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अनुपालन हो सुनिश्चित111कोर्ट में दाखिल मामलों और फैसलों के आलोक में देखें तो स्पष्ट अहसास होता है कि हरियाणा सरकार की शिक्षा नियमावली तैयार करते वक्त पर्याप्त गंभीरता नहीं दिखाई गई। अनेक बिंदु ऐसे छोड़ दिए गए जिनका लाभ उठाकर निजी स्कूल सरकार के इरादों और आदेशों को ठेंगा दिखाते रहे। हाई कोर्ट के ताजा आदेश से यह तो तय हो गया है कि निजी स्कूलों को गरीब बच्चों को निश्शुल्क दाखिला देना ही पड़ेगा। उनके लिए किसी हद तक राहत की बात यह है कि कुछ कक्षाओं में वे बच्चों से सरकारी स्कूलों के बराबर फीस वसूल कर सकेंगे। गरीब बच्चों के हकों की लगातार पैरवी कर रहे दो जमा पांच आंदोलन के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि तो यही है कि हाई कोर्ट ने नियम 134 ए को वैध और प्रामाणिक ठहराते हुए निजी स्कूल संचालकों को इसका पालन करने का आदेश दिया। सरकार को कोर्ट के आदेश और विरोधाभास से भरे अब तक के प्रयासों से उत्पन्न स्थिति का गंभीरता से अध्ययन करते हुए अपनी छवि सुधारने और शिक्षा का अधिकार के तहत गरीब बच्चों के हकों का मान सम्मान करने में और विलंब नहीं करना चाहिए। नियम 134 ए के तहत सरकार ने स्वयं अति उत्साह में आकर निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटें गरीब बच्चों के निश्शुल्क दाखिले के लिए आरक्षित करने को कहा था। पिछली सरकार नाना प्रकार की दलीलें देती रही, दावे करती रही लेकिन यह सत्य किसी से छिपा नहीं रहा कि वह निजी स्कूल संचालकों के दबाव में आ चुकी थी। इसी कारण दाखिले का कोटा 25 से घटाकर 10 प्रतिशत कर दिया गया। कथनी-करनी तथा नीति और नीयत में विरोधाभास होने के कारण पिछले दो शिक्षा सत्रों में एक फीसद बच्चों को भी मुफ्त दाखिला नहीं मिल पाया। नई सरकार पहले दिन से ही इस मुद्दे पर पुरानी कमी-कमजोरियों को दूर करने की प्रतिबद्धता दिखाती रही है, सबसे पहले यह साबित करना होगा कि वह निजी स्कूल संचालकों के दबाव में नहीं। कोर्ट के आदेश का नए सत्र में पालन सुनिश्चित करने के लिए वह अपनी कार्य योजना को अंतिम रूप दे तथा हर स्कूल व बच्चे तक दिशा निर्देश पहुंचाए। आदेश पालन न करने वाले निजी स्कूलों पर दंड तय किया जाए, दंड की समयावधि तय हो , यह भी सार्वजनिक किया जाए कि कितने स्कूलों को दंडित किया गया। सरकार का अहम दायित्व नीति व नीयत स्पष्ट करने का है।
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