आरटीई पर केंद्र व राज्यों में टकराव की नौबत


वैश्विक चुनौतियों का हवाला देकर शिक्षा में जरूरी बदलावों पर केंद्र भले ही पीछे हटने को तैयार नहीं हो, लेकिन उसके कई प्रयास राज्यों के गले नहीं उतर रहे हैं। नीतियों को लेकर केंद्र और राज्यों के बीच न सिर्फ खाई बढ़ रही है, बल्कि टकराव की भी नौबत बनती दिख रही है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों ने तो शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) के अमल में व्यावहारिक दिक्कतों को लेकर केंद्र की खुली मुखालफत भी की है। शिक्षा के मामले में केंद्र व राज्यों के बीच टकराव की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। बिहार के शिक्षा मंत्री पीके शाही ने अगले मार्च तक आरटीई लागू करने से हाथ खड़े कर दिए हैं। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री एमएम पल्लम राजू व केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्यों से उन्होंने दो टूक कहा, इसके अमल के लिए राज्य में न तो जरूरी संसाधन हैं न जरूरत योग्य शिक्षक। बड़े पैमाने पर प्राइमरी व मिडिल स्कूल बनने हैं। लिहाजा, मार्च तक कानून पर अमल संभव नहीं है। समय सीमा बढ़े। शाही के मुताबिक, समय नहीं बढ़ा तो अगले मार्च के बाद कमियों को लेकर स्कूलों व प्रबंधतंत्र पर मुकदमों की बाढ़ आ जाएगी। कानून के तहत हर बच्चे को यूनीफॉर्म जरूरी है। बैंक में उनका अकाउंट खुलना है। बिहार में दो करोड़ नौ लाख स्कूली बच्चे हैं। यह छोटा काम नहीं है। इन तर्को को नजरंदाज करते हुए केंद्र ने आरटीई के अमल की समयसीमा अगले मार्च के बाद बढ़ाने से साफ इन्कार कर दिया है। उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा मंत्री राम गोविंद चौधरी ने कहा कि आरटीई के तहत बच्चों को इम्तिहान से मुक्ति देने का नतीजा यह है कि न वे पढ़ रहे हैं। न शिक्षकों की पढ़ाने में रुचि है। शिक्षक बच्चों को डांट नहीं सकते। परीक्षा नहीं ले सकते। फेल नहीं कर सकते। फिर भी केंद्र उम्मीद करता है कि ऐसी पढ़ाई होगी कि चमत्कार हो जाएगा। कई प्रावधान ऐसे हैं, जिन पर अमल से शिक्षा गुणवत्ताविहीन हो जाएगी। पिछड़े राज्यों की स्थिति और बदतर होगी। इसमें बदलाव जरूरी है। शिक्षक बनने के लिए टीईटी तो अनिवार्य कर दिया गया है। बीएड व बीटीसी करने वाले बेकार हो गए हैं। सोचना था कि उनका क्या होगा? उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री एमपी नैथानी ने कहा कि उनका प्रदेश टीईटी शिक्षकों की भर्ती कर रहा है, लेकिन जिन्होंने 2009 से पहले बीएड किया है, वे बेरोजगार हो गए हैं। प्रदेश सरकार आरटीई का खर्च उठाने की स्थिति में नहीं है। लिहाजा, केंद्र व राज्य के बीच खर्च का बंटवारा 90:10 के अनुपात में होना चाहिए

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