सुस्ती के शिकंजे में शिक्षा अधिकार कानून


अभी तक न खुले स्कूल और न ही भर्ती हुए शिक्षक 
पंकज कुमार पाण्डेय त्ननई दिल्ली

हंगामेदार तरीके से 2010 में लागू हुआ शिक्षा का अधिकार कानून लगभग हर जगह दम तोड़ रहा है। बच्चों को अनिवार्य शिक्षा देने की बात तो दूर उनके लिए स्कूल तक भी नहीं खुल पा रहे हैं। स्कूल खोलने के नाम पर सरकारों का ठंडा रवैया कहीं मुद्दा नहीं बन पा रहा है। राइट टू एजुकेशन के दुरूस्त अमल के लिए बड़ी जरूरत शिक्षकों की भरती के मामले में भी राज्यों का रवैया सुस्त है।





देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में पिछले वित्त वर्ष में मंजूर 39 फीसदी प्राइमरी स्कूलों को खोला नहीं जा सका। पड़ोस के उत्तराखंड में भी 75 फीसदी स्कूल नहीं खोले जा सके।

शिक्षा क्षेत्र का दूसरा संकट शिक्षकों की कमी है। इसे दूर करने में भी कोई पहल नहीं की जा रही। मध्य प्रदेश , यूपी, राजस्थान, पंजाब , महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और बिहार सब जगह शिक्षकों की कमी का रोना है। शिक्षा समवर्ती सूची में तो है लेकिन स्कूली शिक्षा की सुध लेने में केंद्र और प्रदेशों का तदर्थ रवैया 2010 में शिक्षा अधिकार कानून बनने के बाद भी बरकरार है।


 

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