शिक्षा की डगर मुश्किल, नहीं बदल पाए हालात

भाजपा सरकार भी नहीं सुधार पाई स्थिति, मूलभूत सुविधाएं तो दी, गुरुजनों की कमी भी नहीं हो पाई पूरी 

प्रदीप ढुल, कैथल इसे शिक्षा विभाग की लाचारी कहें या मनोहर सरकार की एक साल की अनदेखी कि प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के एक साल बाद भी शिक्षा के आधारभूत ढांचे में ज्यादा सुधार नहीं हो
पाया है। सरकार की उपलब्धियां कम, जबकि कमियां ज्यादा नजर आती हैं। 1कम से कम कैथल जिले के हालात तो यही स्थिति बयां कर रहे है। क्योंकि जिले भर में साइंस, गणित, सामाजिक विज्ञान और हंिदूी के अध्यापकों की काफी कमी है, जबकि आधे स्कूल ऐसे हैं, जो बिना मुखिया के ही चल रहे है। कहीं पर विद्यार्थियों को एक ही कमरे में पशुओं की तरह ठूंसा जा रहा है तो कहीं विद्यार्थी जर्जर भवन में ही शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर है। एजुसेट और जनरेटर सिर्फ शोपीस बनकर रह गए है। मनमाने ढंग से फीस बढ़ाने वाले निजी स्कूल संचालकों पर भी सरकार शिकंजा कसने में नाकाम रही है।1ये हैं हालात1प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद भी शिक्षा के हालात ऐसे हैं कि राजकीय स्कूलों में शिक्षकों की कमी के चलते विद्यार्थी निजी स्कूलों की ओर रुख करने लग गए है। जिले में चार स्कूल ऐसे हैं, जहां कोई भी बच्चा न होने के कारण विभाग को ये स्कूल बंद करने पड़े। जबकि कई स्कूलों को मर्ज करने के लिए प्रस्ताव भेजा गया है। जीपीएस खेड़ी गुलाम अली, जीपीएस डेरा झाबरुआ, जीपीएस खेड़ी साकरा, जीएमएस माजरी आदि ऐसे कई स्कूल हैं जहां पर विद्यार्थी तो हैं लेकिन उन्हें पढ़ाने के लिए कोई शिक्षक नहीं है। ये स्कूल केवल चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, क्लर्क या स्कूल हेडों के भरोसे चल रहे है। क्योंकि शिक्षकों का टोटा गांव व शहर दोनो जगहों पर बना हुआ है। साइंस, मैथ, हंिदूी, सामाजिक विज्ञान के अध्यापकों की कमी बनी हुई है। राजकीय स्कूल में विद्यार्थी चाहते हुए भी विज्ञान संकाय नहीं पढ़ पा रहे हैं। अतिथि अध्यापकों को हटाए जाने के बाद शिक्षकों की कमी और ज्यादा बढ़ गई है। स्कूल मुखियाओं के पद खाली होने से शिक्षकों पर पढ़ाने के साथ ही स्कूल संचालन की जिम्मेदारी भी है। यहीं स्थिति शिक्षा विभाग के अधिकारियों की है। क्योंकि शिक्षा विभाग में अधिकारियों के खाली पड़े पदों पर नियुक्ति न होने से एक ही अधिकारी को दो तीन जिम्मेदारियां दी गई है। जिससे अधिकारी अपना काम ठीक ढंग से कर पाने में असमर्थ है। इसी प्रकार स्कूलों में करोड़ों रुपये खर्च कर लगाए गए एजुसेट, कंप्यूटर, व जनरेटर धूल फांक रहे हैं। वर्षो से जनरेटरों के लिए स्कूलों के पास ईंधन नहीं आया। बिजली न आने से ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यार्थियों को गर्मी में ही पढ़ना पड़ता है। जब तक बिजली आती है स्कूल की छुट्टी हो जाती है। 1ये किए गए थे वादे1सत्ता में आने से पहले भाजपा ने शहर में राजकीय महिला कॉलेज खोलने का वायदा किया था। लेकिन सरकार को आए एक वर्ष बीत गया है। अब तक शहर में महिला कॉलेज बनाने की ओर कदम बढ़ाना तो दूर इसके लिए कभी सत्ता पक्ष की ओर से कोई बयान तक नहीं आया है। जनता को उम्मीद थी कि सरकार आने के बाद शहर में महिला कॉलेज खुलने से लड़कियों को अच्छी शिक्षा मिल सकेगी। लेकिन यह वायदा सिर्फ चुनावी लॉलीपॉप ही बनकर रह गया।1निजी स्कूलों की मनमानी1सरकार निजी स्कूल संचालकों की मनमानी को रोकने में भी विफल रही है। 134ए के तहत गरीब विद्यार्थियों को दाखिला देने में निजी स्कूल संचालकों ने शिक्षा विभाग के खूब पसीने छुड़वाए। स्कूल बसों में कैमरे लगाने के हाईकोर्ट के आदेश का भी निजी स्कूल संचालकों ने प्रदेशभर में विरोध जताया।