घर खरीदने के लिए आजकल लोग आमतौर पर होम लोन लेते हैं, लेकिन जानकारी के अभाव में कई बार होम लोन लेने का तरीका जटिल हो जाता है। होम लोन से संबंधित तमाम बारीक बातों पर आइए डालते हैं नजर...
कितनी तरह के होम लोन
घर खरीदने के लिए लोन: घर खरीदने के लिए लिया जाने वाला लोन। होम लोन काम मतलब आमतौर पर इसी लोन से लगाया जाता है।
घर में इंप्रूवमेंट के लिए लोन: अगर आप घर को रेनोवेट कराना चाहते हैं या कुछ मरम्मत आदि करानी है तो यह लोन लिया जा सकता है।
कंस्ट्रक्शन लोन: नया घर बनाने के लिए लिया जाने वाला लोन।
कन्वर्जन लोन: मान लीजिए आप जिस मकान में रह रहे हैं, उसके लिए आपने होम लोन
लिया है। अब दूसरा घर खरीदना चाहते हैं, जिसके लिए आपको और पैसे की जरूरत है। कन्वर्जन लोन के माध्यम से पुराना लोन नए घर पर ट्रांसफर हो जाता है। इसमें जो एक्स्ट्रा पैसे की जरूरत होती है, वह भी शामिल होता है।
लैंड परचेज लोन: मकान बनाने या सिर्फ इन्वेस्टमेंट की नजर से अगर आप जमीन खरीद रहे हैं, तो लैंड परचेज लोन ले सकते हैं।
ब्रिज लोन: उन लोगों के लिए है जो वर्तमान घर को बेचकर नया घर खरीदना चाहते हैं। ब्रिज लोन नए घर को फाइनेंस करने में मदद करता है, जब तक कि पुराने घर के लिए खरीदार नहीं मिलता।
किसे मिल सकता है लोन
इंडियन रेजिडेंट होना चाहिए।
लोन की शुरुआत होते वक्त उम्र कम-से-कम 21 साल होनी चाहिए।
लोन मच्योर होते वक्त उम्र 65 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
लोन लेने वाला या तो सैलरीड हो या सेल्फ एम्प्लॉयड। अगर कोई प्रोबेशन पर है तो वह होम लोन का हकदार नहीं है।
कितना मिल सकता है लोन
कुल सालाना आमदनी का करीब साढ़े तीन गुना लोन लिया जा सकता है। वैसे, लोन की रकम प्रॉपर्टी की कीमतपर भी निर्भर करती है। ज्यादातर बैंक प्रॉपर्टी की कीमत का 80 से 85 फीसदी तक लोन दे देते हैं।
लोन लेने का प्रॉसेस
1. ऐप्लिकेशन भरना
जरूरी डॉक्युमेंट्स के साथ ऐप्लिकेशन फॉर्म जमा किया जाता है। जरूरी कागजात ये हैं:
आइडेंटिटी प्रूफ: फोटो क्रेडिट कार्ड, पैन कार्ड, पासपोर्ट, वोटर आईडी आदि में से कोई एक।
रेजिडेंस प्रूफ: रेंटल अग्रीमेंट, पासपोर्ट, राशन कार्ड, डीएल।
इनकम प्रूफ: इनकम टैक्स रिटर्न की पिछले तीन साल की कॉपी, फॉर्म 16, पिछले तीन महीने की सैलरी स्लिप,पिछले महीने की बैंक स्टेटमेंट।
एम्प्लॉयमेंट डिटेल: अगर कंपनी जानी मानी नहीं है तो कंपनी का लेटर।
प्रॉसेसिंग फीस: एप्लिकेशन फॉर्म जमा करने के वक्त बैंक कस्टमर से प्रॉसेसिंग फीस भी चार्ज करता है। यहअमूमन लोन की कुल रकम का .50 से 1 फीसदी होता है।
बात पते की: कुछ बैंक प्रॉसेसिंग फीस को लेकर फ्लेक्सिबल होते हैं इसलिए इस मुद्दे पर मोलभाव करके फीस कोकम कराया जा सकता है। लोन एप्लाई करते वक्त ज्यादा से ज्यादा प्रूफ पेश करें। इससे आपका केस स्ट्रॉन्ग होताहै।
2. पर्सनल वेरिफिकेशन
ऐप्लिकेशन जमा करने के एक या दो दिन बाद बैंक आपके द्वारा दी गई सभी सूचनाओं को वेरिफाई करता है।कस्टमर की इनकम, अड्रेस, आइडेंटिटी आदि जांचने का काम किया जाता है।
बात पते की: इस प्रॉसेस में बैंक कई बार कॉल करके आपका वेरिफिकेशन कर सकता है। इसलिए इस प्रॉसेस कोपूरा करने के लिए थोड़ा वक्त निकालकर रखें और बार बार कॉल आने पर चिढ़ें नहीं।
3. हरी झंडी
आपके द्वारा दी गई जानकारी और उसके वेरिफिकेशन से अगर बैंक संतुष्ट है तो वह आपके लोन को हरी झंडीदिखा देगा, नहीं उसे तो रिजेक्ट कर देगा। कस्टमर की रीपेमेंट कपैसिटी का आकलन करके यह भी तय कर लियाजाता है कि उसे कितना अमाउंट सैंक्शन होगा।
