र अध्यापको ने अब क़ानूनी व मैदानी मोर्चा संभाल लिया और फिर शुरू ही एक लंबी क़ानूनी और मैदानी लड़ाई की शुरुआत।
यंहा से शुरू हुई बेहद खर्चीली व लम्बी क़ानूनी लड़ाई की कहानी इस प्रकार है--
1. 1 अप्रैल 2009 से सिर्फ गेस्ट टीचर्स को कॉन्टेक्ट पर रखने और बाकि युवाओँ को कॉन्ट्रेक्ट के लिए मौका न देने के खिलाफ 57 पात्र अध्यापकों के साथ दलीप सिंह ने हाईकोर्ट में 23-03-2009 को याचिका दाखिल की थी और 31 मार्च 2009 को हुई बहस के ( हालाँकि फैसले की आधिकारिक तिथि 01-04-2009 अंकित है) बाद हाईकोर्ट ने "दलीप सिंह व अन्य बनाम हरियाणा सरकार (CWP No.4562/09)" केस में अपना फैसला देते हुए सरकार द्वारा अकेले गैस्ट टीचर्स को अनुबन्ध का लाभ देने को गलत माना और कहा कि ये तो सविंधान की धारा 14 व 16 का साफ उल्लंघन है। 1 साल के लिए फिक्स मानदेय पर शिक्षक रखने है तो सभी योग्य उम्मीदवारो को समान रूप से मौका देना होगा। हाईकोर्ट ने तो इसी फैसले में 2 कदम आगे जा कर उल्टा गैस्ट टीचर्स को 15 मई 2009 को हटाने के आदेश भी पारित कर दिया। ये पूरा केस सिर्फ 7 दिन में निपट गया और रणनीति के तहत फैसला आने तक मिडिया को भी भनक नही लगी। जैसे ही 1 अप्रैल को इस फैसले की खबर छपी तो गैस्ट टीचर्स में पहली बार हड़कम्प मचा और पात्र अध्यापकों को लगा की कानून के सहारे न्याय पाया जा सकता है। गैस्ट टीचर्स ने ताबड़तोड़ बड़ा वकील करके इस केस में पुनर-विचार याचिका दाखिल की जिसको हाईकोर्ट की उसी सिंगल बेंच ने स्वीकार कर लिया जिसने हटाने का फैसला दिया था और दोबारा से बहस हुई लेकिन इस बार सिंगल बेंच ने फैसला देने की बजाय मामला डिवीजन बेंच को रेफर कर दिया। डिवीजन बेंच ने गैस्ट टीचर्स के अनुबन्ध को "सब्जेक्ट टू फाइनल डिसीजन ऑफ़ रिट पिटीशन" कर दिया और आगामी सुनवाई की तारीख लगा दी थी। इस मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने गेस्ट टीचर्स मामले की फ़ाइल तलब की जिसमे जज साहब ने पाया कि सरकार न केवल गैस्ट टीचर्स को अनुबन्ध का लाभ देने जा रही है बल्कि इन्हें रेगुलर भर्ती में भी स्टेट से छूट व अनुभव के 24 अंक देने वाली है। पात्र अध्यापक नामक शक्ति ने तुरन्त अशोक कुमार के नाम से नई याचिका दाखिल कर गैस्ट टीचर्स को रेगुलर भर्ती में दी जाने वाली स्टेट से छूट व अनुभव के 24 अंको को चुनोती दी। आखिरकार हाईकोर्ट ने अपने सुरक्षित निर्णय को 06-04-2010 को सुनाते हुए गैस्ट टीचर्स को रेगुलर भर्ती में दी गई स्टेट से छूट व अनुभव के 24 अंको को गलत ठहराते हुए रद्द कर दिया और इसे चोर दरवाजे से गैस्ट टीचर्स को रेगुलर करने का प्रयास माना। हाईकोर्ट ने गैस्ट टीचर्स के अनुबन्ध को चुनोती वाली अन्य याचिकाओं के संदर्भ में कहा कि अब रेगुलर भर्ती हो ही रही है इसलिए ये याचिकाएं अब संदर्भहीन हो गई है। गैस्ट टीचर्स ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीमकोर्ट में चुनोती दी जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने 21-02-2012 को अपना फैसला देते हुए कड़ी टिप्पणी के साथ याचिका ख़ारिज कर दी और हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया। इसके साथ ही पात्र अध्यापको ने अपना वाजिब हक हासिल कर लिया।
