www.teacherharyana.blogspot.in राज्य के वरिष्ठ आइएएस संजीव कुमार को किताबों की छपाई के घोटाले के मामले में बरी कर दिया गया है। सीबीआइ की विशेष अदालत ने बुधवार को मामले की सुनवाई करते हुए संजीव कुमार के अलावा चार अन्य को भी बरी कर दिया। सीबीआइ की ओर से 4 जून 2002 के दायर मामले के अनुसार 1985 बैच के आइएएस संजीव कुमार पर हरियाणा प्राथमिक शिक्षा परियोजना परिषद (एचपीएसपीपी) के
प्रोजेक्ट डायरेक्टर रहते हुए परिषद की किताबों की छपाई के घोटाले का आरोप था। संजीव कुमार 20 अप्रैल वर्ष 1998 से 14 जून वर्ष 1999 और 1 अगस्त वर्ष 1999 से 30 दिसंबर वर्ष 2000 तक एचपीएसपीपी के राज्य प्रोजेक्ट डायरेक्टर थे। वह परिषद से सभी गतिविधियों के भी प्रभारी थे जिनमें जिला प्राथमिक शिक्षा प्रोग्राम (डीपीईपी) भी शामिल था। संजीव कुमार पर पद का दुरुपयोग करते हुए किताबों की छपाई में चहेतों को लाभ पहुंचाने का आरोप था। आरोप के अनुसार 31 दिसंबर वर्ष 1999 में किताबों की छपाई के खुले टेंडर में उन प्रिंटिंग प्रेस की फर्म को ज्यादा दामों में किताबों की छपाई के टेंडर दे दिए गए जिनकी असल में न तो कोई प्रेस थी न उन्हें हरियाणा के पंचकूला स्थित सरकारी प्रेस से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी ) हासिल था। सीबीआइ ने संजीव कुमार के खिलाफ भ्रष्टाचार अधिनियम, आपराधिक साजिश रचने जाने के तहत मामला दर्ज किया था। जांच के दौरान संजीव कुमार के दोस्त टिक्का हसन मुस्तफा, एचपीएसपीपी के स्टोर प्रचेजर अधिकारी सुशांत स्वान, दिल्ली की एक प्रिंटिंग प्रेस के संचालक राज कुमार शर्मा, उनके भतीजे मनीष शर्मा, चंडीगढ़ की एक प्रिंटिंग प्रेस के संचालक निर्मल सिंघल, जगदीश सैनी और नोयडा के प्रिंटिंग प्रेस के संचालक नवीन जैन के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। मामले के ट्रायल के दौरान जगदीश सैनी का निधन हो गया था। आरोप के अनुसार टेंडर हासिल करने के लिए प्रिंटिंग प्रेस फर्म ने टिक्का हसन मुस्तफा के जरिए पांच लाख रुपये की रिश्वत संजीव कुमार को पहुंचाई थी लेकिन अभियोजन पक्ष इससे साबित नहीं कर पाया। अदालत ने साक्ष्यों के अभाव में संजीव कुमार के अलावा टिक्का हसन मुस्तफा, सुशांत स्वान, निर्मल सिंघल और जगदीश सैनी को बरी कर दिया। नवीन जैन पर आरोप तय नहीं हो पाए। बाद में राज कुमार शर्मा व मनीष शर्मा सरकारी गवाह बन गए थे।
प्रोजेक्ट डायरेक्टर रहते हुए परिषद की किताबों की छपाई के घोटाले का आरोप था। संजीव कुमार 20 अप्रैल वर्ष 1998 से 14 जून वर्ष 1999 और 1 अगस्त वर्ष 1999 से 30 दिसंबर वर्ष 2000 तक एचपीएसपीपी के राज्य प्रोजेक्ट डायरेक्टर थे। वह परिषद से सभी गतिविधियों के भी प्रभारी थे जिनमें जिला प्राथमिक शिक्षा प्रोग्राम (डीपीईपी) भी शामिल था। संजीव कुमार पर पद का दुरुपयोग करते हुए किताबों की छपाई में चहेतों को लाभ पहुंचाने का आरोप था। आरोप के अनुसार 31 दिसंबर वर्ष 1999 में किताबों की छपाई के खुले टेंडर में उन प्रिंटिंग प्रेस की फर्म को ज्यादा दामों में किताबों की छपाई के टेंडर दे दिए गए जिनकी असल में न तो कोई प्रेस थी न उन्हें हरियाणा के पंचकूला स्थित सरकारी प्रेस से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी ) हासिल था। सीबीआइ ने संजीव कुमार के खिलाफ भ्रष्टाचार अधिनियम, आपराधिक साजिश रचने जाने के तहत मामला दर्ज किया था। जांच के दौरान संजीव कुमार के दोस्त टिक्का हसन मुस्तफा, एचपीएसपीपी के स्टोर प्रचेजर अधिकारी सुशांत स्वान, दिल्ली की एक प्रिंटिंग प्रेस के संचालक राज कुमार शर्मा, उनके भतीजे मनीष शर्मा, चंडीगढ़ की एक प्रिंटिंग प्रेस के संचालक निर्मल सिंघल, जगदीश सैनी और नोयडा के प्रिंटिंग प्रेस के संचालक नवीन जैन के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। मामले के ट्रायल के दौरान जगदीश सैनी का निधन हो गया था। आरोप के अनुसार टेंडर हासिल करने के लिए प्रिंटिंग प्रेस फर्म ने टिक्का हसन मुस्तफा के जरिए पांच लाख रुपये की रिश्वत संजीव कुमार को पहुंचाई थी लेकिन अभियोजन पक्ष इससे साबित नहीं कर पाया। अदालत ने साक्ष्यों के अभाव में संजीव कुमार के अलावा टिक्का हसन मुस्तफा, सुशांत स्वान, निर्मल सिंघल और जगदीश सैनी को बरी कर दिया। नवीन जैन पर आरोप तय नहीं हो पाए। बाद में राज कुमार शर्मा व मनीष शर्मा सरकारी गवाह बन गए थे।
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