4. ऑफर लेटर
इसके बाद बैंक तमाम सूचनाओं के साथ कस्टमर को ऑफर लेटर देता है, जिसकी एक कॉपी को साइन करकेकस्टमर बैंक को लौटाता है।
बात पते की: ऑफर लेटर में दी गई लोन अमाउंट, अवधि और ब्याज दर को चेक कर लें कि क्या वह वही है जोआपके साथ तय की गई थी। ब्याज की दर पर कुछ मोलभाव किया जा सकता है।
5. प्रॉपर्टी वेरिफिकेशन
इसके बाद बैंक आपकी प्रॉपर्टी की कानूनी वैधता को चेक करता है। अपने लीगल डिपार्टमेंट की मदद से बैंकप्रॉपर्टी के सभी ओरिजनल डॉक्युमेंट्स को वेरिफाई करके यह सुनिश्चित करता है कि प्रॉपर्टी हर तरीके से कानूनीहै। इसके बाद बैंक अपने एक्सपर्ट्स को साइट पर भेजकर भी प्रॉपर्टी का वेरिफिकेशन कराते हैं और उसके बादवैल्यूअर प्रॉपर्टी का वैल्यूएशन करता है।
बात पते की: यह महत्वपूर्ण पॉइंट है। हर कस्टमर को कराना चाहिए। कई बार बैंक लीगल वेरिफिकेशन के लिएकस्टमर से चार्ज करते हैं। इसके लिए मोलभाव कर सकते हैं। अगर लीगल वेरिफिकेशन के बाद बैंक लोन ओकेकर देता है तो कस्टमर को खुश हो जाना चाहिए क्योंकि इसका मतलब है कि उसके द्वारा ली जा रही प्रॉपर्टीकानूनी रूप से पूरी तरह सेफ है।
6. अग्रीमेंट साइन
इसके बाद लोन अग्रीमेंट साइन हो जाता है और प्रॉपर्टी के कस्टमर्स के पक्ष में ट्रांसफर होने के ऑरिजनलकागजात बैंक में जमा हो जाते हैं। इसके बाद बैंक इस बात के सुबूत मांगता है कि प्रॉपर्टी खरीदने के लिए लोन केअलावा जो रकम आपको देनी है, वह आपने पे कर दी है। बैंक कस्टमर से 36 पोस्ट डेटेड चेक भी जमा कराता हैजिनसे रीपेमेंट होता रहे।
बात पते की: ध्यान रखें लोन अमाउंट का जो चेक बैंक इशू करेगा, वह प्रॉपर्टी बेचने वाले के नाम होगा, कस्टमरके नाम नहीं। ज्यादातर बैंक उसी दिन से ब्याज लेना शुरू कर देते हैं जिस दिन चेक इशू होता है। आपको चेककब सौंपा गया इससे कोई लेना देना नहीं है। इसलिए जिस दिन चेक इशू हो कोशिश करनी चाहिए कि उसी दिनउसे बैंक से ले लिया जाए। प्रॉपर्टी के ऑरिजनल कागजात बैंक में जमा हो जाते हैं इसलिए इन कागजात कीफोटो स्टैट कॉपी अपने पास जरूर रख लें।
7. डिस्बर्समेंट
अगर प्रॉपर्टी रेडी टु पजेशन है तो लोन एक बार में ही डिस्बर्स हो जाता है, लेकिन अगर अंडर कंस्ट्रक्शन है तोलोन अमाउंट का डिस्बर्समेंट कई हिस्सों में होता है। अगर डिस्बर्समेंट कई हिस्सों में होना है तो बैंक पहले हिस्सेके भुगतान के बाद तुरंत ईएमआई शुरू नहीं करता। ईएमआई तब शुरू होती है, जब पूरे अमाउंट का भुगतान होजाता है। ऐसे में बैंक भुगतान की गई रकम पर तब तक साधारण ब्याज चार्ज करता है, जब तक पूरी रकम काडिस्बर्समेंट नहीं हो जाता। इसे प्री ईएमआई कहा जाता है। इसके लिए बैंक आमतौर पर छह पोस्टडेटेड चेक लेतेहैं।
बात पते की: प्रीईएमआई समय से अदा करना सुनिश्चित करें, नहीं तो बैंक लेट फीस चार्ज कर सकता है।
लोन का रीपेमेंट
1. पोस्ट डेटेड चेक: बैंक में 36 पोस्टडेटेड चेक जमा करा दिए जाते हैं, जिनसे खुद ब खुद ईएमआई की रकमबैंक को मिल जाती है।
2. सीधे एम्प्लॉयर से: कई संस्थान अपने कर्मचारियों को यह सुविधा देते हैं। इस व्यवस्था में संस्थान कर्मचारीकी सैलरी से ईएमआई की रकम काटकर बैंक को दे देते हैं और बाकी सैलरी कर्मचारी के अकाउंट में आ जाती है।
3. कैश पेमेंट: ईएमआई आप ड्राफ्ट या कैश की मदद से हर महीने भी बैंक में जमा करा सकते हैं। हालांकि कुछबैंक ऐसी सुविधा नहीं देते।
