जयपुर.हाईकोर्ट ने कांस्टेबल भर्ती 2010 में आयु सीमा में छूट प्राप्त अभ्यर्थियों को सामान्य वर्ग से अधिक अंक लाने पर भी सामान्य श्रेणी में शामिल नहीं करने का निर्देश दिया। न्यायाधीश एम.एन.भंडारी ने यह आदेश मदनलाल व अन्य की याचिका पर दिया।
अदालत ने सरकार के 11 मई, 2011 के परिपत्र को गैरकानूनी करार देते हुए कहा कि इस तारीख के बाद की भर्तियों में आरक्षित वर्ग के आयु व शुल्क में छूट प्राप्त अभ्यर्थियों को सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी से अधिक अंक लाने पर उस स्थिति में सामान्य वर्ग में शामिल किया जा सकता है, जब आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी ने अन्य वरीयता संबंधी छूट नहीं ली हो।
अधिवक्ता विज्ञान शाह ने बताया कि सरकार ने 10 अक्टूबर,10 को कांस्टेबल भर्ती की विज्ञप्ति
जारी की। इसमें 24 जून,08 के परिपत्र का उल्लेख किया, जिसमें आयु सीमा में छूट वाले आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी को सामान्य वर्ग से अधिक अंक लाने पर भी सामान्य वर्ग में शामिल नहीं किया जाएगा, लेकिन चयन प्रक्रिया में सरकार एक अन्य परिपत्र जारी कर कहा कि यदि आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी ने किसी भी तरह की छूट प्राप्त कर ली है तो भी उसे सामान्य वर्ग से अधिक अंक लाने पर सामान्य वर्ग की वरीयता सूची में शामिल किया जाएगा।\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\
पदोन्नति में आरक्षण: किस युग में जी रही है राजस्थान सरकार?
जयपुर.राजस्थान सरकार पदोन्नति में आरक्षण को लेकर न हाईकोर्ट की मान रही है और न सुप्रीम कोर्ट की। सरकार की ओर से पदोन्नतियों में लागू आरक्षण को भी खारिज किया जा चुका है। अब अदालती अवमानना के दौर से गुजर रही है। इसके बावजूद अभी तक आंखें नहीं खुली हैं। उप्र के संबंध में आए फैसले से राजस्थान सरकार के सामने पुरानी गलतियों को दुरुस्त करने का एक और मौका है।
क्या कहते हैं विधिवेत्ता सुप्रीम कोर्ट द्वारा यूपी सरकार के दलित वर्ग को पदोन्नति में आरक्षण देने के फैसले को गलत करार देने के आदेश का असर राज्य के पदोन्नति में आरक्षण मामले में भी आ सकता है। हालांकि राजस्थान राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय सुरक्षित रख रखा है। ऐसे में राज्य सरकार को एससी/एसटी वर्ग के अफसरों व कर्मचारियों को पदोन्नति में दिए गए आरक्षण पर पुनर्विचार करना चाहिए।
संजीव प्रकाश शर्मा, वरिष्ठ अधिवक्ता राजस्थान हाईकोर्ट व समता आंदोलन समिति के अधिवक्ता
यूपी सरकार के पदोन्नति में आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय देशभर में प्रभावी है। पदोन्नति में एससी/एसटी वर्ग को आरक्षण देना गलत है, क्योंकि इस वर्ग के कर्मचारी व अफसर नियुक्ति के समय ही आरक्षण का लाभ ले चुके होते हैं। उन्हें पदोन्नति के दौरान आरक्षण का लाभ दुबारा नहीं दिया जा सकता।
धर्मवीर ठोलिया, अधिवक्ता राजस्थान हाईकोर्ट
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय उत्तरप्रदेश के वास्तविक पिछड़ा वर्ग के लिए तोहफा है। अब आरक्षित वर्ग के कर्मचारी अगड़े माने जाएंगे व वास्तविक पिछड़े वर्ग के लोगों का हक नहीं ले सकेंगे।
पाराशर नारायण शर्मा, प्रदेशाध्यक्ष, समता आंदोलन, समिति
उप्र में हमसे दोगुने एससी-एसटी कर्मचारी, फिर भी माया हारीं
माना जा रहा है कि राजस्थान सरकार चुनावी गणित के कारण एससी-एसटी कर्मचारियों को नाराज नहीं करना चाहती। यूपी में माया यही कर रही थीं। उन्होंने पदोन्नतियों में आरक्षण लागू कर दिया था, लेकिन फिर भी माया सरकार चली गई।
राजस्थान
उत्तरप्रदेश
जनसंख्या 7 करोड़ 20 करोड़ एससी-एसटी 2.10 करोड़ 4 करोड़ सरकारी कर्मचारी 8 लाख 20 लाख एससी-एसटी कर्मचारी 2 लाख 4 लाख
फैसले का अध्ययन करेंगे : मुख्य सचिव