(इसी दरम्यान पात्र अध्यापकों ने स्टेट की वैधता को चुनोती वाली याचिका "विजय कुमार व अन्य बनाम हरियाणा सरकार" में पार्टी बनके अपना वकील किया और वो याचिका ख़ारिज करवा कर जीत हासिल की तथा इसके बाद बी.एड बेस पर जेबीटी लगे हुए गैस्ट टीचर्स की 8404 जेबीटी भर्ती में शामिल करने की मांग वाली याचिका "रितेश दत्ता व अन्य बनाम हरियाणा सरकार" में पार्टी बनकर उसको ख़ारिज करवा जीत दर्ज की)
2. इसके बाद गेस्ट टीचर्स को कॉन्ट्रेक्ट को आगे न बढ़ाने और इनकी जगह रेगुलर भर्ती करने की मांग को ले कर पात्र अध्यापकों ने CWP No. 6090/2010 दाखिल की जिस पर सरकार फिर मुसीबत में आ गई क्योंकि जज साहब ने पूछा कि 8404 जेबीटी+2500 के करीब मास्टर केडर+1400 से ज्यादा स्कूल लेक्चरर की रेगुलर नियुक्ति के बाद भी गैस्ट टीचर्स सेवा में क्यों बने हुए है। मज़बूरी में सरकार ने कहा कि RTE Act. लागु होने से और ज्यादा शिक्षकों की जरूरत है और अब एनसीटीई नियमो के अनुसार टेट नए प्रावधानों के अनुसार लेना पड़ेगा फिर नियुक्तियाँ होगीं। जज साहब को पूरा मामला क्लीयर समझ में आ गया कि सरकार पहले तो कोर्ट में कह देती है कि रेगुलर भर्ती तक गैस्ट टीचर्स को सेवारत रखना उनकी मज़बूरी है और भर्ती होते ही फिर इन्हे हटाती नहीं है। 2006 के बाद 2 बड़ी रेगुलर भर्तियां हो चुकी थी। ऐसे में हाईकोर्ट ने कड़ा स्टैंड लेते हुए तिलकराज बनाम हरियाणा सरकार केस (ये जनहित याचिका थी) में 30 मार्च 2011 को दिए फैंसले में साफ लिख दिया था कि 31 मार्च 2012 के बाद गेस्ट टीचर्स की सेवा अपने आप समाप्त मानी जायेगी और हरियाणा सरकार किसी भी हालत में इनकी सेवा आगे नहीं बढ़ा सकेगी। ये भी आदेश पारित किया कि सरकार 31-12-2011 तक रेगुलर भर्ती पूरी करेगी और आदेश का पालन न होने पर कोर्ट की अवमानना मानी जायेगी।
3. हाईकोर्ट में CWP No. 6090/2010 में शिक्षा विभाग की तत्कालीन वित्तायुक्त एवम मुख्यसचिव द्वारा दिए गए हल्फनामे के अनुसार 15 अप्रैल 2011 को HTET-2011 के प्रॉस्पेक्ट्स मिलने शुरू होने थे तथा जून में 25,26,27 व 28 जून को HTET-2011 के पेपर होने थे। उसके बाद रेगुलर भर्ती की प्रक्रिया शुरू होनी थी। सरकार ने HTET-2011 को लटकाना शुरू कर दिया जिसके खिलाफ पात्र अध्यापकों ने अवमानना याचिका COCP No. 2242/2011 दाखिल की जिस पर हाईकोर्ट द्वारा जवाब तलब करने पर HTET-2011 का आयोजन हुआ। इसी अवमानना