4. ईसीएस: ईएमआई अदा करने का कारगर तरीका है। इस व्यवस्था में ईएमआई की रकम हर महीने आपके बैंकअकाउंट से अदा की जाती रहती है।
होम लोन का टैक्स बेनिफिट
होम लोन को लौटाने में जो ईएमआई दी जाती है, उसका कुछ हिस्सा प्रिंसिपल अमाउंट होता है और कुछ हिस्साब्याज। जो रकम ब्याज के रूप में अदा की जाती है उस पर इनकम टैक्स के सेक्शन 24 बी के तहत टैक्स मेंराहत मिलती है। इसकी सीमा डेढ़ लाख रुपये है। जो रकम प्रिंसिपल अमाउंट के तौर पर अदा की जाती है, उसपर 80सी के तहत छूट मिलती है। इसे एक लाख रुपये की सीमा के अंदर काउंट किया जाता है। इसके लिए बैंकद्वारा जारी किया गया सर्टिफिकेट पेश करना होता है, जिसमें बताया जाता है कि आपने पूरे साल के दौरानकितनी रकम प्रिंसिपल के तौर पर अदा की और कितनी ब्याज के तौर पर।
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ई-फाइलिंग में टीएरपी की मदद
इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने रिटर्न फाइल करने की समय सीमा एक महीना बढ़ाकर 31 अगस्त कर दी है। इस साल से सालाना 10 लाख रुपए और इससे ज्यादा इनकम वाले लोगों के लिए टैक्स रिटर्न की ऑनलाइन फाइलिंग अनिवार्य कर दी गई है। कई लोगों को अब भी ऑनलाइन रिटर्न फाइलिंग प्रोसेस और टैक्स से जुड़े टेक्निकल शब्दों को समझने में दिक्कत आ रही है।
आईटीआर फाइलिंग पोर्टल taxspanner.com के सीएफओ और को-फाउंडर सुधीर कौशिक ने कहा, 'अगर टैक्सपेयर का रिटर्न पेचीदा है तो उसे ऑनलाइन फाइलिंग में दिक्कत हो सकती है।' उन्होंने कहा कि हाउस प्रॉपर्टी, पुरानी प्रॉपर्टी या शेयरों की बिक्री से कैपिटल गेंस, ट्विन शेयर बेसिस पर हाउसिंग लोन टैक्स बेनेफिट जैसे इनकम के कई जरिए हो सकते हैं। सही टैक्स लायबिलिटी को जानना बहुत मुश्किल होता है। ऐसे में आप ई-फाइलिंग के लिए टैक्स कंसल्टेंट्स की मदद ले सकते हैं।
टैक्स रिटर्न प्रीपेयरर्स या टीआरपी करेगा आपकी मदद
अर्न्स्ट ऐंड यंग के टैक्स पार्टनर अमरपाल एस चड्ढा ने कहा, 'जो इंडिविजुअल टेक सैवी नहीं हैं, वे टैक्स रिटर्न प्रीपेयरर्स (टीआरपी) की सेवाएं ले सकते हैं।' इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने दो नई शुरुआत की है- 'रजिस्टर फॉर होम विजिट' और 'ऑनलाइन टैक्स हेल्प'। इनसे टैक्सपेयर्स को काफी मदद मिलती है। टीआरपी रजिस्टर्ड प्रफेशनल्स हैं, जो रिटर्न फाइल करने में टैक्सपेयर्स की मदद करते हैं।
जो इंडिविजुअल टीआरपी की सेवाएं लेना चाहते हैं, वे www.trpscheme.com को विजिट कर ऐसा कर सकते हैं। ऑनलाइन टैक्स हेल्प ऑप्शन सेलेक्ट करने वाले इंडिविजुअल को अपने सवाल के साथ ही अपना कॉन्टैक्ट डीटेल देना होगा। 24 घंटे के अंदर एक्सपर्ट फोन या ई-मेल से आपके सवालों का जवाब देंगे। चड्ढा ने कहा कि जो इंडिविजुअल होम विजिट के लिए रजिस्टर होना चाहते हैं, उन्हें सुविधाजनक दिन और समय बताना पड़ेगा ताकि टीआरपी मदद के लिए उनके पास आ सके। अभी होम विजिट फैसिलिटी बंगलुरु, चेन्नै, गुवाहाटी, हैदराबाद, जयपुर, कोलकाता, लखनऊ, मुंबई, नई दिल्ली और पटना में उपलब्ध है।
प्राइवेट हेल्प भी मौजूद है
आजकल ज्यादातर चार्टर्ड अकाउंटेंट और दूसरे टैक्स सर्विस प्रोवाइडर्स अपने क्लाइंट का रिटर्न ऑनलाइन फाइल करते हैं। इनके अलावा www.myitreturn.com, www.taxspanner.com जैसे पोर्टल हैं, जो ई-मेल-बेस्ड टैक्स फाइलिंग सर्विसेज देते हैं। आपको सिर्फ ई-मेल से अपना फॉर्म 16 और संबंधित डीटेल भेजनी पड़ती है और टैक्स पोर्टल आपकी तरफ से ऑनलाइन रिटर्न फाइल करेगा।
कितना खर्च आएगा?
