रांची। क्वालिफाइंग (प्लस टू) और कंपीटिटिव एंट्रेंस एग्जामिनेशन में न्यूनतम 40-40 फीसदी अंक से कम नंबर लाने वाले एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों का अब राज्य के मेडिकल कॉलेजों में नामांकन नहीं मिलेगा। हाईकोर्ट ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) के प्रावधानों का हवाला देते हुए यह निर्देश दिया है।
इस फैसले से मेडिकल कॉलेजों में पहले से पढ़ रहे आरक्षित वर्ग के 100 मेडिकल छात्रों का भविष्य प्रभावित होगा। इनका नामांकन 31 जुलाई 2006 में सरकार द्वारा जारी एक आदेश के तहत 40 फीसदी से कम अंक लाने के बावजूद हुआ था। किरकिरी होने पर सरकार ने आदेश पलटते हुए नौ सितंबर 2011 को एमसीआई के प्रावधानों के तहत नामांकन लेने का आदेश जारी किया। प्रज्ञा मानिनी आकाश भेंगरा ने सरकार के इस आदेश को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसे मंगलवार को कोर्ट ने खारिज कर दिया।
जस्टिस आरआर प्रसाद की एकल पीठ ने अपने आदेश में 40 प्रतिशत से कम अंक लाने वाले अभ्यर्थियों के नामांकन को गलत ठहराया है। उन्होंने कहा कि अगर किसी अभ्यर्थी के क्वालिफाइंग अंक 80 प्रतिशत हो और उसे प्रवेश परीक्षा में शून्य अंक मिले तो ऐसे छात्र का भी नामांकन लेना पड़ेगा, जो प्रावधानों के अनुरूप नहीं है।
2005 में बदली परिभाषा
राज्य के मेडिकल कॉलेजों में आरक्षित वर्ग के छात्रों के नामांकन के लिए कट ऑफ मार्क्स की परिभाषा 2005 बैच से बदल दी गई थी। सरकार के इस निर्णय के बाद 2005 के बैच में 25 प्रतिशत अंक लाने वाले छात्र-छात्राओं का भी एडमिशन लिया गया। अगले वर्ष 31 जुलाई 2006 को सरकार ने एमसीआई के नियम के विपरीत कट ऑफ मार्क्स के संबंध में नया आदेश जारी किया। इसमें क्वालिफाइंग और कंपीटिटिव एंट्रेंस एग्जामिनेशन को मिलाकर न्यूनतम 40 प्रतिशत अंक लाने वाले अभ्यर्थियों का एडमिशन देने की बात कही गई। इसके बाद अगले चार सालों तक इसी आधार पर नामांकन लिया जाता रहा। 2010 में एमसीआई ने इस मामले का खुलासा किया। 32 छात्रों का नामांकन रद्द करने का आदेश सरकार को दिया।
याचिकाकर्ताओं का तर्क
याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि राज्य सरकार ने 31 जुलाई 2006 के आदेश में संशोधन करते हुए नौ सितंबर 2011 को नया निर्देश जारी किया है। इसी वजह से उन्हें मेडिकल में दाखिला नहीं हो पा रहा है, जबकि कई छात्रों को इसका लाभ मिल चुका है।
सरकार ने कहा : औपबंधिक नामांकन हुआ
सरकार और रिम्स प्रबंधन ने कोर्ट को बताया कि एमसीआई के प्रावधानों के तहत मेडिकल कॉलेज में नामांकन के लिए आरक्षित वर्ग के छात्रों को क्वालिफाइंग और कंपीटिटिव एंट्रेंस एग्जामिनेशन में न्यूनतम 40-40 फीसदी अंक लाने होंगे। तरुण बाखला बनाम झारखंड सरकार के मामले में हाईकोर्ट के आदेश पर पिछले और इस वर्ष कई छात्रों ने अपने रिस्क पर औपबंधिक नामांकन लिया है। इनका नामांकन कोर्ट के अंतिम आदेश से प्रभावित होगा।
