योजना आयोग ने तो अपने शपथ पत्र में फिर भी शहरी क्षेत्र में 32 रुपए खर्च करने वाले को ही गरीब की श्रेणी से बाहर माना है। अपने हरियाणा की बात करें तो यहां तो स्थिति और भी हास्यास्पद है। यहां तो जो शहर में रोजाना महज 15 रुपए कमा रहा है वो भी गरीब नहीं। क्योंकि यहां गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) की श्रेणी में आने के लिए व्यक्ति की आय 443.21 रुपए महीना से कम होनी चाहिए। इस हिसाब से रोज की कमाई 14.77 रुपए से बैठती है।
यह उस प्रदेश की स्थिति है जहां महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत देश में सबसे ज्यादा 179 रुपए प्रति दिन की दिहाड़ी दी जाती है। साल में 100 दिन रोजगार की गारंटी है यानि इतने दिन किसी को रोजगार मिल गया तो करीब 18 हजार रुपए की कमाई तो होनी ही है।
इसे साल के 365 दिनों से भाग करें तब भी प्रतिदिन का 49.31 रुपए बनता है। जिला प्रशासन के रिकार्ड के मुताबिक अम्बाला में 37,876 लोगों को मनरेगा के तहत रोजगार दिया गया है जिनमें 9795 लोग बीपीएल श्रेणी के हैं। हरियाणा सरकार ने न्यूनतम दिहाड़ी 178 रुपए तय है।
अप्रशिक्षित (अनस्किल्ड) श्रमिकों का न्यूनतम वेतन 4,643 तय किया है। सेमी स्किल्ड श्रमिक का न्यूनतम वेतन ए ग्रेड के लिए 4,573, बी ग्रेड के लिए 4,903, स्किल्ड लेबर के ए ग्रेड के लिए 5,033 व बी ग्रेड के लिए 5,163 और हाई स्किल्ड लेबर का न्यूनतम वेतन 5,290 रुपए तय है।
फिर भी साढ़े 12 लाख बीपीएल
सरकार की शर्ते व पैमाना तो हैरान करने वाला है ही, उससे भी बड़ा ताज्जुब यह है कि इस पैमाने के बाद भी हरियाणा में १२ लाख ५क् हजार बीपीएल परिवार हैं। अम्बाला जिले में 76 हजार से ज्यादा बीपीएल परिवार हैं, इसमें से शहरी क्षेत्र में 32,204 परिवार और ग्रामीण क्षेत्र में 44,185 बीपीएल परिवार हैं।
शहरी क्षेत्र में ईमानदारी से अगर 443.21 रुपए प्रति माह प्रति व्यक्ति आय का पैमाना लागू करें तो बीपीएल परिवारों का आंकड़ा सिमट कर अंगुलियों पर गिनने लायक रह जाएगा। एक चार सदस्यों वाले औसत परिवार की बात करें तो इस पैमाने के हिसाब से उसकी मासिक आय 1,772.84 रुपए से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। यदि इन चार सदस्यों में से एक भी कमाने लायक है और महीने में 12 से 15 दिन दिहाड़ी भी करे तो 180 रुपए के हिसाब से 2,160 रुपए कमा लेगा।
सरकार की मर्जी
योजना आयोग सरकार की मर्जी से ही चलता है। पैमाना बदलकर असल में सरकार गरीबी नहीं बल्कि कागजों में गरीबों की संख्या कम दिखाना चाहती है। ताकि सरकार इसे उपलब्धि के तौर पर प्रचारित कर सकें। इन आंकड़ों के बूते राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश है। 26 रुपए या 32 रुपए में बाकी खर्च तो छोड़िए दो वक्त का ठीक खाना भी नहीं खा सकते।
प्रधानमंत्री खुद प्रख्यात अर्थशास्त्री हैं, दुर्भाग्य है कि वो भी योजना आयोग की रिपोर्ट पर वो हस्ताक्षर कर रहे हैं। सरकार यदि दावा करती है कि ग्रामीण क्षेत्र में 26 रुपए और शहर में 32 रुपए प्रति दिन खर्च पर गुजारा चल सकता है तो क्योंकि नहीं सरकार इस खर्च में ग्रामीण व शहरी क्षेत्र के लोगों का गुजारा करवाने का ठेका ले लेती। - विनोद गुप्ता, प्रधान, हरियाणा चैप्टर ऑफ स्पिक।
राष्ट्रपति को भी लिखा था पत्र
विकास विहार वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं अम्बाला स्माल स्केल इंडस्ट्रीज वेलफेयर एसोसिएशन के सह सचिव विप्लव सिंगला इस मसले में राष्ट्रपति को पत्र भी लिख चुके हैं। सिंगला कहते हैं कि उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत शहरी क्षेत्र में बीपीएल की शर्तो बारे सूचना मांगी थी। यह देखकर हैरानी हुई कि 443.21 रुपए से कम आय वाला ही बीपीएल गिना जाता है लेकिन अम्बाला में शहरी क्षेत्र में 32 हजार से ज्यादा परिवार बीपीएल हैं। अब दो स्थितियां ही बनती हैं कि या तो शहर में गरीबी बहुत है या फिर बीपीएल लिस्ट बनाने में हेराफेरी हुई है।