मुख्य सचिव सीके मैथ्यू ने कहा कि अभी मुझे फैसले की जानकारी नहीं है। राजस्थान सरकार का फैसला बहुत पुराना है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के शुक्रवार के फैसले को मंगवाकर इसका अध्ययन करवाया जाएगा, इसके बाद ही कुछ कहा जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का ही फैसला लागू होगा : धारीवाल
राज्य के विधि मंत्री शांति धारीवाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का परीक्षण करवाएंगे। हमारा मामला भी सुप्रीम कोर्ट में ही चल रहा है। इसलिए ज्यादा कुछ नहीं कह सकते। सुप्रीम कोर्ट जो भी निर्णय करेगा, उसे लागू करेंगे।
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तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती परीक्षा स्वतंत्र एजेंसी कराएगी
जयपुर/उदयपुर..प्रदेश में 2 जून को होने वाली शिक्षक भर्ती परीक्षा स्वतंत्र एजेंसी के माध्यम से करवाई जाएगी। इस एजेंसी ने प्रक्रिया का काम शुरू कर दिया है।
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अब अनुबंध खत्म होते ही खाली करना पड़ेगा किराए का मकान
भोपाल। अब प्रदेश के नगरों में रहने वाले किरायेदार लम्बे समय तक किराये के आवासों पर कब्जा नहीं जमा पायेंगे और उन्हें मकान मालिक से अनुबंध अवधि के बाद मकान खाली करना होगा। राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा ताई पाटिल ने मप्र विधानसभा द्वारा दो साल पहले पारित उस कानून को स्वीकृति प्रदान कर दी है जिसमें मकान मालिकों के हित में इस कानून में व्यापक प्रावधान हंै। शुक्रवार को राज्य सरकार ने इस कानून का प्रकाशन कर दिया। अभी इसे लागू करने के लिये नियम-कायदे बनाये जायेंगे।
ज्ञातव्य है कि मप्र परिसर किरायेदारी विधेयक को राज्य के आवास एवं पर्यावरण मंत्री जयंत मलैया ने 25 मार्च,2010 को विधानसभा में पुन:स्थापित किया था और अगले दिन 26 मार्च,2010 को यह सदन में चर्चा के बाद पारित हो गया था। इसे मंजूरी के लिये केन्द्र सरकार के पास भेजा गया था जिसे अब जाकर राष्ट्रपति ने मंजूरी प्रदान की है। इस नये कानून में उद्देश्यों और कारणों के कथन के अन्तर्गत कहा गया है कि किरायेदारों को विनियमित करने और भू-स्वामी था किरायेदार के बीच संतुलित संबंध कायम करने के लिये उपबंध करने के उद्देश्य से यह नया कानून विद्यमान मप्र स्थान नियन्त्रण अधिनियम,1961 के स्थान पर लाया गया है।
विभिन्न विशेषज्ञों और समितियों प्रमुख रुप से प्रशासकीय सुधार समिति और राष्ट्रीय नगरीकरण आयोग द्वारा यह देखा गया है कि किराया नियन्त्रण अधिनियमों से, उसके वर्तमान रुप में किरायेदार के दीर्घकालिक हितों की पूर्ति नहीं हुई है। उनका विद्यमान निवेश के रखरखाव और किराया हेतु गृह निर्माण में नये निवेश पर क्षतिकर प्रभाव रहा।
राष्ट्रीय आवास नीति,1994 ड्राफ्ट, नेशनल हाऊसिंग एण्ड हेबिटेट पालिसी,1998, नेशनल अर्बन हाऊसिंग एण्ड हबिटेट पालिसी, 2006 और राज्य की हाऊसिंग एण्ड हेबिटेट पालिसी, 2007 सभी ने गृह निर्माण में निवेश को प्रोत्साहित करने हेतु वर्तमान किराया नियन्त्रण अधिनियमों में सुधार की आवश्यक्ता पर बल दिया है।
जेएनएनयूआरएम ने किराया नियन्त्रण अधिनियम में सुधार का नगरीय सुधार एजेण्डा के भाग के रुप में सम्मिलित किया है। भार सरकार के शहरी विकास मंत्रालय ने विशेषज्ञों की विभिन्न अनुशंसाओं और राज्य सरकार से परामर्श के आधार पर, राज्यों की सरकारों द्वारा विचार के लिये किराया नियन्त्रण विधान का एक माडल प्रारुप तैयार किया गया। विभिन्न विशेषज्ञों के विचार, किराया नियन्त्रण विधान के माडल प्रारुप में दिये गये सुझाव और राज्य में प्रचलित परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुये, यह नया कानन लाया गया है।
