सरकारी स्कूलों में सौ से अधिक छात्राओं पर एक शौचालयराज्य सरकार स्वच्छता अभियान और लड़कियों की शिक्षा के प्रति कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा सरकारी स्कूलों में छात्राओं के लिए बने शौचालयों से लगाया जा सकता है। स्कूलों में सौ से
भी अधिक छात्राओं पर एक शौचालय है। ऐसे में खुद ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्कूलों में बनाए गए शौचालय की स्थिति कितनी दयनीय है। यह सनसनीखेज रिपोर्ट सूचना अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी में सामने आई है।
सूचना अधिकारी कानून के तहत हरियाणा सूचना अधिकार मंच के राज्य संयोजक सुभाष ने निदेशक स्कूल शिक्षा विभाग, हरियाणा राज्य भर पढ़ने वाली कुल लड़कियों की संख्या और उनके लिए बने शौचालयों की संख्या के बारे में चार बिन्दुओं पर जानकारी मांगी थी। स्कूल शिक्षा निदेशक, हरियाणा के राज्य जन सूचना अधिकारी ने सूचना आवेदन को सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को भेज कर सूचना उपलब्ध करवाने को कहा। जिला शिक्षा अधिकारियों ने खंड शिक्षा अधिकारियों से लेकर प्राइमरी स्कूल के मुख्यध्यापक तक यह आवेदन भेज दिया। इसमें प्रत्येक स्कूल को यह आदेश दिया गया कि जानकारी स्कूल से सीधे आवेदक को भेज दी जाए। आरटीआइ कार्यकर्ता सुभाष के अनुसार जिलावार शौचालयों के संबंध में प्राप्त जानकारी के अनुसार 100 से अधिक छात्राओं के लिए स्कूल में एक शौचालय है। कुछ जिलों में यह संख्या और भी अधिक है। हालांकि लड़कों के शौचालयों की स्थिति तो इससे भी अधिक खराब है। सबसे हैरानी की बात यह है कि राज्य सरकारी स्कूलों में शौचालय बनाने के लिए या तो मापदंड नहीं है या फिर स्कूल इंचार्ज अपनी मनमर्जी से शौचालय बनवाने का काम करते हैं। मरम्मत का भी यही हाल है। स्कूल में जिस शौचालय को पंचायत द्वारा निíमत किया जाता है उसकी लागत अलग है। जो शौचालय नाबार्ड, एस.एस.ए. व सांसद निधि से बनवाया जाता है उसकी लागत अलग है। जिन स्कूलों में शौचालय जन सहयोग एवं चंदे से बनवाया जाता है उसकी लागत अलग है।
पूर्व की सीएम सिटी के स्कूल में भी स्थिति दयनीय
पूर्व मुख्य मंत्री भूपेंद्र ¨सह हुड्डा के शहर के वरिष्ठ कन्या माध्यमिक विद्यालय,रोहतक में 2000 लड़कियों पर एक भी शौचालय ना होना लड़कियों की शिक्षा के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
फतेहाबाद जिले के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय नागपुर में 400 लड़कियां पढ़ती हैं। इन छात्राओं के लिए बने कुल चार शौचालयों में से दो खराब पड़े हैं। ऐसी स्थिति में अन्दाजा लगाया जा सकता है कि छात्राएं को किन-किन दिक्कतों का सामना करना पड़ता होगा। राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय फतेहाबाद में 1187 छात्राओं के लिए बने छह शौचालयों में से दो खराब पड़े हैं। यहां लगभग 300 छात्राओं पर एक शौचालय है। राजकीय कन्या प्राइमरी स्कूल रतिया में 266 छात्राओं के लिए केवल एक शौचालय है। भिवानी जिले में भी लड़कियों के शौचालयों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। रा. वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, समसपुर भिवानी में 208 छात्राओं के एक केवल एक ही शौचालय है।
यह मांगी थी जानकारी
- राज्य में लड़कियों के कुल कितने स्कूल हैं? इनमें कुल कितनी छात्राएं पढ़ती हैं?
- लड़कियों के लिए कुल कितने शौचालय हैं? जिलावार संख्या दी जाए?
- शौचालय कब बने? और इनकी मुरम्मत पर कितना खर्च हुआ?
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लड़कियों के लिए स्कूलों में शौचालयों की कमी साबित करती है कि हमारा लड़कियों और महिलाओं के प्रति नजरिया कैसा है? स्कूलों में लड़कियों के लिए और सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के लिए शौचालय की जरूरत हमारे नेताआों और अधिकारयों के जहन का हिस्सा नहीं है। यह बहुत ही गंभीर मामला है और आधी आबादी के अधिकारों का भी। शौचालय जैसी मूलभूत जरूरत को गंभीरता से लेना होगा। लड़कियों के लिए पढऩे के लिए मौके वैसे ही बहुत ही कम है। मूलभूत सुविधाओं की कमी उनके स्कूल छोड़ने जैसी घटनाओं को बढ़ावा देगी।
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