टीआरपी इनकम टैक्स रिटर्न के लिए 250 रुपए या इससे कम फीस लेगा। अमरपाल चड्ढा ने कहा, 'टैक्सपेयर्स के लिए रिटर्न प्रीपेयर करने के लिए डिपार्टमेंट भी टीआरपी को इनसेंटिव देता है।' सर्विस प्रोवाइडर का चुनाव टैक्स रिटर्न की जटिलता के आधार पर किया जाना चाहिए। सैलरीड इंडिविजुअल को अपने फॉर्म 16 के आधार पर सिंपल आईटीआर-1 फाइल करना पड़ता है। वे टीआरपी या प्राइवेट वेबसाइट्स की मदद ले सकते हैं। अगर आपका रिटर्न कॉम्प्लेक्स हो तो आप किसी अनुभवी टैक्स कंसल्टेंट्स की मदद ले सकते हैं। कंसल्टेंट्स आपके कैपिटल गेंस और हाउस प्रॉपर्टी से संबंधित इनकम को ध्यान में रख आपका रिटर्न तैयार करेगा। इसके अलावा वे रिफंड में भी आपकी मदद करते हैं।
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कितनी तरह के होम लोन
घर खरीदने के लिए लोन: घर खरीदने के लिए लिया जाने वाला लोन। होम लोन काम मतलब आमतौर पर इसी लोन से लगाया जाता है।
घर में इंप्रूवमेंट के लिए लोन: अगर आप घर को रेनोवेट कराना चाहते हैं या कुछ मरम्मत आदि करानी है तो यह लोन लिया जा सकता है।
कंस्ट्रक्शन लोन: नया घर बनाने के लिए लिया जाने वाला लोन।
कन्वर्जन लोन: मान लीजिए आप जिस मकान में रह रहे हैं, उसके लिए आपने होम लोन
लिया है। अब दूसरा घर खरीदना चाहते हैं, जिसके लिए आपको और पैसे की जरूरत है। कन्वर्जन लोन के माध्यम से पुराना लोन नए घर पर ट्रांसफर हो जाता है। इसमें जो एक्स्ट्रा पैसे की जरूरत होती है, वह भी शामिल होता है।
लैंड परचेज लोन: मकान बनाने या सिर्फ इन्वेस्टमेंट की नजर से अगर आप जमीन खरीद रहे हैं, तो लैंड परचेज लोन ले सकते हैं।
ब्रिज लोन: उन लोगों के लिए है जो वर्तमान घर को बेचकर नया घर खरीदना चाहते हैं। ब्रिज लोन नए घर को फाइनेंस करने में मदद करता है, जब तक कि पुराने घर के लिए खरीदार नहीं मिलता।
किसे मिल सकता है लोन
इंडियन रेजिडेंट होना चाहिए।
लोन की शुरुआत होते वक्त उम्र कम-से-कम 21 साल होनी चाहिए।
लोन मच्योर होते वक्त उम्र 65 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
लोन लेने वाला या तो सैलरीड हो या सेल्फ एम्प्लॉयड। अगर कोई प्रोबेशन पर है तो वह होम लोन का हकदार नहीं है।
कितना मिल सकता है लोन
कुल सालाना आमदनी का करीब साढ़े तीन गुना लोन लिया जा सकता है। वैसे, लोन की रकम प्रॉपर्टी की कीमतपर भी निर्भर करती है। ज्यादातर बैंक प्रॉपर्टी की कीमत का 80 से 85 फीसदी तक लोन दे देते हैं।
लोन लेने का प्रॉसेस
1. ऐप्लिकेशन भरना
जरूरी डॉक्युमेंट्स के साथ ऐप्लिकेशन फॉर्म जमा किया जाता है। जरूरी कागजात ये हैं:
आइडेंटिटी प्रूफ: फोटो क्रेडिट कार्ड, पैन कार्ड, पासपोर्ट, वोटर आईडी आदि में से कोई एक।
रेजिडेंस प्रूफ: रेंटल अग्रीमेंट, पासपोर्ट, राशन कार्ड, डीएल।
इनकम प्रूफ: इनकम टैक्स रिटर्न की पिछले तीन साल की कॉपी, फॉर्म 16, पिछले तीन महीने की सैलरी स्लिप,पिछले महीने की बैंक स्टेटमेंट।
एम्प्लॉयमेंट डिटेल: अगर कंपनी जानी मानी नहीं है तो कंपनी का लेटर।
प्रॉसेसिंग फीस: एप्लिकेशन फॉर्म जमा करने के वक्त बैंक कस्टमर से प्रॉसेसिंग फीस भी चार्ज करता है। यहअमूमन लोन की कुल रकम का .50 से 1 फीसदी होता है।
