नई दिल्ली : सरकारी कर्मचारियों को एक बड़ी सौगात के तहत वेतन आयोग ने उनके वेतन एवं भत्तों में वृद्धि को लेकर केंद्र सरकार को रिपोर्ट गुरुवार को सौंप दी। केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के लिए बड़ा
तोहफा पेश करते हुए सातवें वेतन आयोग ने वेतन, भत्ते व पेंशन में 23.55 प्रतिशत की वृद्धि और सैनिकों की तर्ज पर असैन्य कर्मचारियों के लिए भी ‘समान रैंक, समान पेंशन’ की व्यवस्था लागू करने की शुक्रवार को सिफारिश की।
आयोग की सिफारिशें जस की तस लागू करने पर सरकारी खजाने पर 1.02 लाख करोड़ रुपये का सालाना बोझ आएगा, जिसमें 28,450 करोड़ रुपये से अधिक का बोझ रेलवे बजट और बाकी 73,650 करोड़ रुपये आम बजट पर जाएगा। न्यायमूर्ति एके माथुर की अध्यक्षता वाले आयोग की ओर से आज यहां वित्त मंत्री अरुणण् जेटली को सौंपी गई इन सिफारिशों के तहत केन्द्रीय नौकरियों में न्यूनतम मासिक वेतन 18,000 रुपये और अधिकतम 2.5 लाख रुपये प्रतिमाह हो जाएगा। ये सिफारिशें एक जनवरी, 2016 से लागू की जाएंगी और इनसे 47 लाख केन्द्रीय कर्मचारी और 52 लाख पेंशनभोगी लाभान्वित होंगे। इनमें सैन्य बलों के कर्मचारी भी शामिल हैं।
जेटली ने कहा कि सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों का फायदा स्वायत्तशासी निकायों, विश्वविद्यालयों और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को भी होगा। सिफारिशों में कहा गया है कि प्रतिशत के रूप में, वेतन, भत्तों एवं पेंशन में कुल मिलाकर सामान्य परिस्थितियों में 23.55 प्रतिशत की वृद्धि होगी। इसमें वेतन में 16 प्रतिशत, भत्तों में 63 प्रतिशत और पेंशन में वृद्धि 24 प्रतिशत होगी। रेलवे कर्मियों सहित केन्द्रीय कर्मचारियों पर सरकार का कुल वेतन व पेंशन खर्च 2016-17 में 4.33 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 5.35 लाख करोड़ रुपये पहुंचने का अनुमान है। इन सिफारिशों के लागू होने से वेतन, भत्ते व पेंशन पर सरकार का खर्च सकल घरेलू उत्पाद के 0.65 प्रतिशत के बराबर बढ़ेगा, जबकि छठे वेतन आयोग की सिफारिशों में यह वृद्धि जीडीपी के 0.7 से एक प्रतिशत थी।
आयोग ने ‘पे बैंड’ और ‘ग्रेड पे’ की प्रणाली खत्म करने की सिफारिश की है और वेतन में सालाना 3 प्रतिशत की वृद्धि की व्यवस्था को बरकरार रखा है। साथ ही इसने सभी कर्मचारियों के लिए 2.57 के फिटमेंट-फैक्टर लागू करने की सिफारिश की है। आयोग ने अगले साल एक जनवरी से पहले सेवानिवृत्त होने वाले सरकारी सेवाओं के कर्मचारियों के लिए ‘समान रैंक, समान पेंशन’ का नाम लिए बगैर इसी तरह का पेंशन का एक संशोधित फार्मूला पेश किया है। आयोग के चेयरमैन और एक अन्य सदस्य डाक्टर रतिन राय ने सभी केन्द्रीय सशस्त्र बलों में सेवानिवृत्ति की उम्र 58 साल से बढ़ाकर 60 साल करने की सिफारिश की है पर एक अन्य सदस्य विवेक रे इससे सहमत नहीं थे। उन्होंने इस संबंध में गृह मंत्रालय के दृष्टिकोण का समर्थन किया है। इस फार्मूले से पहले और वर्तमान में समान रैंक और समान अवधि की सेवा के बाद सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों के पेंशन में समानता आएगी।
