प्रदेश के सरकारी प्राइमरी स्कूलों को रिकॉर्ड में छात्रों की फर्जी संख्या दिखाना महंगा पड़ने वाला है। फर्जी छात्रों पर दाखिला से लेकर नाम कटने तक मिड-डे मील और अन्य सुविधाओं पर जितनी भी राशि खर्च हुई है, स्कूल शिक्षा विभाग उसे प्राथमिक शिक्षकों से वसूल करेगा। विभाग ने स्कूलों की जांच में 57 हजार चार सौ छात्रों का
रिकॉर्ड फर्जी पाए जाने के बाद ये निर्णय लिया है। रिकॉर्ड की जांच में पाया गया कि दाखिला लेने के बाद छात्र स्कूलों में आए ही नहीं, जबकि उनके नाम की राशि भी खर्च में दिखाई जाती रही। वसूली करने के फरमान के बाद स्कूलों में हड़कंप मचा हुआ है। शिक्षक इसका ठीकरा पूर्व कांग्रेस सरकार पर फोड़ रहे हैं। चूंकि शिक्षा का अधिकार कानून पूर्व हुड्डा सरकार के समय ही लागू हुआ है। उस समय दाखिला के बाद स्कूलों में न आने वाले छात्रों का नाम काटने पर मनाही थी जिसका खमियाजा अब शिक्षकों को भुगतना पड़ रहा है। भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद स्कूल शिक्षा विभाग ने शिक्षा का अधिकार कानून में भी संशोधन किए हैं। अब आठ से दस दिन स्कूल से गैर हाजिर रहने वाले छात्र का नाम हाजिरी रजिस्टर से काटा जा रहा है। हरियाणा में 2011 में लागू शिक्षा का अधिकार अधिनियम में उस समय ये व्यवस्था नहीं थी। अधिनियम में साफ लिखा गया था कि जाति, आयु प्रमाण-पत्र व कोई अन्य दस्तावेज न होने पर छात्रों को दाखिला नहीं दिया जाएगा और न ही स्कूल से अनुपस्थित रहने पर नाम काटने की अनुमति होगी। शिक्षा विभाग द्वारा हाल ही में लागू की गई सूचना प्रबंधन प्रणाली में भी बच्चों के डाटा का मिलान नहीं हो पा रहा है। अब बच्चों से बहुत सारे दस्तावेज मांगे गए हैं, जिनमें आधार कार्ड सहित आयु प्रमाण पत्र व माता-पिता का रिकार्ड भी मुहैया कराना अनिवार्य है। इससे स्थिति और विकट हो गई है। शिक्षक सबसे अधिक परेशान इस बात से हैं कि विभाग ने मिड-डे मील की राशि की रिकवरी शिक्षकों से करने का पत्र भी जारी कर दिया है।
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