शर्मसार हुआ शिक्षा का मंदिर, दलित बच्चों पर ऐसा अत्याचार


 
अम्बाला. पाई.सौंगल गांव में मिडडे मील बनाने वाले वर्करों ने दलित बच्चों के जूठे बर्तनों को साफ करने से इंकार कर दिया। जिस कारण से राजकीय प्राथमिक पाठशाला में मिड-डे मील
की वितरित करने की समस्या उत्पन्न हो गई है। इस बात का खुलासा गांव की सरपंच सुशीला देवी एवं उनके पति कृष्ण बांगड, पंचों तथा गांव के कई गणमान्य व्यक्तियों ने किया।


 
इन्होंने बताया कि जब वे मिड डे मील का जायजा लेने के लिए विद्यालय में गए तो वहां पर जाकर देखा कि स्कूल में पिछले 3 दिनों के जूठे बर्तन पड़े हुए है। इस पर उन्होंने मिड डे मील का ठेका लेने वाले स्वयं सहायता समूह के प्रधान ओमप्रकाश से पूछा तो उन्होंने बताया कि कुक सत्या, धर्मपाल व बाला ने अनुसूचित जाति के बच्चों के बर्तन साफ करने से साफ इंकार कर दिया है।


 
यह भी देखने में आया कि बच्चों को कागजों पर रखकर मिड डे मील का भोजन दिया जा रहा है। ग्राम पंचायत को स्वयं सहायता समूह के प्रधान ओमप्रकाश ने बताया कि उसे डेढ़ वर्ष पहले जब ठेका दिया गया था तो अनुदान न आने के कारण बच्चे तब से अपने घर से बर्तन लेकर आते थे।


 
मिड डे मील में 400 बच्चों के लिए भोजन बनता है। अब 3 फरवरी को अनुदान आने पर बर्तन मंगवाए गए है। बर्तनों को साफ करने के लिए राजरानी को नियुक्त किया गया था। राजरानी की निगरानी में बर्तनों को साफ करने का कार्य दर्शना देवी भी करती थी। अब इसने भी बर्तन साफ करने से इंकार कर दिया है।


 
खाना बनाने के लिए ही मिलता वेतन : इस बारे में जब कूक धर्मपाल, सत्या और बाला से बात की गई तो उन्होंने बताया कि उनको सिर्फ मिड डे मील बनाने के लिए ही वेतन मिलता है। जो सिर्फ 1000 रुपए प्रति महीना है। इतने कम वेतन पर वे मिड डे मील बनाने के साथ-साथ बर्तन मांजने का कार्य नहीं कर सकते।


 
नहीं बरती जाएगी कोताही: दर्शना


 
इस बारे में जब जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी संतोष देवी से जाना गया तो उसने बताया कि यदि स्कूल में जाति पाति के आधार पर मिड डे मील बांटा जा रहा है और दलितों के बच्चों के बर्तन साफ नहीं किए जा रहे तो वे इसकी कल ही स्वयं जाकर जांच करेंगी। मिड डे मील के बर्तन साफ करने में कोई भी कोताही बर्दाश्त नहीं होगी।

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