कौन मुफ्त पढ़ेगा, कौन नहीं पर मची जंग +++घरेलू नौकरों को वेतन के साथ ५०० रुपए अतिरिक्त +++हरियाणा में श्रमिकों को सबसे अधिक वेतन



कौन मुफ्त पढ़ेगा, कौन नहीं पर मची जंग 
13 मार्च को सरकार हाईकोर्ट में देगी जवाब 
प्रमोद वशिष्ठ त्न चंडीगढ़
नियम 134 ए हरियाणा स्कूल रूल्स 2003 के तहत 25 प्रतिशत बच्चों को निजी स्कूलों में नि:शुल्क दाखिले के मामले में अब राज्य सरकार यह बताएगी कि आर्थिक रूप से कमजोर बच्चे कौन हैं? साथ ही निजी स्कूल यह चाहते हैं कि वे आरटीई तो लागू कर देंगे लेकिन 134ए के तहत वे तभी पढ़ाएंगे जब राज्य सरकार उनको फीस अदा करे। सरकार ने यह साफतौर पर जरूर स्पष्ट कर दिया है कि राज्यभर में निजी स्कूलों को 134ए के तहत दाखिले करने के निर्देश दे दिए हैं। हाईकोर्ट में 13 मार्च को अब इन नए पहलुओं पर सुनवाई होगी। दो जमा पांच मुद्दा जनआंदोलन के अध्यक्ष एवं इस मामले में पिछले कई वर्षों से लड़ाई लड़ रहे हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता सतबीर हुड्डा ने मुख्य रूप से गरीब कौन की परिभाषा का मामला उठाया है। दरअसल, इस रूल्स में पहले यह था कि 25 प्रतिशत को नि:शुल्क पढ़ाने के बाद 75फीसदी से इनकी फीस वसूली जाए लेकिन रूल्स से यह लाइन 2009 में हटा दी गई। अब पहली से आठवीं तक नि:शुल्क एवं नौंवी से 12वीं तक सरकारी स्कूल की फीस पर पढऩा हैं। मजेदार बात यह है कि 2007 में बने इन रूल्स के बाद एक भी बच्चा नि:शुल्क नहीं पढ़ा है। मामले में अदालत में चले गए। इधर, शिक्षामंत्री गीता भुक्कल इस बात पर कायम है कि सरकार ने नियम लागू कर दिए हैं। आरटीए के तहत स्कूल चिह्नित किए जाएंगे जबकि 134ए के तहत दाखिले कराने के लिए कमेटियां बना दी हैं।

राज्य भर में एक भ्रम बना हुआ है कि गरीब यानी आर्थिक रूप से कमजोर की परिभाषा क्या है? ऐसे में स्कूल निदेशक ने बीपीएल को आर्थिक रूप से कमजोर बनाया। याचिकाकर्ता सतबीर हुड्डा ने कहा है कि अगल बीपीएल को इस श्रेणी में माना जा रहा है कि यह संख्या तो बहुत कम रह जाएगी। इसके लिए राशि तय हो, वे दो लाख रुपए प्रतिवर्ष कमाने वाले को इस श्रेणी में शामिल करने मांग करते हैं। ऐसे में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि वे इसे परिभाषित करे। यह बड़ा मामला है।

राज्य सरकार फीस दे दे तो हम नियम 134ए के तहत नि:शुल्क शिक्षा दे देंगे। यह कहा,निजी स्कूल एसोसिएशन अध्यक्ष कुलभूषण शर्मा ने। याचिकाकर्ता को इस पर आपत्ति नहीं है लेकिन वे राज्य सरकार इस पक्ष में नहीं है। सरकार ने डीसी की अध्यक्षता में बनाई कमेटियों से इस रूल्स को लागू कराने के सख्त निर्देश दिए हैं।
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घरेलू नौकरों को वेतन के साथ ५०० रुपए अतिरिक्त
 
