किसी प्रदेश की पहचान उतनी ही पुख्ता होती है, जितनी की गहरी होती हैं उसकी संस्कृतिक जड़ें। हरियाणा देश के नक्शे पर एक नवंबर,1966 को अस्तित्व में आया
हरियाणा शब्द भी 1966 में सामने नहीं आया अपितु सरकारी रिकार्ड में यह अंग्रेजों के समय से ही दर्ज है। उस दौर में हरियाणा दिल्ली सूबे के एक जिले के रूप में था, जिसका भू-क्षेत्र व्यापक था। उसी क्षेत्र को १९६६ में हरियाणा प्रदेश के रूप में पुनर्गठित किया गया। मुगल काल के अंतिम चरण में हरियाणवी संस्कृ ति अपने उत्कर्ष पर थी।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में यहां के लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। वहीं पंजाब के रजावाड़ों ने अंग्रेजों का साथ दिया। यह साथ फौज और रसद दोनों रूपों में दिया गया। अंग्रेज जब 1857 का गदर कुचलने में कामयाब रहे, तब उन्होंने बतौर सजा दिल्ली सूबे को कई हिस्सों में बांट दिया और यहीं से शुरू हुई हरियाणवीं संस्कृति के क्षरण की दारुण कथा। पतन और पराभव की यह श्रंखला 1966 तक जारी रही है। अंग्रेजों ने इस भू-भाग को पंजाबी रजवाड़ों के हवाले कर दिया । उन्होंने हरियाणवी संस्कृति के उत्थान में तनिक भी सहयोग नहीं किया। 1947 में भारत विभाजन के समय ये कलाकार भी पाकिस्तान पलायन कर गए। यह पलायन हरियाणवी संस्कृति की ताबूत में आखिरी कील साबित हुआ।
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