मामले में अवमानना याचिका पर आगामी सुनवाई नजदीक आती देख सरकार ने हाईकोर्ट में 16-12-2011 को एक एप्लीकेशन नम्बर 17483/2011 दाखिल कर 31 दिम्बर 2011 तक नियमित शिक्षकों की भर्ती करने में असमर्थता जताते हुए 6 महीने का समय और माँगा। इस एप्लीकेशन पर 3 महीने बाद 15 मार्च 2012 को सुनवाई हुई तो जज साहब ने पूछा कि ये एप्लीकेशन आपने 3 महीने पहले यानि 16-12-2011 को दाखिल की थी, आपने इन बीच के 3 महीनों में भर्ती के लिए क्या कदम उठाए तो कोई संतोषजनक जवाब न पा कर बेहद कड़ी टिप्पणी करते हुए हाईकोर्ट ने उसको ख़ारिज करते हुए 15-3-2012 को दिए अपने फैसले में कहा कि आखिर कितने दिन गैस्ट टीचर्स को बचाओगे, एक दिन तो आखिर इनको जाना ही है और ये एक टर्मिनल डिजीज है जिसको और ज्यादा फैलने से रोका जाना चाहिए। इससे कड़ी टिप्पणी हाईकोर्ट क्या कर सकता था। "if this ill is allowed to continue, it may become a terminal disease". (फैसला ऑन रिकार्ड है, पढ़ कर पुष्टि की जा सकती है)
4. इसी दौरान हाईकोर्ट में शिक्षक भर्ती की मांग वाली एक अन्य याचिका CWP No. 7121/2010 में सरकार ने रेगुलर भर्ती के लिए 322 दिन का शेड्यूल पेश किया और ये तथ्य छिपा लिया कि 15 मार्च 2012 को ख़ारिज एप्लीकेशन नम्बर 17483/2011 में सिर्फ 6 महीने यानि 15 जून तक का समय माँगा हुआ था और तिलकराज केस CWP No. 6090/2010 में भी पहले 31 दिसम्बर 2011 तक भर्ती करने का शेड्यूल दिया था। इस तथ्य को छिपाने का लाभ सरकार को ये हुआ कि हाईकोर्ट ने 322 दिन के शेड्यूल को स्वीकार करते हुए रेगुलर भर्ती पूरी करने के आदेश दिए। (पात्र अध्यापक इस मामले में पार्टी नहीँ थे और इसलिए सही तथ्य हाईकोर्ट के संज्ञान में नहीं आए थे)। गैस्ट टीचर्स के मामले में हाईकोर्ट 15 मार्च को सरकार की एप्लीकेशन पहले ही ख़ारिज कर चूका था इसलिए इस याचिका में 19-03-2012 को दिए एफिडेविट में सरकार ने बड़ी सावधानी से गैस्ट टीचर्स का कोई जिक्र तक नही किया ताकि कोर्ट को कंही 15 मार्च वाले फैसले की याद न आ जाए। निशाना सही लगा और हाईकोर्ट को अपना 5 दिन पहले दिया फैसला याद नही रहा क्योकि इस केस में गैस्ट का जिक्र नहीँ था। सरकार को भर्ती के लिए 322 दिन का टाइम मिल गया जबकि 15 मार्च को भर्ती व गैस्ट के लिए टाइम मांगने की एप्लीकेशन ख़ारिज हो चुकी थी।
5. एक ही बेंच द्वारा रेगुलर शिक्षक भर्ती के मुद्दे पर 15 मार्च 2012 को समय देने से इंकार करने व 20 मार्च 2012 को दिए फैसले में 322 दिन का समय देने के दो अलग-अलग फैसलों को आधार बना कर तत्कालीन सरकार व गैस्ट टीचर्स ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की थी। उस पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए 30-3-2012 को एसएलपी(सिविल)सीसी न0 5956-5957/2012 में निर्णय दिया कि