लगभग चार साल की कोशिशों के बाद भी सरकार विदेशी शिक्षण संस्थानों को भारत में कैंपस खोलने का कानून तो नहीं बना सकी, फिर भी उनके यहां आने की राह जरूर खुल गई है। रैकिंग के लिहाज से दुनिया के टॉप 500 विदेशी विवि या अन्य उच्च शिक्षण संस्थान भारत में अपने किसी कोर्स की पढ़ाई शुरू करा सकेंगे। शर्त यह है कि उसके लिए उन्हें यहां के किसी ए ग्रेड उच्च शिक्षण संस्थान से आपसी सहयोग (कोलाबोरेशन)करना होगा। डिग्री भी भारतीय देनी होगी। विदेशी उच्च शिक्षण संस्थानों के भारत में आने की राह खोलने की पहल विवि अनुदान आयोग (यूजीसी) ने की है। यूजीसी बोर्ड ने शनिवार को बैठक में इसके लिए बाकायदा नियम-कायदों को मंजूरी दे दी। शैक्षिक सहयोग मानक संबर्द्धन एवं संरक्षण नाम से तैयार इस रेगुलेशन के तहत, रैंकिग में दुनिया भर में श्रेष्ठ 500 विवि या उच्च शिक्षण संस्थान भारत में ऐसे किसी संस्थान से आपसी सहयोग कायम कर सकते हैं, जिन्हें भारतीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (नैक) से ए श्रेणी का दर्जा मिला हो। नैक यूजीसी के तहत ही एक स्वायत्त संस्थान है, जो भारत में उच्च शिक्षण संस्थान की ग्रेडिंग करता है। यूजीसी के कार्यवाहक चेयरमैन प्रो. वेद प्रकाश के मुताबिक, विदेशी एवं भारतीय उच्च शिक्षण संस्थानों के आपसी सहयोग से देश में या फिर विदेशी कैंपस में होने वाली पढ़ाई के बाद छात्रों को भारतीय डिग्री ही दी जा सकेगी। विदेशी संस्थानों को अपने देश में अपनी डिग्री देने की छूट होगी। यह आपसी सहयोग के लिए साथ आने वाले संस्थानों पर निर्भर करेगा कि वे चाहे तो किसी पाठ्यक्रम की पूरी पढ़ाई भारत में या फिर विदेश स्थित उनके कैंपस में कराएं। या फिर एक ही देश में पूरी कराएं। वैसे तो देश में अभी भी सैकड़ों उच्च शिक्षण संस्थान विदेशी उच्च शिक्षण संस्थानों से कोलाबोरेशन में चल रहे हैं। लेकिन सरकार की ओर से उनका प्रमाणन नहीं है। यूजीसी के नियम-कायदों के बाद इन देसी-विदेशी संस्थानों को भी मानकों पर खरा उतरना होगा। इसके लिए उन्हें छह माह का वक्त दिया जाएगा। खरा न उतरने पर साझे पाठ्यक्रम संचालित करने वाले निजी संस्थानों, डीम्ड विवि की मान्यता खत्म कर दी जाएगी, अनुदान रोक दिया जाएगा
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