एक महत्वपूर्ण सिफारिश में आयोग ने ग्रैच्युटी निर्धारण में अधिकतम वेतन की सीमा 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 20 लाख रुपये कर दी है और जब कभी महंगाई भत्ता 50 प्रतिशत तक बढ़ेगा, तो वेतन की अधिकतम सीमा में 25 प्रतिशत की वृद्धि की जाएगी। नए वेतन ढांचे में सातवे वेतन आयोग ने छठे वेतन आयोग द्वारा शुरू की गई ‘पे ग्रेड’ व्यवस्था खत्म कर इसे वेतन के मैट्रिक्स :ढांचे: में शामिल कर दिया है और कर्मचारी का ओहदा अब ग्रेड पे की जगह नए ढांचे के वेतन से तय होगा। आयोग ने कर्मचारियों व पेंशनभोगियों के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना की सिफारिश की है। इस बीच, सीजीएचएस का फायदा नहीं पा रहे पेंशनभोगियों के लाभ के लिए सीजीएचएस को उन अस्पतालों को अपने पैनल में शामिल करना चाहिए जो इन पेंशनभोगियों की नकदीरहित चिकित्सा जरूरतें पूरी करने के लिए सीएस एमए ईसीएचएस के तहत पैनल में हैं। आयोग ने सिफारिश की है कि डाक विभाग के सभी पेंशनभोगियों को सीजीएचएस के दायरे में लाया जाए तथा सभी डाक डिस्पेंसरीज को सीजीएचएस में समाहित कर दिया जाए।
केन्द्रीय कर्मियों की सामूहिक बीमा योजना के तहत अंशदान की दर एवं बीमा का कवरेज उपयुक्त तरीके से बढ़ाया गया है। इसके तहत उच्चतम वेतन स्तर पर मासिक कटौती 120 रुपये प्रति माह से बढ़ाकर 5,000 रुपये और बीमा कवरेज 1.2 लाख रुपये से बढ़ाकर 50 लाख रुपये की गई है। वेतन ढांचे में सबसे निचले स्तर पर यह कटौती 30 रुपये से बढ़ाकर 1500 रुपये और बीमा कवरेज 30,000 रुपये से बढ़ाकर 15 लाख रुपये की गई है।
आयोग की सिफारिशों के अनुसार अब कर्मचारियों को बिना ब्याज वाले अग्रिम की कोई सुविधा नहीं मिलेगी तथा मकान खरीदने के लिए ब्याज वाले अग्रिम की सीमा 7.5 लाख रपये से बढ़ाकर 25 लाख रुपये कर दी गई है। संशोधित सुनिश्चित करियर प्रगति (एमएसीपी) के तहत आयोग ने प्रस्ताव किया है कि जो कर्मचारी एमएसीपी या प्रथम 20 साल की सेवा के बाद नियमित प्रोन्नति के मानकों को पूरा नहीं करेंगे, उन्हें वार्षिक वेतन वृद्धि नहीं मिलेगी। आयोग ने कार्य प्रदर्शन पर आधारित वेतन (पीआरपी) की भी सिफारिश की है जो सभी दर्ज के कर्मचारियों के लिए होगी। इसके लिए, कुछ दिशानिर्देश लागू होंगे। आयोग ने मौजूदा बोनस योजना को पीआरपी में समाहित करने को कहा है।
आयोग ने विभिन्न परिस्थितियों में कर्मचारी की मृत्यु पर परिवार के निकटतम व्यक्ति के लिए एकमुश्त मुआवजा की दरों में भी संशोधन का सुझाव दिया है जो रक्षा बलों के कर्मचारियों और असैन्य कर्मचारियों व केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों कर्मचारियों के लिए समान रूप से लागू होगी। नई पेंशन योजना से जुड़ी शिकायतों को देखते हुए आयोग ने योजना की कार्यप्रणाली में सुधार करने और शिकायत निवारण व्यवस्था करने की सिफारिश की है। आयोग ने नियामक निकायों के प्रमुखों व सदस्यों के लिए क्रमश: 4.50 लाख रुपये और 4 लाख रुपये का मासिक वेतन पैकेज दिए जाने की सिफारिश की है।
सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों के मामले में आयोग ने कहा कि उनकी पेंशन को, उनके समेकित वेतन से नहीं काटा जाना चाहिए। समेकित वेतन पैकेज 25 प्रतिशत और महंगाई भत्ता 50 प्रतिशत तक बढ़ाया जाना चाहिए।
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें 1 जनवरी, 2016 से लागू होंगी। चेयरमैन के अलावा आयोग के अन्य सदस्यों में 1978 बैच के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी विवेक राय, अर्थशास्त्री रथिन राय शामिल हैं। मीना अग्रवाल आयोग की सचिव हैं। केंद्र सरकार प्रत्येक दस साल बाद अपने कर्मचारियों के वेतनमान में संशोधन के लिए वेतन आयोग का गठन करती हैं। आमतौर पर राज्यों द्वारा भी कुछ संशोधनों के साथ इन्हें अपनाया जाता है। छठा वेतन आयोग 1 जनवरी, 2006 से लागू हुआ था। (एजेंसी इनपुट के साथ)
Seventh Pay Commission has handed a financial bonanza to Central government employees and sent a strong message to dismantle the present hierarchy that is heavily loaded on the side of seniority over performance.