सरकार निर्धारित 322 दिन की तय समय सीमा में रेगुलर जेबीटी शिक्षक भर्ती पूरी करे। माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा एसएलपी(सिविल)सीसी न0 5956-5957/2012 में 30-3-2012 को दिए इस निर्णय के अनुसार तत्कालीन सरकार को 322 दिन की तय समय अवधि में शिक्षक भर्ती पूरी करनी थी लेकिन तत्कालीन सरकार ने जब तीन महीने तक शिक्षक भर्ती के संदर्भ में कोई कदम नहीं उठाया तो माननीय सुप्रीम कोर्ट में पात्र अध्यापकों ने कंटेम्प्ट पिटीशन (सिविल)न0 420/2012 दायर की गई जिस पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा संज्ञान लेते हुए संबंधित अधिकारियों व भर्ती बोर्ड से जवाब तलब किया। मजबूरन भर्ती का विज्ञापन जारी करना पड़ा। भर्ती में देरी पर अपने जवाब में सरकार ने भर्ती बोर्ड मामले में लगे स्टे, सीटेट/एचटेट-2013 मामले में हाईकोर्ट के स्टे का हवाला दे कर अपना बचाव कर लिया। सुप्रीम कोर्ट ने तथ्यों को मद्देनजर 26-03-2014 को अवमानना याचिका का निपटारा करते हुए आदेश दिया की स्टे हटते ही तेजी से नियुक्ति दी जाए और हाईकोर्ट से भी प्रार्थना की कि जेबीटी भर्ती सबंधी मामलों का फैसला जल्दी करें।
6. भर्ती में देरी की सबसे बड़ी वजह ये थी कि तत्कालीन सरकार ने बड़ी चालाकी से CWP No. 7121/2010 के 20 मार्च 2012 के फैसले में एक बड़ी तकनीकी खामी खोज निकाली थी। कोर्ट में दिए शेड्यूल के अनुसार 10 दिन में भर्ती प्रक्रिया शुरू होनी थी। लेकिन सरकार ने हाईकोर्ट द्वारा इस मामले में दिए आदेश में बड़ा सुराख़ ढूंढ लिया था। आदेश के अनुसार 322 दिन की समयसीमा विज्ञापन जारी होने के दिन से शुरू होनी थी। बस सरकार की मुराद पूरी हुई और भर्ती को लटकाने की योजना पर काम शुरू किया यानि भर्ती का विज्ञापन ही लटका दो ताकि 322 दिन की समयसीमा शुरू ही न हो। भर्ती बोर्ड ने तो जेबीटी भर्ती का विज्ञापन जुलाई 2014 में छपने के लिए भेज दिया था लेकिन फोन पर भर्ती रोकने का निर्देश मिलने पर विज्ञापन वापिस मंगवा लिया गया था और इससे जेबीटी भर्ती 3 माह लटकी व बाद में 7 नवम्बर 2012 को विज्ञापन जारी किया। भर्ती पर हुए हर केस में जवाब देने में देरी की गई ताकि मामले लम्बे खिचे। आज भी यही रणनीति कारगर रूप से अमल में लाई जा रही है। जेबीटी भर्ती के लंबित केसों में हाईकोर्ट में सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट द्वारा 26 मार्च 2014 को दिया गया आदेश रिकार्ड पर नही दिया जा रहा है। सिर्फ जेबीटी भर्ती का रिजल्ट घोषित करवाने के लिए तत्कालीन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का 26 मार्च 2014 का आदेश हाईकोर्ट को दिखाया और उस आदेश के मद्देनजर रिजल्ट घोषित करने की अनुमति मांगी थी जो तुरन्त मिल भी गई थी।