बात पते की: कुछ बैंक प्रॉसेसिंग फीस को लेकर फ्लेक्सिबल होते हैं इसलिए इस मुद्दे पर मोलभाव करके फीस कोकम कराया जा सकता है। लोन एप्लाई करते वक्त ज्यादा से ज्यादा प्रूफ पेश करें। इससे आपका केस स्ट्रॉन्ग होताहै।
2. पर्सनल वेरिफिकेशन
ऐप्लिकेशन जमा करने के एक या दो दिन बाद बैंक आपके द्वारा दी गई सभी सूचनाओं को वेरिफाई करता है।कस्टमर की इनकम, अड्रेस, आइडेंटिटी आदि जांचने का काम किया जाता है।
बात पते की: इस प्रॉसेस में बैंक कई बार कॉल करके आपका वेरिफिकेशन कर सकता है। इसलिए इस प्रॉसेस कोपूरा करने के लिए थोड़ा वक्त निकालकर रखें और बार बार कॉल आने पर चिढ़ें नहीं।
3. हरी झंडी
आपके द्वारा दी गई जानकारी और उसके वेरिफिकेशन से अगर बैंक संतुष्ट है तो वह आपके लोन को हरी झंडीदिखा देगा, नहीं उसे तो रिजेक्ट कर देगा। कस्टमर की रीपेमेंट कपैसिटी का आकलन करके यह भी तय कर लियाजाता है कि उसे कितना अमाउंट सैंक्शन होगा।
4. ऑफर लेटर
इसके बाद बैंक तमाम सूचनाओं के साथ कस्टमर को ऑफर लेटर देता है, जिसकी एक कॉपी को साइन करकेकस्टमर बैंक को लौटाता है।
बात पते की: ऑफर लेटर में दी गई लोन अमाउंट, अवधि और ब्याज दर को चेक कर लें कि क्या वह वही है जोआपके साथ तय की गई थी। ब्याज की दर पर कुछ मोलभाव किया जा सकता है।
5. प्रॉपर्टी वेरिफिकेशन
इसके बाद बैंक आपकी प्रॉपर्टी की कानूनी वैधता को चेक करता है। अपने लीगल डिपार्टमेंट की मदद से बैंकप्रॉपर्टी के सभी ओरिजनल डॉक्युमेंट्स को वेरिफाई करके यह सुनिश्चित करता है कि प्रॉपर्टी हर तरीके से कानूनीहै। इसके बाद बैंक अपने एक्सपर्ट्स को साइट पर भेजकर भी प्रॉपर्टी का वेरिफिकेशन कराते हैं और उसके बादवैल्यूअर प्रॉपर्टी का वैल्यूएशन करता है।
बात पते की: यह महत्वपूर्ण पॉइंट है। हर कस्टमर को कराना चाहिए। कई बार बैंक लीगल वेरिफिकेशन के लिएकस्टमर से चार्ज करते हैं। इसके लिए मोलभाव कर सकते हैं। अगर लीगल वेरिफिकेशन के बाद बैंक लोन ओकेकर देता है तो कस्टमर को खुश हो जाना चाहिए क्योंकि इसका मतलब है कि उसके द्वारा ली जा रही प्रॉपर्टीकानूनी रूप से पूरी तरह सेफ है।
6. अग्रीमेंट साइन
इसके बाद लोन अग्रीमेंट साइन हो जाता है और प्रॉपर्टी के कस्टमर्स के पक्ष में ट्रांसफर होने के ऑरिजनलकागजात बैंक में जमा हो जाते हैं। इसके बाद बैंक इस बात के सुबूत मांगता है कि प्रॉपर्टी खरीदने के लिए लोन केअलावा जो रकम आपको देनी है, वह आपने पे कर दी है। बैंक कस्टमर से 36 पोस्ट डेटेड चेक भी जमा कराता हैजिनसे रीपेमेंट होता रहे।
बात पते की: ध्यान रखें लोन अमाउंट का जो चेक बैंक इशू करेगा, वह प्रॉपर्टी बेचने वाले के नाम होगा, कस्टमरके नाम नहीं। ज्यादातर बैंक उसी दिन से ब्याज लेना शुरू कर देते हैं जिस दिन चेक इशू होता है। आपको चेककब सौंपा गया इससे कोई लेना देना नहीं है। इसलिए जिस दिन चेक इशू हो कोशिश करनी चाहिए कि उसी दिनउसे बैंक से ले लिया जाए। प्रॉपर्टी के ऑरिजनल कागजात बैंक में जमा हो जाते हैं इसलिए इन कागजात कीफोटो स्टैट कॉपी अपने पास जरूर रख लें।
7. डिस्बर्समेंट
अगर प्रॉपर्टी रेडी टु पजेशन है तो लोन एक बार में ही डिस्बर्स हो जाता है, लेकिन अगर अंडर कंस्ट्रक्शन है तोलोन अमाउंट का डिस्बर्समेंट कई हिस्सों में होता है। अगर डिस्बर्समेंट कई हिस्सों में होना है तो बैंक पहले हिस्सेके भुगतान के बाद तुरंत ईएमआई शुरू नहीं करता। ईएमआई तब शुरू होती है, जब पूरे अमाउंट का भुगतान होजाता है। ऐसे में बैंक भुगतान की गई रकम पर तब तक साधारण ब्याज चार्ज करता है, जब तक पूरी रकम काडिस्बर्समेंट नहीं हो जाता। इसे प्री ईएमआई कहा जाता है। इसके लिए बैंक आमतौर पर छह पोस्टडेटेड चेक लेतेहैं।