The report says "Civil servants today need to be focused on outcomes, not processes, and have to be more accountable for delivery. They have to be agents of change and to this end need to be more agile, more technically savvy and to be able to ensure the economic and public service reforms that are essential."
A peon's starting salary has gone up by 2.54 times to Rs 18,000 per month and topmost bureaucrat, the cabinet secretary would now draw Rs 2.5 lakh per month plus other perks costing a total of Rs 1,02,000 crore to the exchequer. But there are reasons for the most coveted of the All India Services, officers from Indian Administrative Services (IAS) to read the report carefully because it recommends a tectonic shift in the way the higher bureaucracy functioned.
Dismantling of superiority in the officialdom has form long been demand of officers drawn from non-IAS officers. The pay panel though does not say that in as many words but talks about need for a paradigm shift.
The report says "Civil servants today need to be focused on outcomes, not processes, and have to be more accountable for delivery. They have to be agents of change and to this end need to be more agile, more technically savvy and to be able to ensure the economic and public service reforms that are essential."
The chairman of Seventh Pay Commission justice Ashok Mathur and member Rathin Roy suggest that in the present scenario, it is keenly felt that there needs to be a paradigm shift and the methodology that has been adopted in the past, namely of a seniority driven approach within the various services, has to be revisited. With the role of government in development and in making the country a market driven, investor friendly economy, key functionaries who should be evolving policy and driving the development process should be ones who have the requisite domain knowledge and sufficient experience in the departments and areas that they are required to head.
"In this context, that the service related claims for any top position are not relevant anymore, and what is important is that the right person is selected for every job. The analysis and the recommendations in the paragraphs that follow reflect this approach," they say.
The approach suggested by this committee was that the skills and background of officers be carefully matched to the requirements of particular positions, while not confining individual officers to narrowly defined tasks or sectors. It was recommended that eleven domains (other than IAS) be identified and as part of the empanelment process at joint secretary and additional secretary levels each officer's domain expertise be specifically identified.
Given the complexities of modern day governance, the existing system of generalists (read IAS) manning senior policy making positions and shifting from one field to another in short spans of time, is considered not just outmoded but inimical to effective policy making.
Justice Mathur writes in his concluding note "that the main cause for resentment among services is that over a period of time IAS has arrogated to itself all power of governance and relegated all other services to secondary position. All posts covering majority of domains are today manned by IAS, be it a technical or administrative which is the main cause of grievance. It is time that government take a call that subject domain should be the criteria to man the posts and not a generalist. If fair and equitable treatment is not given to all Services, then the gap between IAS and other services will widen and it may lead to a chaotic situation and it will not be good for the governance and country."
In the present bureaucratic set up of a total of 91 secretaries, IAS officers occupy 73, scientists 10, Indian Police Service 1, Indian Legal Service 2, Indian Information Service 1. At Additional Secretary and joint secretary level posts, the IAS virtually monopolise. The Pay Commission recommends dismantling of existing system to be more inclusive and more transparent in selection process.
A member, Vivek Rae a former IAS officer, however, disagrees with chairman and economist Member. Rae argues for continuance of IAS officers unflinching superiority in the babudom.
Rae is of the view that "the observations made by the panel's Chairman call for a paradigm shift from a cadre based Civil Service structure to a post based structure including induction of lateral entrants from outside government. While this issue can be debated (and has been debated), it falls well beyond the mandate of this Commission."
He extensively quotes Sardar Vallabhbhai Patel to underline his argument to have IAS's generalist superiority and then adds by himself: "It is only the IAS which has a much wider remit, cutting across various domains which figure in the Central List, State List and Concurrent List under Schedule VII of the Constitution. The IAS comprise a general management cadre, constituted to provide leadership spanning the entire spectrum of functional responsibilities and administrative boundaries of government at Central, State and Local level. It is this broad spectrum job profile which equips IAS officers to occupy senior positions under the Central Staffing Scheme. Their pivotal role in servicing Parliamentary democracy, both at the Central and State level, and keeping the wheels of the Indian Federal structure well lubricated, is also crucial.”
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The 23.5% average hike in the central government employees’ salaries could press on the government’s wage bill by an estimated Rs 1.02 lakh crore in 2016-17, pushing up the government’s fiscal deficit by 0.65% of gross domestic product (GDP).
Out of the total financial impact, Rs 73,650 crore will be borne by the General Budget and Rs 28,450 crore by the railway budget.
In percentage terms, the overall increase in pay and allowances and pensions over the ‘Business As Usual’ scenario will be 23.55%. Within this, the increase in pay will be 16%. Allowances will go up by 63%, and the pension bill will increase by 24%, the pay commission report said.
The total impact of the Commission’s recommendations are expected to entail an increase of 0.65% points to GDP compared to 0.77% in case of the sixth pay commission, the finance ministry said.
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