रायपुर.मंत्रालय में विभिन्न वर्गो के लिए पदोन्नतियों के लिए मचे घमासान के बीच महाधिवक्ता दफ्तर ने साफ कर दिया है कि आरक्षण का लाभ केवल एक बार भर्ती के समय दिया जा सकता है। पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए शासन बाध्य नहीं है।
इस बारे में सामान्य प्रशासन विभाग ने 12 मई को महाधिवक्ता को पत्र लिखकर मार्गदर्शन मांगा था। जीएडी को महाधिवक्ता कार्यालय से 9 जून को जवाब मिल गया। जीएडी की बैठक में भी इस पर चर्चा की गई।
सूत्रों के अनुसार जीएडी ने सुझाव दिया है कि पदोन्नतियों के पूर्व में दी गई पदोन्नतियों व वर्तमान में प्रस्तावित पदोन्नतियों की समीक्षा करने एक कमेटी गठित कर ली जाए। बताया गया कि महाधिवक्ता दफ्तर ने परामर्श दिया है कि आरक्षण का लाभ बार-बार किसी कर्मचारी-अधिकारी को नहीं दिया जा सकता।
पदोन्नति के समय आरक्षित वर्ग के क्रीमीलेयर वाले अभ्यर्थियों को अलग करना अनिवार्य है। इस बारे में हाईकोर्ट के विभिन्न निर्णयों का उल्लेख भी परामर्श में किया गया है। इरीगेशन विभाग के आरसी द्विवेदी विरुद्ध शासन के प्रकरण का उल्लेख भी किया गया है। जीएडी से कहा गया है कि रोस्टर का गलत आशय लगाकर पदोन्नति देने से बचा जाए।
जीएडी के सूत्रों के अनुसार पिछले चार सालों में मंत्रालय में उप सचिव के पदों पर 100 प्रतिशत से अधिक पदों पर आरक्षित वर्ग के अवर सचिवों को पदोन्नति दे दी गईं। नियम है कि 39 प्रतिशत पदों पर आरक्षण का लाभ दिया जाना था।
इसी तरह अन्य संवर्गो में 70 प्रतिशत पदों पर नियम विरुद्ध पदोन्नति देने की शिकायत शासन से वंचितों ने की हैं।
इन शिकायतों के निराकरण के लिए मुख्य सचिव पी. जॉय उम्मेन ने विधि विभाग से अभिमत लेने के निर्देश दिए थे। विधि विभाग ने 2008 में जारी नियमों का पालन पदोन्नतियों में करने अभिमत दिया था। इन सबके बावजूद विधि वेत्ताओं का मानना है कि उनका काम संबंधित पक्षों को आइना दिखना है। उनका परामर्श मानने कोई बाध्य नहीं है।
खास बातें
> जिस केटेगरी के पद रिक्त हैं उसी पर दी जा सकती है पदोन्नति
> गलत पदोन्नतियों को रिवर्ट करना पड़ सकता है
> नियम विरूद्ध पदोन्नति हुई तो शासन के खिलाफ कई याचिकाएं दायर होने की आशंका
> हक मारे से मंत्रालय में अधिकारियों-कर्मचारियों में खाई बढ़ रही
> वर्ग विशेष को बढ़ावा देने का माहौल बन रहा
इस बारे में सामान्य प्रशासन विभाग ने 12 मई को महाधिवक्ता को पत्र लिखकर मार्गदर्शन मांगा था। जीएडी को महाधिवक्ता कार्यालय से 9 जून को जवाब मिल गया। जीएडी की बैठक में भी इस पर चर्चा की गई।
सूत्रों के अनुसार जीएडी ने सुझाव दिया है कि पदोन्नतियों के पूर्व में दी गई पदोन्नतियों व वर्तमान में प्रस्तावित पदोन्नतियों की समीक्षा करने एक कमेटी गठित कर ली जाए। बताया गया कि महाधिवक्ता दफ्तर ने परामर्श दिया है कि आरक्षण का लाभ बार-बार किसी कर्मचारी-अधिकारी को नहीं दिया जा सकता।
पदोन्नति के समय आरक्षित वर्ग के क्रीमीलेयर वाले अभ्यर्थियों को अलग करना अनिवार्य है। इस बारे में हाईकोर्ट के विभिन्न निर्णयों का उल्लेख भी परामर्श में किया गया है। इरीगेशन विभाग के आरसी द्विवेदी विरुद्ध शासन के प्रकरण का उल्लेख भी किया गया है। जीएडी से कहा गया है कि रोस्टर का गलत आशय लगाकर पदोन्नति देने से बचा जाए।
जीएडी के सूत्रों के अनुसार पिछले चार सालों में मंत्रालय में उप सचिव के पदों पर 100 प्रतिशत से अधिक पदों पर आरक्षित वर्ग के अवर सचिवों को पदोन्नति दे दी गईं। नियम है कि 39 प्रतिशत पदों पर आरक्षण का लाभ दिया जाना था।
इसी तरह अन्य संवर्गो में 70 प्रतिशत पदों पर नियम विरुद्ध पदोन्नति देने की शिकायत शासन से वंचितों ने की हैं।
इन शिकायतों के निराकरण के लिए मुख्य सचिव पी. जॉय उम्मेन ने विधि विभाग से अभिमत लेने के निर्देश दिए थे। विधि विभाग ने 2008 में जारी नियमों का पालन पदोन्नतियों में करने अभिमत दिया था। इन सबके बावजूद विधि वेत्ताओं का मानना है कि उनका काम संबंधित पक्षों को आइना दिखना है। उनका परामर्श मानने कोई बाध्य नहीं है।
खास बातें
> जिस केटेगरी के पद रिक्त हैं उसी पर दी जा सकती है पदोन्नति
> गलत पदोन्नतियों को रिवर्ट करना पड़ सकता है
> नियम विरूद्ध पदोन्नति हुई तो शासन के खिलाफ कई याचिकाएं दायर होने की आशंका
> हक मारे से मंत्रालय में अधिकारियों-कर्मचारियों में खाई बढ़ रही
> वर्ग विशेष को बढ़ावा देने का माहौल बन रहा
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