नयी दिल्ली 11 जून (भाषा)। सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्रीय शैक्षणिक संस्थाओं में अल्पसंख्यकों के लिए 4.5 फीसदी आरक्षण का प्रावधान निरस्त करने के आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। न्यायालय इस मामले में केन्द्र सरकार की याचिका पर बुधवार को सुनवाई करेगा।
न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति जे एस खेहर की अवकाशकालीन खंडपीठ ने आज इस संवेदनशील मसले के प्रति केन्द्र सरकार के रवैए पर नाराजगी व्यक्त की। न्यायाधीशों ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए केन्द्र सरकार द्वारा आरक्षण के समर्थन में दस्तावेज संलग्न नहीं करना आश्चर्यजनक है। न्यायाधीशों ने याचिका पर नोटिस जारी किए बगैर ही अटार्नी जनरल गुलाम वाहनवती से कहा कि अल्पसंख्यकों को अन्य पिछड़े वर्ग के 27 फीसदी कोटे में से 4.5 फीसदी आरक्षण प्रदान करने को न्यायोचित ठहराने वाले दस्तावेज पेश करें। न्यायाधीशों ने कहा कि इस याचिका पर किसी भी कार्यवाही से पहले न्यायालय के समक्ष आवश्यक दस्तावेज तो होने चाहिए। इसके साथ ही न्यायालय ने इस याचिका को बुधवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।
इससे पहले, अटार्नी जनरल ने इस मामले में अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों के लिए संरक्षण का अनुरोध करते हुए कहा कि इस आरक्षण व्यवस्था के अंतर्गत आईआईटी के लिए 325 छात्रों ने परीक्षा उत्तीर्ण की है। उन्होंने कहा कि इन छात्रों को आईआईटी में प्रवेश के लिए काउंसलिंग शामिल होने की अनुमति दी जाए क्योंकि इसकी अनुमति नहीं मिलने से इन छात्रों का भविष्य चौपट हो सकता है।
न्यायाधीशों का कहना था कि इस मामले में कोई भी आदेश देने से पहले केन्द्र सरकार को अपनी दलीलों के समर्थन में कुछ दस्तावेज तो पेश करने होंगे।
न्यायाधीशों ने अटार्नी जनरल से जानना चाहा कि आखिर अन्य पिछड़े वर्गो के लिए 27 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था को सरकार खंडित कैसे कर सकती है। न्यायाधीशों ंका कहना था कि यह बेहद संवेदनशील और जटिल मसला है। आखिरकार सरकार 27 फीसदी आरक्षण के कोटे में से अल्पसंख्यक वर्गो के लिए आरक्षण की व्यवस्था कर रही है। कल आप इसमें से और नई आरक्षण व्यवस्था कर सकते हैं।
इस पर अटार्नी जनरल ने कहा कि अल्पसंख्यक वर्ग के लिए 4.5 फीसदी आरक्षण के बारे में वह न्यायालय को संतुष्ट कर देंगे। इस पर न्यायाधीशों ने कहा कि सरकार हाईकोर्ट को भी संतुष्ट कर सकती थी। सरकार को ए सामग्री उच्च न्यायालय में पेश करनी चाहिए थी। न्यायाधीशों ने कहा कि यह संवेदनशील मसला है और सरकार को इसे हल्के से नहीं लेना चाहिए।
न्यायाधीशों ने कहा कि इतने संवेदनशील मसले पर सरकारी ज्ञापन जारी करने के सरकार के रवैए से भी वे खुश नहीं है। सरकार को इस मामले में अधिक सावधानी बरतनी चाहिए थी। हमें अधिक खुशी होती यदि इस मसले पर सरकार ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग जैसी वैधानिक संस्था से परामर्श किया होता।
अटार्नी जनरल वाहनवती ने कहा कि आईआईटी मेंं काउंसलिंग शुरू होने के मद्देनजर आज अल्पसंख्यक समुदाय के इस वर्ग के छात्र्।ों को संरक्षण की आवश्यकता है। इस पर न्यायाधीशों ने कहा कि वे उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक नहीं लगाएंगे।
उच्च न्यायालय ने 28 मई को अन्य पिछड़े वर्गो के 27 फीसदी आरक्षण में से अल्पसंख्यक वर्ग के लिए 4.5 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था करने के सरकार के फैसले को निरस्त कर दिया था। उच्च न्यायालय का मत था कि केन्द्र सरकार ने बहुत हल्के ढंग से यह निर्णय किया था। केन्द्र सरकार ने हाईकोर्ट के इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। केन्द्र सरकार का तर्क है कि उच्च न्यायालय ने आरक्षण व्यवस्था निरस्त करके गलत किया है क्योंकि सरकार ने व्यापक सर्वेक्षण के बाद अल्पसंख्यक वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान किया था।