यह उस प्रदेश की स्थिति है जहां महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत देश में सबसे ज्यादा 179 रुपए प्रति दिन की दिहाड़ी दी जाती है। साल में 100 दिन रोजगार की गारंटी है यानि इतने दिन किसी को रोजगार मिल गया तो करीब 18 हजार रुपए की कमाई तो होनी ही है।
इसे साल के 365 दिनों से भाग करें तब भी प्रतिदिन का 49.31 रुपए बनता है। जिला प्रशासन के रिकार्ड के मुताबिक अम्बाला में 37,876 लोगों को मनरेगा के तहत रोजगार दिया गया है जिनमें 9795 लोग बीपीएल श्रेणी के हैं। हरियाणा सरकार ने न्यूनतम दिहाड़ी 178 रुपए तय है।
अप्रशिक्षित (अनस्किल्ड) श्रमिकों का न्यूनतम वेतन 4,643 तय किया है। सेमी स्किल्ड श्रमिक का न्यूनतम वेतन ए ग्रेड के लिए 4,573, बी ग्रेड के लिए 4,903, स्किल्ड लेबर के ए ग्रेड के लिए 5,033 व बी ग्रेड के लिए 5,163 और हाई स्किल्ड लेबर का न्यूनतम वेतन 5,290 रुपए तय है।
फिर भी साढ़े 12 लाख बीपीएल
सरकार की शर्ते व पैमाना तो हैरान करने वाला है ही, उससे भी बड़ा ताज्जुब यह है कि इस पैमाने के बाद भी हरियाणा में १२ लाख ५क् हजार बीपीएल परिवार हैं। अम्बाला जिले में 76 हजार से ज्यादा बीपीएल परिवार हैं, इसमें से शहरी क्षेत्र में 32,204 परिवार और ग्रामीण क्षेत्र में 44,185 बीपीएल परिवार हैं।
शहरी क्षेत्र में ईमानदारी से अगर 443.21 रुपए प्रति माह प्रति व्यक्ति आय का पैमाना लागू करें तो बीपीएल परिवारों का आंकड़ा सिमट कर अंगुलियों पर गिनने लायक रह जाएगा। एक चार सदस्यों वाले औसत परिवार की बात करें तो इस पैमाने के हिसाब से उसकी मासिक आय 1,772.84 रुपए से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। यदि इन चार सदस्यों में से एक भी कमाने लायक है और महीने में 12 से 15 दिन दिहाड़ी भी करे तो 180 रुपए के हिसाब से 2,160 रुपए कमा लेगा।
सरकार की मर्जी
योजना आयोग सरकार की मर्जी से ही चलता है। पैमाना बदलकर असल में सरकार गरीबी नहीं बल्कि कागजों में गरीबों की संख्या कम दिखाना चाहती है। ताकि सरकार इसे उपलब्धि के तौर पर प्रचारित कर सकें। इन आंकड़ों के बूते राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश है। 26 रुपए या 32 रुपए में बाकी खर्च तो छोड़िए दो वक्त का ठीक खाना भी नहीं खा सकते।
प्रधानमंत्री खुद प्रख्यात अर्थशास्त्री हैं, दुर्भाग्य है कि वो भी योजना आयोग की रिपोर्ट पर वो हस्ताक्षर कर रहे हैं। सरकार यदि दावा करती है कि ग्रामीण क्षेत्र में 26 रुपए और शहर में 32 रुपए प्रति दिन खर्च पर गुजारा चल सकता है तो क्योंकि नहीं सरकार इस खर्च में ग्रामीण व शहरी क्षेत्र के लोगों का गुजारा करवाने का ठेका ले लेती। - विनोद गुप्ता, प्रधान, हरियाणा चैप्टर ऑफ स्पिक।
राष्ट्रपति को भी लिखा था पत्र
विकास विहार वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं अम्बाला स्माल स्केल इंडस्ट्रीज वेलफेयर एसोसिएशन के सह सचिव विप्लव सिंगला इस मसले में राष्ट्रपति को पत्र भी लिख चुके हैं। सिंगला कहते हैं कि उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत शहरी क्षेत्र में बीपीएल की शर्तो बारे सूचना मांगी थी। यह देखकर हैरानी हुई कि 443.21 रुपए से कम आय वाला ही बीपीएल गिना जाता है लेकिन अम्बाला में शहरी क्षेत्र में 32 हजार से ज्यादा परिवार बीपीएल हैं। अब दो स्थितियां ही बनती हैं कि या तो शहर में गरीबी बहुत है या फिर बीपीएल लिस्ट बनाने में हेराफेरी हुई है।
No comments:
Post a Comment
thanks for your valuable comment