आगे क्या
मामले में तरण बाखला की ओर से दायर याचिका हाईकोर्ट में विचाराधीन है। इस पर 19 अक्टूबर को सुनवाई होगी।
इस फैसले से मेडिकल कॉलेजों में पहले से पढ़ रहे आरक्षित वर्ग के 100 मेडिकल छात्रों का भविष्य प्रभावित होगा। इनका नामांकन 31 जुलाई 2006 में सरकार द्वारा जारी एक आदेश के तहत 40 फीसदी से कम अंक लाने के बावजूद हुआ था। किरकिरी होने पर सरकार ने आदेश पलटते हुए नौ सितंबर 2011 को एमसीआई के प्रावधानों के तहत नामांकन लेने का आदेश जारी किया। प्रज्ञा मानिनी आकाश भेंगरा ने सरकार के इस आदेश को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसे मंगलवार को कोर्ट ने खारिज कर दिया।
जस्टिस आरआर प्रसाद की एकल पीठ ने अपने आदेश में 40 प्रतिशत से कम अंक लाने वाले अभ्यर्थियों के नामांकन को गलत ठहराया है। उन्होंने कहा कि अगर किसी अभ्यर्थी के क्वालिफाइंग अंक 80 प्रतिशत हो और उसे प्रवेश परीक्षा में शून्य अंक मिले तो ऐसे छात्र का भी नामांकन लेना पड़ेगा, जो प्रावधानों के अनुरूप नहीं है।
2005 में बदली परिभाषा
राज्य के मेडिकल कॉलेजों में आरक्षित वर्ग के छात्रों के नामांकन के लिए कट ऑफ मार्क्स की परिभाषा 2005 बैच से बदल दी गई थी। सरकार के इस निर्णय के बाद 2005 के बैच में 25 प्रतिशत अंक लाने वाले छात्र-छात्राओं का भी एडमिशन लिया गया। अगले वर्ष 31 जुलाई 2006 को सरकार ने एमसीआई के नियम के विपरीत कट ऑफ मार्क्स के संबंध में नया आदेश जारी किया। इसमें क्वालिफाइंग और कंपीटिटिव एंट्रेंस एग्जामिनेशन को मिलाकर न्यूनतम 40 प्रतिशत अंक लाने वाले अभ्यर्थियों का एडमिशन देने की बात कही गई। इसके बाद अगले चार सालों तक इसी आधार पर नामांकन लिया जाता रहा। 2010 में एमसीआई ने इस मामले का खुलासा किया। 32 छात्रों का नामांकन रद्द करने का आदेश सरकार को दिया।
याचिकाकर्ताओं का तर्क
याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि राज्य सरकार ने 31 जुलाई 2006 के आदेश में संशोधन करते हुए नौ सितंबर 2011 को नया निर्देश जारी किया है। इसी वजह से उन्हें मेडिकल में दाखिला नहीं हो पा रहा है, जबकि कई छात्रों को इसका लाभ मिल चुका है।
सरकार ने कहा : औपबंधिक नामांकन हुआ
सरकार और रिम्स प्रबंधन ने कोर्ट को बताया कि एमसीआई के प्रावधानों के तहत मेडिकल कॉलेज में नामांकन के लिए आरक्षित वर्ग के छात्रों को क्वालिफाइंग और कंपीटिटिव एंट्रेंस एग्जामिनेशन में न्यूनतम 40-40 फीसदी अंक लाने होंगे। तरुण बाखला बनाम झारखंड सरकार के मामले में हाईकोर्ट के आदेश पर पिछले और इस वर्ष कई छात्रों ने अपने रिस्क पर औपबंधिक नामांकन लिया है। इनका नामांकन कोर्ट के अंतिम आदेश से प्रभावित होगा।
आगे क्या
मामले में तरण बाखला की ओर से दायर याचिका हाईकोर्ट में विचाराधीन है। इस पर 19 अक्टूबर को सुनवाई होगी।
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