घरेलू नौकरों को वेतन के साथ ५०० रुपए अतिरिक्त 
शर्मा ने बताया कि राज्य सरकार ने रोजगार की तलाश में अन्य राज्यों से आने वो प्रवासी श्रमिकों के पुनर्वास के लिए भी कदम उठाए हैं। फरीदाबाद और रेवाड़ी में 'रैन बसेरों' का निर्माण किया जा रहा है। लेबर चौकों पर श्रमिकों के लिए जन सुविधाओं सहित शैडों का निर्माण करने की योजना बनाई गई है। यमुनानगर, फरीदाबाद, हांसी और जुलाना (जींद) में ऐसे शेड बनाए जा रहे हैं। 
नेशनल ब्यूरोत्ननई दिल्ली
हरियाणा के श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री शिव चरण लाल शर्मा ने कहा है कि राज्य में 'घरेलू नौकरों' को अनुसूचित रोजगार की सूची में शामिल कर लिया गया है। साथ ही सफाई कर्मचारियों को भी अनुसूचित रोजगार की श्रेणी में शामिल करने और उन्हें न्यूनतम वेतन के साथ 500 रुपये अतिरिक्त देने का भी फैसला किया गया है।
शर्मा ने यह बात मंगलवार को यहां विज्ञान भवन में आयोजित 44वें भारतीय श्रम सम्मेलन में कही। सम्मेलन का उद्घाटन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने किया।
हरियाणा में श्रमिकों को सबसे अधिक वेतन
शर्मा ने कहा कि हरियाणा औद्योगिक श्रमिकों को देश में सबसे अधिक वेतन देने वाले राज्यों में एक है। राज्य में एक अकुशल श्रमिक का वेतन पहली जुलाई, 2011 से 4644 रुपये मासिक निर्धारित किया गया है, जो राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित न्यूनतम वेतन से अधिक है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित न्यूनतम वेतन को वैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए, ताकि अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के समझौते संख्या 131 के अनुरूप सभी अनुसूचित रोजगारों को इनमें शामिल किया जा सके। इसी प्रकार वयस्कों, बच्चों एवं प्रशिक्षुओं के संबंध में अलग-अलग निर्धारित न्यूनतम वेतन के प्रावधान को हटा कर एकरूपता लाई जानी चाहिए तथा इसे शिक्षा के अधिकार अधिनियम के संदर्भ में भी देखा जाना चाहिए। कुछ संस्थाओं द्वारा न्यूनतम वेतन न दिये जाने का जिक्र करते हुए उन्होंने सुझाव दिया कि इस सिलसिले में जुर्माना राशि का जो भी प्रावधान किया जाए, वह श्रमिकों की संख्या के अनुसार निर्धारित हो और जुर्माना राशि कम से कम 5000 रुपए हो। 
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शर्मा ने कहा कि हरियाणा औद्योगिक श्रमिकों को देश में सबसे अधिक वेतन देने वाले राज्यों में एक है। राज्य में एक अकुशल श्रमिक का वेतन पहली जुलाई, 2011 से 4644 रुपये मासिक निर्धारित किया गया है, जो राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित न्यूनतम वेतन से अधिक है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित न्यूनतम वेतन को वैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए, ताकि अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के समझौते संख्या 131 के अनुरूप सभी अनुसूचित रोजगारों को इनमें शामिल किया जा सके। इसी प्रकार वयस्कों, बच्चों एवं प्रशिक्षुओं के संबंध में अलग-अलग निर्धारित न्यूनतम वेतन के प्रावधान को हटा कर एकरूपता लाई जानी चाहिए तथा इसे शिक्षा के अधिकार अधिनियम के संदर्भ में भी देखा जाना चाहिए। कुछ संस्थाओं द्वारा न्यूनतम वेतन न दिये जाने का जिक्र करते हुए उन्होंने सुझाव दिया कि इस सिलसिले में जुर्माना राशि का जो भी प्रावधान किया जाए, वह श्रमिकों की संख्या के अनुसार निर्धारित हो और जुर्माना राशि कम से कम 5000 रुपए हो। 
 

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