7. पीजीटी भर्ती के बाद भी टीजीटी व पीजीटी पदों पर लगे सभी गेस्ट टीचर्स को न हटाने पर पात्र अध्यापकों ने हाईकोर्ट के CWP No. 6090/2010 में पारित आदेश की अवमानना मानते हुए अवमानना याचिका COCP No. 3334/14 दायर की जिसकी अगली सुनवाई 12 मई 2015 को है।
8. 719 गैस्ट मामले में पात्र अध्यापको ने CWP No. 3990/2012 दायर की थी जिस पर 10-09-2012 को हाईकोर्ट ने फैसला दिया था कि कारवाई कर आदेश की अनुपालना रिपोर्ट हाईकोर्ट में दी जाए। गैस्ट टीचर्स इस आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट गए और स्टे ले लिया परन्तु पात्र अध्यापकों ने सुप्रीम कोर्ट में केस में पार्टी बनकर गेस्ट की याचिका ख़ारिज करवा दी। याचिका ख़ारिज होने के फैसले की कॉपी याचिकाकर्ता बिजेंद्र कुमार ने शिक्षा विभाग को बाय हैंड दी गई लेकिन कार्यवाही न होने पर पात्र अध्यापकों ने हाईकोर्ट में 2 अलग-अलग अवमानना याचिकाएँ COCP No. 2702/2014 व COCP No. 3471/14 दाखिल की गई और मजबूरन गलत ढंग से लगे 518 गैस्ट टीचर्स को सरकार को हटाना पड़ा। ये दोनों अवमानना याचिकाएँ अभी लंबित है।
9. पुरे मामले का दिलचस्प पहलु ये है की जिस मामले में अब 4000 से ज्यादा सरप्लस गैस्ट टीचर्स को हटाने का एफिडेविट मुख्य सचिव ने खुद हाईकोर्ट में दिया है वो केस खुद एक गैस्ट टीचर्स द्वारा डाले गए केस में ही दिया गया है। गलत ढंग से लगे हटाए गए 518 गैस्ट में अपना नाम आने पर गैस्ट टीचर सीमा देवी (CWP No. 2968/2015) ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। जिस पर हाईकोर्ट ने जब नोटिस जारी किया तो तुरन्त इसी केस में पात्र अध्यापकों की और सेे बिजेंद्र लहरियाँ ने CM No.3082-83/2015 द्वारा केस में पार्टी बनने और अपना 300+ पेज का जवाब दाखिल करने की अनुमति मांगी जो मिल गई। 300+पेज के जवाब में गैस्ट टीचर्स मामले में 2006 से अब तक के तमाम फैसले और कहानी हाईकोर्ट को बताई। ये भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ 322 दिनों तक ही गैस्ट टीचर्स को सेवारत रखने की अनुमति दी थी जबकि अब तो दुगना टाइम बीत चुका है। पीजीटी भर्ती के बावजूद एक भी गैस्ट नहीँ हटाया गया जबकि सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने 30 मार्च 2012 को कहा था कि रेगुलर भर्ती होने तक ही गैस्ट टीचर्स काम करेंगे। 2006 के बाद 40000 रेगुलर शिक्षक भर्ती हो चुके है लेकिन गैस्ट टीचर्स की संख्या कम होने बजाय बढ़ी है। अब ये मामला विचाराधीन है।
निष्कर्ष :-
अंत में ये कहना शायद गलत नहीं होगा कि बेरोजगार होते हुए भी पात्र अध्यापकों ने गैस्ट टीचर्स व सत्ता को कड़ी चुनोती दे कर अपना न्यायसंगत हक पाया और आज ये हक की लड़ाई अपने अंतिम मुहाने पर है। अंत में क्रिकेट विश्वकप का ये प्रसिद्ध जिंगल," मौका-मौका"।
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