बात पते की: प्रीईएमआई समय से अदा करना सुनिश्चित करें, नहीं तो बैंक लेट फीस चार्ज कर सकता है।
लोन का रीपेमेंट
1. पोस्ट डेटेड चेक: बैंक में 36 पोस्टडेटेड चेक जमा करा दिए जाते हैं, जिनसे खुद ब खुद ईएमआई की रकमबैंक को मिल जाती है।
2. सीधे एम्प्लॉयर से: कई संस्थान अपने कर्मचारियों को यह सुविधा देते हैं। इस व्यवस्था में संस्थान कर्मचारीकी सैलरी से ईएमआई की रकम काटकर बैंक को दे देते हैं और बाकी सैलरी कर्मचारी के अकाउंट में आ जाती है।
3. कैश पेमेंट: ईएमआई आप ड्राफ्ट या कैश की मदद से हर महीने भी बैंक में जमा करा सकते हैं। हालांकि कुछबैंक ऐसी सुविधा नहीं देते।
4. ईसीएस: ईएमआई अदा करने का कारगर तरीका है। इस व्यवस्था में ईएमआई की रकम हर महीने आपके बैंकअकाउंट से अदा की जाती रहती है।
होम लोन का टैक्स बेनिफिट
होम लोन को लौटाने में जो ईएमआई दी जाती है, उसका कुछ हिस्सा प्रिंसिपल अमाउंट होता है और कुछ हिस्साब्याज। जो रकम ब्याज के रूप में अदा की जाती है उस पर इनकम टैक्स के सेक्शन 24 बी के तहत टैक्स मेंराहत मिलती है। इसकी सीमा डेढ़ लाख रुपये है। जो रकम प्रिंसिपल अमाउंट के तौर पर अदा की जाती है, उसपर 80सी के तहत छूट मिलती है। इसे एक लाख रुपये की सीमा के अंदर काउंट किया जाता है। इसके लिए बैंकद्वारा जारी किया गया सर्टिफिकेट पेश करना होता है, जिसमें बताया जाता है कि आपने पूरे साल के दौरानकितनी रकम प्रिंसिपल के तौर पर अदा की और कितनी ब्याज के तौर पर।
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ई-फाइलिंग में टीएरपी की मदद
इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने रिटर्न फाइल करने की समय सीमा एक महीना बढ़ाकर 31 अगस्त कर दी है। इस साल से सालाना 10 लाख रुपए और इससे ज्यादा इनकम वाले लोगों के लिए टैक्स रिटर्न की ऑनलाइन फाइलिंग अनिवार्य कर दी गई है। कई लोगों को अब भी ऑनलाइन रिटर्न फाइलिंग प्रोसेस और टैक्स से जुड़े टेक्निकल शब्दों को समझने में दिक्कत आ रही है।
आईटीआर फाइलिंग पोर्टल taxspanner.com के सीएफओ और को-फाउंडर सुधीर कौशिक ने कहा, 'अगर टैक्सपेयर का रिटर्न पेचीदा है तो उसे ऑनलाइन फाइलिंग में दिक्कत हो सकती है।' उन्होंने कहा कि हाउस प्रॉपर्टी, पुरानी प्रॉपर्टी या शेयरों की बिक्री से कैपिटल गेंस, ट्विन शेयर बेसिस पर हाउसिंग लोन टैक्स बेनेफिट जैसे इनकम के कई जरिए हो सकते हैं। सही टैक्स लायबिलिटी को जानना बहुत मुश्किल होता है। ऐसे में आप ई-फाइलिंग के लिए टैक्स कंसल्टेंट्स की मदद ले सकते हैं।
टैक्स रिटर्न प्रीपेयरर्स या टीआरपी करेगा आपकी मदद
अर्न्स्ट ऐंड यंग के टैक्स पार्टनर अमरपाल एस चड्ढा ने कहा, 'जो इंडिविजुअल टेक सैवी नहीं हैं, वे टैक्स रिटर्न प्रीपेयरर्स (टीआरपी) की सेवाएं ले सकते हैं।' इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने दो नई शुरुआत की है- 'रजिस्टर फॉर होम विजिट' और 'ऑनलाइन टैक्स हेल्प'। इनसे टैक्सपेयर्स को काफी मदद मिलती है। टीआरपी रजिस्टर्ड प्रफेशनल्स हैं, जो रिटर्न फाइल करने में टैक्सपेयर्स की मदद करते हैं।
