गांवों में बदतर हुई सरकारी स्कूलों में पढ़ाई+++प्रदेश को जल्द मिलेंगे 500 डॉक्टर+++अंतर जिला स्थानांतरण के लिए शिक्षा मंत्री को दिया ज्ञापन

स्कूली बच्चों की मुफ्त पढ़ाई के लिए सरकार ने शिक्षा का अधिकार कानून तो लागू कर दिया, लेकिन गांवों के स्कूलों की तस्वीर अब भी बदरंग है। आलम यह है कि 96 प्रतिशत से अधिक बच्चे स्कूल में दाखिल तो हो गए, लेकिन भाषा ज्ञान एवं गणित की पढ़ाई में उनकी स्थिति पहले से खराब हुई है। उपस्थिति के मामले में भी हालात ठीक नहीं हैं। ग्रामीण बच्चों ने भी सरकारी स्कूलों से तौबा करके निजी स्कूलों और निजी ट्यूशन की तरफ रुख करना शुरू कर दिया है। ग्रामीण भारत की स्कूली पढ़ाई-लिखाई की इस तस्वीर की जानकारी सोमवार को यहां गैर सरकारी संस्था प्रथम की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (ग्रामीण)-2011 में दी गई है। मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने इस रिपोर्ट को जारी किया। रिपोर्ट के मुताबिक गांवों के छह से 14 साल की आयु वर्ग के 96.7 फीसदी बच्चों ने स्कूलों में नाम लिखा लिया है। उनमें 25.6 फीसदी निजी स्कूलों में पढ़ रहे हैं। जबकि 2006 में सिर्फ 18.7 प्रतिशत बच्चे ही निजी स्कूलों में पढ़ रहे थे। इनमें हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, महाराष्ट्र और आंध्र जैसे राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों के औसतन 30 से 60 प्रतिशत तक बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में तो 45 प्रतिशत बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ रहे हैं। सरकारी स्कूल एक मायने में और भी खराब साबित हो रहे हैं। 2010 तक जहां उनके 22.5 प्रतिशत बच्चे ही निजी ट्यूशन लेने को मजबूर थे, वहीं 2011 में यह बढ़कर 23.3 प्रतिशत हो गई। इन दो वर्षो में प्राइवेट स्कूलों के बच्चों में निजी ट्यूशन लेने की स्थिति में गिरावट आई है। इस तरह शिक्षा का अधिकार कानून अमल में आने के बाद भी गांवों के बच्चों की एक बड़ी तादात निजी स्कूलों एवं प्राइवेट ट्यूशन पर ही निर्भर है। बिहार एवं पश्चिम बंगाल जैसे राज्य इस मामले में सबसे ज्यादा खराब हैं। रिपोर्ट यह भी बताती है कि पांचवीं तक के बच्चों में गणित के सामान्य जोड़-घटाव की स्थिति भी बदतर हुई है। इस मामले
में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान जैसे राज्यों की स्थिति ज्यादा खराब है। इसी तरह शब्दों को पहचानने व पढ़ने (भाषा ज्ञान) के मामले में भी ये राज्य कई राज्यों से पीछे हैं।
प्रदेश को जल्द मिलेंगे 500 डॉक्टर
संजीव गुप्ता, झज्जर डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे प्रदेश के तमाम चिकित्सा संस्थानों को बहुत ही जल्द राहत मिलने की संभावना है। राज्य सरकार लगभग 500 नए डॉक्टरों की नियुक्ति करने जा रही है। इस संबंध में तकरीबन तीन सौ डॉक्टरों की फाइल पर तो मुख्यमंत्री की भी मुहर लग चुकी है। स्वास्थ्य मंत्री की मानें तो अगले दो-तीन माह में ही डॉक्टरों की कमी दूर हो जाएगी। गौरतलब है कि राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं के हालात बहुत अच्छे नहीं है। फिर वह चाहे चिकित्सा संस्थानों में अत्याधुनिक उपकरण नहीं होने की बात हो या डॉक्टरों की कमी की। शनिवार को जिला अस्पताल के नए भवन के उद्घाटन अवसर पर मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ शहर में आए राज्य के स्वास्थ्य मंत्री राव नरेंद्र सिंह ने जागरण से खास बातचीत में इस बाबत पूरी उम्मीद जताई कि कुछ ही वक्त में सारी स्थिति बदल जाएगी। उन्होंने बताया कि दो तीन माह में ही राज्य में तकरीबन 500 नए डॉक्टरों की नियुक्ति होने जा रही है। इनमें से 285 डॉक्टरों की नियुक्ति संबंधी एक फाइल पर तो मुख्यमंत्री ने भी स्वीकृति दे दी है एवं अब वह फाइल वित्त विभाग में है। बाकी डॉक्टरों की नियुक्ति के लिए एक अन्य फाइल भी प्रोसेस में है। जरूरत के मुताबिक हम राजस्थान, उत्तर प्रदेश एवं दिल्ली इत्यादि पड़ोसी राज्यों से डॉक्टर लेने में गुरेज नहीं कर रहे हैं। उम्मीद है कि जल्द ही नियुक्ति की यह प्रक्रिया भी प्रारंभ हो जाएगी। स्वास्थ्य मंत्री ने यह भी कहा कि हर जिले की स्वास्थ्य सेवाओं में यदि कुछ अंतर देखने को मिलता है तो वह वहां की जनसंख्या एवं जरूरत के हिसाब से है। हर जिले में एडवांस लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस उपलब्ध कराई रही है, नवजात शिशुओं की बेहतर देखभाल के लिए अलग यूनिट खोली जा रही है, प्रसूताओं के लिए भी अच्छी से अच्छी सेवाएं प्रदान का प्रयास किया जा रहा है, बहुत जल्द जिला अस्पतालों में डायलेसिस एवं वेंटीलेटर की सुविधा भी उपलब्ध करा दी जाएगी। रही बात न्यूरोसर्जन, रेडियोलॉजिस्टतथा हृदय रोग इत्यादि विशेषज्ञों की कमी की तो सरकार उसे दूर करने के लिए भी हर संभव प्रयास कर रही है।
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राजकीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने प्रदेश अध्यक्ष विनोद ठाकरान की अध्यक्षता में बैठक कर प्रदेश की शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल को अंतर जिला स्थानांतरण के लिए ज्ञापन सौंपा। बैठक में प्रदेश महासचिव दीपक गोस्वामी ने कहा कि वर्ष 2004, 2008 व 2011 में लगे बहुत से शिक्षक जिला काडर के होते हुए दूसरे जिलों में काम करने के लिए मजबूर हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले शिक्षकों को रहने-खाने की बहुत समस्या है। मेवात में काम करने वाले शिक्षकों की समस्या तो बहुत ही गंभीर है। सरकार ने 1 : 40 का अनुपात कर दिया है, जो कि आरटीई का उल्लंघन है, क्योंकि आरटीई में 1 : 30 का अनुपात है। प्रदेश उपाध्यक्ष सतबीर गुलिया ने कहा कि जब सरकार ने विज्ञापन जिला वार दिया था, लेकिन बाद में दूसरे जिलों में स्टेशन दे दिए गए जो कि कानूनन गलत है। इस अवसर पर जिला गुड़गांव के प्रधान तरुण सुहाग, दलीप बिश्नोई, सुनील गिरी, राकेश चाहार, शेर सिंह, विजय दलाल आदि उपस्थित थे।

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