न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति जे एस खेहर की अवकाशकालीन खंडपीठ ने आज इस संवेदनशील मसले के प्रति केन्द्र सरकार के रवैए पर नाराजगी व्यक्त की। न्यायाधीशों ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए केन्द्र सरकार द्वारा आरक्षण के समर्थन में दस्तावेज संलग्न नहीं करना आश्चर्यजनक है। न्यायाधीशों ने याचिका पर नोटिस जारी किए बगैर ही अटार्नी जनरल गुलाम वाहनवती से कहा कि अल्पसंख्यकों को अन्य पिछड़े वर्ग के 27 फीसदी कोटे में से 4.5 फीसदी आरक्षण प्रदान करने को न्यायोचित ठहराने वाले दस्तावेज पेश करें। न्यायाधीशों ने कहा कि इस याचिका पर किसी भी कार्यवाही से पहले न्यायालय के समक्ष आवश्यक दस्तावेज तो होने चाहिए। इसके साथ ही न्यायालय ने इस याचिका को बुधवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।
इससे पहले, अटार्नी जनरल ने इस मामले में अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों के लिए संरक्षण का अनुरोध करते हुए कहा कि इस आरक्षण व्यवस्था के अंतर्गत आईआईटी के लिए 325 छात्रों ने परीक्षा उत्तीर्ण की है। उन्होंने कहा कि इन छात्रों को आईआईटी में प्रवेश के लिए काउंसलिंग शामिल होने की अनुमति दी जाए क्योंकि इसकी अनुमति नहीं मिलने से इन छात्रों का भविष्य चौपट हो सकता है।
न्यायाधीशों का कहना था कि इस मामले में कोई भी आदेश देने से पहले केन्द्र सरकार को अपनी दलीलों के समर्थन में कुछ दस्तावेज तो पेश करने होंगे।
न्यायाधीशों ने अटार्नी जनरल से जानना चाहा कि आखिर अन्य पिछड़े वर्गो के लिए 27 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था को सरकार खंडित कैसे कर सकती है। न्यायाधीशों ंका कहना था कि यह बेहद संवेदनशील और जटिल मसला है। आखिरकार सरकार 27 फीसदी आरक्षण के कोटे में से अल्पसंख्यक वर्गो के लिए आरक्षण की व्यवस्था कर रही है। कल आप इसमें से और नई आरक्षण व्यवस्था कर सकते हैं।
इस पर अटार्नी जनरल ने कहा कि अल्पसंख्यक वर्ग के लिए 4.5 फीसदी आरक्षण के बारे में वह न्यायालय को संतुष्ट कर देंगे। इस पर न्यायाधीशों ने कहा कि सरकार हाईकोर्ट को भी संतुष्ट कर सकती थी। सरकार को ए सामग्री उच्च न्यायालय में पेश करनी चाहिए थी। न्यायाधीशों ने कहा कि यह संवेदनशील मसला है और सरकार को इसे हल्के से नहीं लेना चाहिए।
न्यायाधीशों ने कहा कि इतने संवेदनशील मसले पर सरकारी ज्ञापन जारी करने के सरकार के रवैए से भी वे खुश नहीं है। सरकार को इस मामले में अधिक सावधानी बरतनी चाहिए थी। हमें अधिक खुशी होती यदि इस मसले पर सरकार ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग जैसी वैधानिक संस्था से परामर्श किया होता।
अटार्नी जनरल वाहनवती ने कहा कि आईआईटी मेंं काउंसलिंग शुरू होने के मद्देनजर आज अल्पसंख्यक समुदाय के इस वर्ग के छात्र्।ों को संरक्षण की आवश्यकता है। इस पर न्यायाधीशों ने कहा कि वे उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक नहीं लगाएंगे।
उच्च न्यायालय ने 28 मई को अन्य पिछड़े वर्गो के 27 फीसदी आरक्षण में से अल्पसंख्यक वर्ग के लिए 4.5 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था करने के सरकार के फैसले को निरस्त कर दिया था। उच्च न्यायालय का मत था कि केन्द्र सरकार ने बहुत हल्के ढंग से यह निर्णय किया था। केन्द्र सरकार ने हाईकोर्ट के इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। केन्द्र सरकार का तर्क है कि उच्च न्यायालय ने आरक्षण व्यवस्था निरस्त करके गलत किया है क्योंकि सरकार ने व्यापक सर्वेक्षण के बाद अल्पसंख्यक वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान किया था।
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