3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव में जन्मी महान विभूति सावित्रीबाई फुले, मात्र 18 साल की छोटी उम्र में ही, भारत में स्त्री शिक्षा की ऊसर-बंजर जमीन पर स्त्री शिक्षा का नन्हा पौधा रोप उसे एक विशाल वटवृक्ष में तब्दील करने वाली, महान विदुषी सावित्रीबाई फुले के अतुलनीय योगदान की कौन सराहना नहीं करेगा। भारत में सदियों से शिक्षा से महरुम कर दिए गए शोषित वंचित, दलित-आदिवासी, पिछड़े और स्त्री समाज को सावित्रीबाई फुले ने अपने निस्वार्थ प्रेम, सामाजिक प्रतिबद्धता, सरलता तथा अपने अथक सार्थक प्रयासों से शिक्षा पाने का अधिकार दिलवाया।
शिक्षा नेत्री सावित्रीबाई फुले ना केवल भारत की पहली अध्यापिका और पहली प्रधानाचार्या थी अपितु वे सम्पूर्ण समाज के लिए एक आदर्श प्रेरणा स्त्रोत, प्रख्यात समाज सुधारक, जागरुक और प्रतिबद्ध कवयित्री, विचारशील चितंक, भारत के स्त्री आंदोलन की अगुआ भी थी।
सावित्रीबाई फुले ने हजारों-हजार साल से शिक्षा से वंचित कर दिए शुद्र आतिशुद्र समाज और स्त्रियों के लिए बंद कर दिए गए दरवाजों को एक ही धक्के में लात मारकर खोल दिया। इन बंद दरवाजों के खुलने की आवाज इतनी ऊंची और कान फोडू थी कि उसकी आवाज से पुणे के सनातनियों के तो जैसे कान के पर्दे फट गए हो। वे अचंभित होकर सामंती नींद से जाग उठे। वे सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले पर तरह तरह के घातक और प्राणलेवा प्रहार करने लगे। सावित्री और ज्योतिबा द्वारा दी जा रही शिक्षा की ज्योति बुझ जायें इसके लिए उन्होने ज्योतिबा के पिता गोविंदराव को भड़काकर उन्हें घर से निकलवा दिया। घर से निकाले जाने के बाद भी सावित्री और ज्योतिबा ने अपना कार्य जारी रखा। जब सावित्रीबाई फुले घर से बाहर लड़कियों को पढ़ाने निकलती थीं तो उन पर इन सनातनियों द्वारा गोबर-पत्थर फेंके जाते थे। उन्हे रास्ते में रोक कर उच्च जाति के गुण्डो द्वारा भद्दी-भद्दी गाली दी जाती थी तथा उन्हें जान से मारने की लगातार धमकियां दी जातीं थीं। लड़िकयों के लिये चलाए जा रहे स्कूल बंद कराने के अनेक प्रयास किये जाते थे। सावित्री बाई डरकर घर बैठ जायेगी इसलिए उन्हे सनातनी अनेक विधियों से तंग करवाते। ऐसे ही एक बदमाश रोज सावित्रीबाई फुले का पीछा कर उन्हे तंग करने लगा। एक दिन तो उसने हद ही कर दी। वह अचानक उनका रास्ता रोककर खडा हो गया और फिर उन पर शारीरिक हमला कर दिया तब सावित्रीबाई फुले ने बहादुरी से उस बदमाश का मुकाबला करते हुए निडरता से उसे दो-तीन थप्पड़ कसकर जड़ दिए। सावित्रीबाई फुले से थप्पड़ खाकर वह बदमाश इतना शर्मशार हो गया कि फिर कभी उनके रास्ते में नजर नही आया।
सभी वर्ग ख़ास कर के महिलाये माता सावित्री बाई फूले के योगदान से प्रेरित होकर अन्धविश्वास और पाखंड को त्याग कर शिक्षा का प्रसार कर महिलाओ को शशक्त बनाये ।
माता को सम्मान देते हुए उनकी इस उप्लब्धि को याद करे और सम्मान से उनका 3 जनवरी को जन्मदिन मनाये।
माता को सम्मान देते हुए उनकी इस उप्लब्धि को याद करे और सम्मान से उनका 3 जनवरी को जन्मदिन मनाये।
U Tube से "भारत एक खोज एपिसोड 45" लिखकर लिंक खोलकर अवश्य देखें जिसमे महात्मा फुले और माता सावत्री बाई फूले के कार्यों को दिखाया हैं ।
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