अब यह करेगी राज्य सरकार : राज्य सरकार मप्र परिसर किरायेदारी कानून को अमल में लाने के लिये नियम-कायदे बनायेगी। इस कानून का विस्तार स्थानीय प्राधिकारी की अधिकारिता के अधीन प्रदेश के समस्त नगरों तथा उपनगरों पर होगा। कानून लागू होने पर छह माह के अंदर किरायेदारों की सूचना विनिर्दिष्ट प्रारुप में किराया नियन्त्रण प्राधिकारी को देना होगी तथा यह प्राधिकारी किरायेदारों का पंजीकरण करेगा। किराया अधिकरणों और अपीलीय किराया अधिकरणों का गठन होगा। अपीलीय अधिकरण में पीठासीन अधिकारी वरिष्ठ न्यायाधीश होगा जिसका प्रशासन एवं नियन्त्रण उच्च न्यायालय के तहत होगा।
इन पर नहीं लागू होगा यह कानून : ऐसा परिसर जो केन्द्रीय या राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकारी या सरकारी उपक्रम या उद्यम या कानूनी निकाय या छावनी बोर्ड के स्वामित्व के हों। ऐसे परिसर, जिन्हें बैंक या कोई सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम या किसी केन्द्रीय या राज्य अधिनियम द्वारा या उसके अधीन स्थापित किसी निगम या बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और प्रायवेट लिमिटेड कम्पनियों तथा पब्लिक लिमिटेड कम्पनियों को, जिनकी पेडअप शेयर केपिटल एक करोड़ रुपये या इससे अधिक की है, किराये या उपकिराये पर दिये गये हों।
कोई परिसर, जो ऐसे धार्मिक,पूर्त या शैक्षणिक न्यास या संस्था के स्वामित्व के हैं, जैसा राज्य सरकार द्वारा अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाये। ऐसे परिसर, जो वक्फ एक्ट,1995 के अधीन रजिस्ट्रीकृत वक्फ या मप्र लोक न्यास एक्ट,1951 के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी न्यास के स्वामित्व के हों। ऐसे परिसर, जहां भू-स्वामी नियोक्ता है तथा किरायेदार उसका कर्मचारी है।
ऐसे परिसर, जो आवासीय प्रयोजनों के लिये किराये पर दिया गया हो, चाहे वह इस अधिनियम के प्रारंभ होने के पूर्व या पश्चात किराये पर दिया गया हो, जहां इस अधिनियम के प्रारंभ होने की तारीख को देय मासिक किराया, ऐसी राशि से, जैसी कि विहित की जाये, अधिक हो। ऐसे परिसर, जो गैर-आवासीय प्रयोजनों के लिये किराये पर दिया गया हो, ाहे वह इस अधिनियम के प्रारंभ होने के पूर्व या पश्चात किराये पर दिया गया हो, जहां इस अधिनियम के प्रारंभ होने की तारीख को देय मासिक किराया, ऐसी राशि से, जैसी कि विहित की जाय, अधिक हो।
यह पड़ेगा प्रभाव
- इस अधिनियम के प्रारंभ होने के पूर्व अस्तित्व में आई कोई मासिक किरायेदारी जिसके दस वर्ष या उससे अधिक पूर्ण हो चुके हैं तब वह या तो दस वर्ष पूर्ण होने की तारीख से या इस अधिनियम के प्रारंभ होने की तारीख से, जो भी पशतवर्ती हो, 3 वर्ष की सीमित अवधि तक की किरायेदारी मानी जायेगी।
- इस अधिनियम के प्रवृत्त होने के बाद कोई भी किरायेदार बिना मकान मालिक की पूर्व सहमति के किरायेदार के रुप में धारित परिसर को या उसके किसी भाग को उपकिराये पर नहीं देगा और न ही ऐसे परिसर या उसके भाग पर उसके अधिकार को अंतरित या समनुदेशित करेगा।
- किरायेदार की मृत्यु पर किरायेदारी समाप्त हो जायेगी तथा अनुबंध अनुसार शेष अवधि तक पति या पत्नी, पुत्र या अविवाहित पुत्री या पुत्रियों,माता-पिता, विधवा पुत्रवधु उत्तराधिकारी के रुप में रह सकेंगे।
- मकान मालिक को तीरन साल में एक बार दीवारों की बाहरी था आंतरिक पुताई तथा दरवाजों तथा खिड़कियों पर पेंट करवाना होगा, आवश्यक होने पर पाईप बदलवाना होगा एवं प्लंबिंग करवाना होगी,आंतरिक तथा बाहरी विद्युत वायरिंग दुरस्त करना होगी।
देना होगी किराये की रसीद :
- इस कानून के अमल में आने पर मकान मालिक को किरायेदार को भुगतान प्राप्त करने पर रसीद देना होगी।
- तीन माह तक किराया न देने पर मकान खाली करना होगा।
- किराये पर दिये मकान का किरायेदार दुरुपयोग करता है तो मकान खाली करना होगा।
- यदि मकान मालिक या उसका परिवार जरुरत पड़ने पर स्वयं रहना चाहता है या उसे बेचना चाहता है तो तो किरायेदार को मकान खाली करना होगा।
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