जो इंडिविजुअल टीआरपी की सेवाएं लेना चाहते हैं, वे www.trpscheme.com को विजिट कर ऐसा कर सकते हैं। ऑनलाइन टैक्स हेल्प ऑप्शन सेलेक्ट करने वाले इंडिविजुअल को अपने सवाल के साथ ही अपना कॉन्टैक्ट डीटेल देना होगा। 24 घंटे के अंदर एक्सपर्ट फोन या ई-मेल से आपके सवालों का जवाब देंगे। चड्ढा ने कहा कि जो इंडिविजुअल होम विजिट के लिए रजिस्टर होना चाहते हैं, उन्हें सुविधाजनक दिन और समय बताना पड़ेगा ताकि टीआरपी मदद के लिए उनके पास आ सके। अभी होम विजिट फैसिलिटी बंगलुरु, चेन्नै, गुवाहाटी, हैदराबाद, जयपुर, कोलकाता, लखनऊ, मुंबई, नई दिल्ली और पटना में उपलब्ध है।
प्राइवेट हेल्प भी मौजूद है
आजकल ज्यादातर चार्टर्ड अकाउंटेंट और दूसरे टैक्स सर्विस प्रोवाइडर्स अपने क्लाइंट का रिटर्न ऑनलाइन फाइल करते हैं। इनके अलावा www.myitreturn.com, www.taxspanner.com जैसे पोर्टल हैं, जो ई-मेल-बेस्ड टैक्स फाइलिंग सर्विसेज देते हैं। आपको सिर्फ ई-मेल से अपना फॉर्म 16 और संबंधित डीटेल भेजनी पड़ती है और टैक्स पोर्टल आपकी तरफ से ऑनलाइन रिटर्न फाइल करेगा।
कितना खर्च आएगा?
टीआरपी इनकम टैक्स रिटर्न के लिए 250 रुपए या इससे कम फीस लेगा। अमरपाल चड्ढा ने कहा, 'टैक्सपेयर्स के लिए रिटर्न प्रीपेयर करने के लिए डिपार्टमेंट भी टीआरपी को इनसेंटिव देता है।' सर्विस प्रोवाइडर का चुनाव टैक्स रिटर्न की जटिलता के आधार पर किया जाना चाहिए। सैलरीड इंडिविजुअल को अपने फॉर्म 16 के आधार पर सिंपल आईटीआर-1 फाइल करना पड़ता है। वे टीआरपी या प्राइवेट वेबसाइट्स की मदद ले सकते हैं। अगर आपका रिटर्न कॉम्प्लेक्स हो तो आप किसी अनुभवी टैक्स कंसल्टेंट्स की मदद ले सकते हैं। कंसल्टेंट्स आपके कैपिटल गेंस और हाउस प्रॉपर्टी से संबंधित इनकम को ध्यान में रख आपका रिटर्न तैयार करेगा। इसके अलावा वे रिफंड में भी आपकी मदद करते हैं।
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जानें टैक्स घटाने के तरीके
इनकम टैक्स की धारा 80सी के तहत टैक्स सेविंग स्कीम में निवेश करके करयोग्य आय में एक लाख रुपए तक की छूट ली जा सकती है। इनमें पीपीएफ, इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ईएलएसएस), लाइफ इंश्योरेंस प्रीमियम, ट्यूशन फीस वगैरह शामिल हैं। इसके अलावा, धारा 80 सीसीएफ के तहत लॉन्ग टर्म इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड में 20,000 रुपए के निवेश पर टैक्स छूट का फायदा लिया जा सकता है। अगर अधिकतम 1.2 लाख रुपए की कर छूट का फायदा उठाने की आपकी कोशिश पूरी नहीं हो पाई है तो आप यह काम 31 मार्च तक पूरा कर सकते हैं।
रिम्बर्समेंट
वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए यह वक्त एंप्लॉयर को मेडिकल, ट्रैवल जैसे बिल के प्रमाण सौंपने का है, ताकि इन भत्तों को करयोग्य आय में शामिल होने से बचाया जा सके। इसी तरह, किराए के मकान में रहने वाले वेतनभोगियों को इनकम टैक्स की धारा 10(5) के तहत टैक्स छूट मिलती है। इसके लिए आपको किराए से जुड़े जरूरी दस्तावेज एंप्लॉयर को सौंपने होंगे।
बाकी खर्च
रिम्बर्समेंट
वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए यह वक्त एंप्लॉयर को मेडिकल, ट्रैवल जैसे बिल के प्रमाण सौंपने का है, ताकि इन भत्तों को करयोग्य आय में शामिल होने से बचाया जा सके। इसी तरह, किराए के मकान में रहने वाले वेतनभोगियों को इनकम टैक्स की धारा 10(5) के तहत टैक्स छूट मिलती है। इसके लिए आपको किराए से जुड़े जरूरी दस्तावेज एंप्लॉयर को सौंपने होंगे।
बाकी खर्च
अगर आप खुद के लिए, जीवनसाथी, बच्चे या आप पर निर्भर माता-पिता के लिए हेल्थ पॉलिसी खरीदते हैं, तो उसकी रसीद एंप्लॉयर के पास जमा कर टैक्स छूट का लाभ उठा सकते हैं। इनकम टैक्स की धारा 80 (डी) के तहत इस मद में 15,000 रुपए तक की करयोग्य आय पर टैक्स छूट ली जा सकती है। सीनियर सिटीजन के लिए यह सीमा 20,000 रुपए है।
होम लोन
अगर आपने होम लिया है, तो सबसे पहले बैंक से मूलधन और ब्याज भुगतान से जुड़े दस्तावेज इकट्ठा कर उसे एंप्लॉयर को जमा करा सकते हैं। अगर मकान में खुद रह रहे हैं, तो 1,50,000 रुपए तक के ब्याज पेमेंट पर टैक्स छूट मिल सकती है। अगर आपने प्रॉपर्टी किराए पर दे रखी है तो कारोबारी साल के दौरान लोन पर चुकाई गई ब्याज की राशि करयोग्य होगी।
पिछले एंप्लॉयर से आय
अगर आपने इस कारोबारी साल में जॉब बदली है, तो आपको पिछले एंप्लॉयर से फॉर्म 16 या सैलरी स्टेटमेंट और उसके द्वारा जमा की गई टैक्स राशि से जुड़े दस्तावेज मौजूदा एंप्लॉयर को सौंपने पड़ेंगे।
इनकम पर काटा गया टैक्स
अगर आपको किराए या ब्याज से भी इनकम हो रही है, तो आपके लिए टीडीएस से जुड़ी रकम की समीक्षा जरूरी है। टीडीएस से जुड़ी जानकारी आयकर विभाग की वेबसाइट पर फॉर्म 26एएस के जरिए प्राप्त की जा सकती है। अगर टीडीएस के बाद भी आप पर टैक्स की देनदारी बनती है तो इसका भुगतान अडवांस टैक्स के रूप में कर सकते हैं।
कैपिटल गेन्स टैक्स
अगर आपको चालू कारोबारी साल में किसी तरह के कैपिटल एसेट मसलन रिहायशी प्रॉपर्टी या शेयरों की बिक्री से मुनाफा हुआ है तो आप संबंधित नियमों के तहत टैक्स की गणना कर उसका भुगतान अडवांस टैक्स के रूप में कर सकते हैं।
होम लोन
अगर आपने होम लिया है, तो सबसे पहले बैंक से मूलधन और ब्याज भुगतान से जुड़े दस्तावेज इकट्ठा कर उसे एंप्लॉयर को जमा करा सकते हैं। अगर मकान में खुद रह रहे हैं, तो 1,50,000 रुपए तक के ब्याज पेमेंट पर टैक्स छूट मिल सकती है। अगर आपने प्रॉपर्टी किराए पर दे रखी है तो कारोबारी साल के दौरान लोन पर चुकाई गई ब्याज की राशि करयोग्य होगी।
पिछले एंप्लॉयर से आय
अगर आपने इस कारोबारी साल में जॉब बदली है, तो आपको पिछले एंप्लॉयर से फॉर्म 16 या सैलरी स्टेटमेंट और उसके द्वारा जमा की गई टैक्स राशि से जुड़े दस्तावेज मौजूदा एंप्लॉयर को सौंपने पड़ेंगे।
इनकम पर काटा गया टैक्स
अगर आपको किराए या ब्याज से भी इनकम हो रही है, तो आपके लिए टीडीएस से जुड़ी रकम की समीक्षा जरूरी है। टीडीएस से जुड़ी जानकारी आयकर विभाग की वेबसाइट पर फॉर्म 26एएस के जरिए प्राप्त की जा सकती है। अगर टीडीएस के बाद भी आप पर टैक्स की देनदारी बनती है तो इसका भुगतान अडवांस टैक्स के रूप में कर सकते हैं।
कैपिटल गेन्स टैक्स
अगर आपको चालू कारोबारी साल में किसी तरह के कैपिटल एसेट मसलन रिहायशी प्रॉपर्टी या शेयरों की बिक्री से मुनाफा हुआ है तो आप संबंधित नियमों के तहत टैक्स की गणना कर उसका भुगतान अडवांस टैक्स के रूप में कर सकते हैं।
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