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न मिले और मोहलत
दावों के उलट वास्तविकता सामने आने के बाद भी सख्ती दिखाने में सरकार लगातार ङिाझकती रही है। चयनित जेबीटी अध्यापकों की अंगूठा जांच प्रक्रिया समय पर निपटाने में जिस तत्परता की अपेक्षा थी, उसका सर्वथा लोप दिखाई दिया। इस कारण सरकार की साख और विश्वसनीयता निश्चित रूप से प्रभावित हुई है। अब जैसे नींद से जाग कर आदेश दिया गया है कि 9 और 10 अप्रैल तक अंगूठा जांच न करवाने वालों पर शिकंजा कसा जाएगा, उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी और साथ ही जेबीटी पात्रता भी रद कर दी जाएगी। ताज्जुब है कि साढ़े चार हजार उम्मीदवारों ने अभी तक अपने अंगूठों के निशान और हस्ताक्षर जांच समितियों को नहीं दिए। एक तरफ तो चयनित अध्यापक नियुक्ति देने के लिए धरने-प्रदर्शन करके सरकार पर लगातार दबाव बना रहे हैं, दूसरी ओर उन्हीं के सहयोगी अनिवार्य दायित्व का पालन नहीं कर रहे। इसका क्या अर्थ लगाया जाए? क्या वे नौकरी के इच्छुक नहीं, यदि नौकरी की जरूरत नहीं थी तो परीक्षा व साक्षात्कार में क्यों उपस्थित हुए थे? उनकी जगह किसी और को अवसर मिलता। दूसरी और गंभीर बात यह है कि वे अब जांच समिति से मुंह क्यों छिपा रहे हैं? बार-बार अवसर दिए जाने के बाद भी अपनी प्रामाणिकता साबित करने के लिए आगे न आना अनेक संदेहों को जन्म दे रहा है। यह तो तय है कि फर्जीवाड़ा पाए जाने पर दंड अवश्य मिलेगा। 2011 में 8285 पदों पर भर्ती हुई और बड़े पैमाने पर मुन्ना भाइयों का खेल चलने के आरोप लगे थे। अंगूठा किसी का और परीक्षा किसी और ने दी, अदालत में चुनौती दी गई और उसी के आदेश पर नवचयनित शिक्षकों के अंगूठों की फोरेंसिक जांच करवाई जा रही है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भर्ती प्रक्रिया के समय सरकार का निगरानी तंत्र नितांत निष्प्रभावी रहा, इसी वजह से अनियमितताओं के द्वार खुले। दिसंबर से चल रही जांच प्रक्रिया के दौरान अनेक केस ऐसे सामने आ चुके जब अंगूठे का मिलान नहीं हो सका। इसका सीधा मतलब है कि धांधली करके भर्ती प्रक्रिया की पवित्रता को अंगूठा दिखाने की कोशिश की गई। सरकार को दो स्तरों पर अपनी विफलता को स्वीकार करना चाहिए। पहला यह कि भर्ती प्रक्रिया को चाकचौबंद नहीं किया गया, दूसरा जांच प्रक्रिया में भी अनावश्यक विलंब हुआ। अब अपेक्षा है कि और मोहलत न दी जाए और दूध का दूध व पानी का पानी करके उन अध्यापकों को तत्काल नियुक्ति दी जाए जो अपनी प्रतिभा के बल पर कामयाब रहे।
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