प्रदीप ढुल, कैथल1इसे शिक्षा विभाग की लाचारी कहें या मनोहर सरकार की एक साल की अनदेखी कि प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के एक साल बाद भी शिक्षा के आधारभूत ढांचे में ज्यादा सुधार नहीं हो पाया है। सरकार की उपलब्धियां कम, जबकि कमियां ज्यादा नजर आती हैं। 1कम से कम कैथल जिले के हालात तो यही स्थिति बयां कर रहे है। क्योंकि जिले भर में साइंस, गणित, सामाजिक विज्ञान और हंिदूी के अध्यापकों की काफी कमी है, जबकि आधे स्कूल ऐसे हैं, जो बिना मुखिया के ही चल रहे है। कहीं पर विद्यार्थियों को एक ही कमरे में पशुओं की तरह ठूंसा जा रहा है तो कहीं विद्यार्थी जर्जर भवन में ही शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर है। एजुसेट और जनरेटर सिर्फ शोपीस बनकर रह गए है। मनमाने ढंग से फीस बढ़ाने वाले निजी स्कूल संचालकों पर भी सरकार शिकंजा कसने में नाकाम रही है।1ये हैं हालात1प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद भी शिक्षा के हालात ऐसे हैं कि राजकीय स्कूलों में शिक्षकों की कमी के चलते विद्यार्थी निजी स्कूलों की ओर रुख करने लग गए है। जिले में चार स्कूल ऐसे हैं, जहां कोई भी बच्चा न होने के कारण विभाग को ये स्कूल बंद करने पड़े। जबकि कई स्कूलों को मर्ज करने के लिए प्रस्ताव भेजा गया है। जीपीएस खेड़ी गुलाम अली, जीपीएस डेरा झाबरुआ, जीपीएस खेड़ी साकरा, जीएमएस माजरी आदि ऐसे कई स्कूल हैं जहां पर विद्यार्थी तो हैं लेकिन उन्हें पढ़ाने के लिए कोई शिक्षक नहीं है। ये स्कूल केवल चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, क्लर्क या स्कूल हेडों के भरोसे चल रहे है। क्योंकि शिक्षकों का टोटा गांव व शहर दोनो जगहों पर बना हुआ है। साइंस, मैथ, हंिदूी, सामाजिक विज्ञान के अध्यापकों की कमी बनी हुई है। राजकीय स्कूल में विद्यार्थी चाहते हुए भी विज्ञान संकाय नहीं पढ़ पा रहे हैं। अतिथि अध्यापकों को हटाए जाने के बाद शिक्षकों की कमी और ज्यादा बढ़ गई है। स्कूल मुखियाओं के पद खाली होने से शिक्षकों पर पढ़ाने के साथ ही स्कूल संचालन की जिम्मेदारी भी है। यहीं स्थिति शिक्षा विभाग के अधिकारियों की है। क्योंकि शिक्षा विभाग में अधिकारियों के खाली पड़े पदों पर नियुक्ति न होने से एक ही अधिकारी को दो तीन जिम्मेदारियां दी गई है। जिससे अधिकारी अपना काम ठीक ढंग से कर पाने में असमर्थ है। इसी प्रकार स्कूलों में करोड़ों रुपये खर्च कर लगाए गए एजुसेट, कंप्यूटर, व जनरेटर धूल फांक रहे हैं। वर्षो से जनरेटरों के लिए स्कूलों के पास ईंधन नहीं आया। बिजली न आने से ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यार्थियों को गर्मी में ही पढ़ना पड़ता है। जब तक बिजली आती है स्कूल की छुट्टी हो जाती है। 1ये किए गए थे वादे1सत्ता में आने से पहले भाजपा ने शहर में राजकीय महिला कॉलेज खोलने का वायदा किया था। लेकिन सरकार को आए एक वर्ष बीत गया है। अब तक शहर में महिला कॉलेज बनाने की ओर कदम बढ़ाना तो दूर इसके लिए कभी सत्ता पक्ष की ओर से कोई बयान तक नहीं आया है। जनता को उम्मीद थी कि सरकार आने के बाद शहर में महिला कॉलेज खुलने से लड़कियों को अच्छी शिक्षा मिल सकेगी। लेकिन यह वायदा सिर्फ चुनावी लॉलीपॉप ही बनकर रह गया।1निजी स्कूलों की मनमानी1सरकार निजी स्कूल संचालकों की मनमानी को रोकने में भी विफल रही है। 134ए के तहत गरीब विद्यार्थियों को दाखिला देने में निजी स्कूल संचालकों ने शिक्षा विभाग के खूब पसीने छुड़वाए। स्कूल बसों में कैमरे लगाने के हाईकोर्ट के आदेश का भी निजी स्कूल संचालकों ने प्रदेशभर में विरोध जताया।www.facebook.com/teacherharyana www.teacherharyana.blogspot.in (Recruitment , vacancy , job , news)

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